गृहमंत्री अमित शाह ने घोषणा की है कि सत्ता में आने पर वे अगले 5 वर्षों में पूरे देश में एक साथ चुनाव करायेंगे व साथ ही समान नागरिक संहिता लागू करेंगे। सुनने में पहली नजर में किसी को लग सकता है कि इसमें बुराई क्या है। कि एक देश के सभी नागरिक एक से कानूनों से संचालित हों यह तो अच्छी बात है।
पर ‘सबका साथ सबका विश्वास सबका विकास...’ सरीखे नारे देने वाले मोदी-शाह की असलियत को देखते ही समझ में आ जाता है कि कुछ तो गड़बड़ है। दरअसल ये सबका साथ व विश्वास तो लेना चाहते हैं पर विकास अम्बानी-अडाणी का करते रहे हैं। इनके सबके साथ व विश्वास का आलम भी यह है कि ये मुस्लिमों के खिलाफ दिन-रात जहर उगलकर, एक भी मुस्लिम को चुनावी टिकट न देकर भी बेशर्मी से सबके साथ व विश्वास का नारा लगाते हैं। इस चुनाव में तो मोदी-शाह मुस्लिमों को आरक्षण से लेकर उन पर सम्पत्ति लुटाने का भय हिंदू आबादी को दिखा वोट मांगते रहे हैं। फिर भी ये दावा करते हैं सबका साथ सबका विश्वास।
यही हाल इनकी समान नागरिक संहिता का होना है जिसका एक माडल ये उत्तराखण्ड में पेश कर चुके हैं। दरअसल समान नागरिक संहिता एक ऐसे समाज में ही लागू हो सकती है जहां शिक्षा आदि का धर्म से पूर्ण अलगाव हो और धर्म व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला हो। ऐसे वास्तविक धर्मनिरपेक्ष राज्य में ही यह संभव है कि सभी नागरिकों के लिए उनकी धार्मिक निष्ठा से स्वतंत्र सामाजिक-पारिवारिक मसलों की एक संहिता लागू की जा सके। पर मोदी-शाह चाहते हैं कि राज्य तो हिन्दू धर्म की मूल्य मान्यता पर चले, मंत्री-नेता मंदिरों के चक्कर काटें, मस्जिदों-चर्चों के खिलाफ जहर उगलें, शिक्षा में हिंदू राजा नायक व मुस्लिम शासक खलनायक बन जायें पर सारी जनता समान संहिता पर चले। दरअसल यहां भी ये समान संहिता नहीं हिन्दू संहिता को ही जबरन सब पर थोपना चाहते हैं।
उत्तराखण्ड का इनका छोटा मोदी आये दिन लव जिहाद से लेकर लैंड जिहाद कह मुस्लिमों को गरियाता रहता है। उसका बुलडोजर मुस्लिमों के घर-दुकान तोड़ता रहता है। राज्य चार धाम यात्रा को आयोजित करने, हिन्दू बाबाओं की सेवा करने में ऐसे लगा रहता है मानो मंतरी-संतरी का यही मुख्य काम हो। ऐसे में छोटे मोदी ने कैसी संहिता बनायी होगी, समझा जा सकता है। हिन्दू संहिता के कवर पर समान नागरिक संहिता लिख कर परोस दी गयी है। इसमें मुस्लिमों के तलाक, सम्पत्ति के धार्मिक कानूनों पर चोट कर हिन्दुओं में प्रचलित मान्यताओं को ही सब पर थोप दिया गया है। लिव-इन के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान कर व्यवहारतः उसे असंभव बना सभी युवाओं पर हमला बोला गया है। जाहिर है यह संहिता व्यवहार में मुस्लिमों-युवाओं को प्रताड़ित करने का ही एक औजार है।
एक ऐसा राज्य-ऐसी सरकार जो खुद धर्मों-सम्प्रदायों के प्रति समान रुख न रखती हो, जो एक धर्म को गरिया दूसरे का समर्थन बटोरती हो, भला किस हैसियत से अपने सारे धर्मों के अनुयाईयों से समान नागरिक संहिता पर चलने की मांग कर सकती है।
दरअसल समान नागरिक संहिता के नाम पर संघी हिन्दू संहिता पूरे समाज पर थोप अल्पसंख्यकों, महिलाओं से लेकर जनजातियों तक को जबरन उनकी मान्यतायें छोड़ने का दबाव डालना चाहते हैं। इन सबके अधिकारों को कुचलना चाहते हैं यही इनका फासीवादी मंसूबा है। यही मंसूबा एक राष्ट्र एक चुनाव के नारे में भी झलकता है।
फासीवादी अपनी कार्यप्रणाली में एक नेता को महिमामंडित कर सबसे ऊपर स्थापित करते हैं और फिर उसके नाम पर वोट मांगते हैं। ऐसे में ये चाहते हैं कि जनता लोकसभा-विधानसभा से लेकर पंचायत-नगर निगम के चुनाव में भी उसी नेता के नाम पर वोट दे। वह स्थानीय मुद्दे-समस्यायें देखने, उनके हिसाब से मत देने के बजाय केवल केन्द्रीय स्थापित नेता के नाम पर वोट दे। ऐसे में अगर सभी चुनाव एक साथ होंगे, तो ज्यादा संभावना यही है कि सांसद-विधायक-नगर निगम-प्रधानी सबमें लोग एक पार्टी को ही मत देंगे। स्थानीय मुद्दे पीछे छूट जायेंगे। फिर वे स्थापित नेता की पार्टी को ही मत देंगे। इसके उलट अगर सभी चुनाव अलग-अलग होंगे तो जनता किसी चुनाव में एक पार्टी तो कुछ समय बाद दूसरे को वोट दे सकती है। मोदी-शाह दरअसल जनता की यह आजादी छीन लेना चाहते हैं और इस बहाने चाहते हैं कि सब भाजपा-संघ के मतदाता ही नहीं पिछलग्गू बन जायें। अब यह तो वक्त बतायेगा कि इनके फासीवादी एजेण्डे कितना आगे बढ़ते हैं।
एक राष्ट्र-एक चुनाव-समान नागरिक संहिता : फासीवादी एजेण्डा
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