असांजे की रिहाई

आस्ट्रेलियाई नागरिक जूलियन असांजे अंततः रिहा हो गये। वे बीते 5 वर्ष से बेलमार्श जेल में थे। उन पर अमेरिका की युद्ध से संदर्भी खुफिया फाइलों को विकीलीक्स पर लीक करने का आरोप था। अमेरिकी सरकार लम्बे वक्त से उन्हें अमेरिका प्रत्यर्पित करने का प्रयास कर रही थी ताकि उन पर ऐसी धाराओं में मुकदमा चलाया जा सके जिनमें उन्हें 170 वर्ष तक की सजा हो सकती थी। अमेरिकी दबाव के चलते असांजे कभी एक देश तो कभी दूसरी जगह शरण को मजबूर होते रहे थे। पर अमेरिका जाने से उन्होंने इंकार कर दिया था। 
    
असांजे की रिहाई के लिए दुनिया भर के न्यायप्रिय लोगों ने अभियान छेड़ा हुआ था। इस अभियान को लाखों लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ था। इस अभियान ने ब्रिटेन सरकार पर असांजे का प्रत्यर्पण रोकने का दबाव बनाया हुआ था। 
    
पर असांजे की यह रिहाई अमेरिकी शासकों के साथ एक समझौते के रूप में ही सम्पन्न हो पाई। असांजे के वकील अमेरिका में अनथक प्रयासों के बाद इस याचिका समझौते पर पहुंचे कि असांजे पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र के उत्तरी मारियाना द्वीप समूह के अमेरिकी क्षेत्र की राजधानी साइपन की एक अमेरिकी अदालत में पेश होंगे। और वे वहां एक जासूसी संदर्भी छोटे आरोप को स्वीकार करेंगे व बदले में अदालत उन्हें रिहा कर देगी। यह समझौता व्यवहार में उतर चुका है और असांजे यहां से रिहा होकर अपने मूल देश आस्ट्रेलिया पहुंच चुके हैं।
    
अमेरिकी शासक इस समझौते पर अपनी पीठ यह कहकर थपथपा सकते हैं कि उन्होंने असांजे को गुनाह कबूल करने पर मजबूर कर दिया। हालांकि वास्तविकता यही है कि असांजे के पीछे पड़े शासक अमेरिकी चुनाव के मौके पर इस मसले को अधिक तूल देकर जनता में अपने प्रति नाराजगी बढ़ाना नहीं चाहते थे। इसीलिए इस समझौते से उन्होंने खुद को दरियादिल दिखाने की कोशिश की। फिर भी असांजे को उम्र भर जेल में सड़ाने का ख्वाब पाले शासकों की यह वास्तव में हार ही थी। 
    
कुछ लोग असांजे के अपनी रिहाई के लिए अमेरिका से समझौते पर प्रश्न उठा रहे हैं। अब यह समझौता किस स्तर का है व क्या इससे असांजे वास्तव में झुक गये हैं यह भविष्य में असांजे के व्यवहार से पता चलेगा। वे पहले ही तरह निडर होकर विकिलिक्स पर अमेरिका व अन्य साम्राज्यवादियों के काले कारनामों के खुलासे करते रहेंगे या इस काम को छोड़ देंगे, यही स्थापित करेगा कि यह समझौत किसकी जीत था। 
    
आज जब दुनिया भर में सत्तायें निरंकुशता की ओर बढ़कर पत्रकारों पर हमले बोल रही हैं तब असांजे का संघर्ष सबको प्रेरणा देता रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि असांजे जनपक्षधर पत्रकारिता की राह पर आगे बढ़ते रहेंगे।  

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को