ई.एस.आई. विभाग के कर्मचारियों की छंटनी से मरीज इलाज से वंचित

पंतनगर/ दिनांक 7 फरवरी 2023 को मैं एक मरीज को लेकर ई.एस.आई. डिस्पेंसरी रुद्रपुर गया था। मैंने देखा राज्य कर्मचारी बीमा निगम औषधालय आवास विकास रुद्रपुर में काम कर रहे संविदा उपनल कर्मचारियों को बिना सोचे-समझे सरकार और ई.एस.आई. प्रशासन ने नौकरी से निकाल दिया है। कर्मचारी इस नौकरी से अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे थे। सरकार ने उनकी नौकरी छीन ली। यह खबर कर्मचारियों को पहले नहीं बताई गई। ड्यूटी जाने पर ही पता चला कि ई.एस.आई. विभाग द्वारा कर्मचारियों को नौकरी से हटाने का आदेश हुआ है।

ई.एस.आई. विभाग द्वारा कर्मचारियों को नौकरी से हटाने के कारण बहुत सारे फैक्टरी मजदूरों-कर्मचारियों को अपने परिवार के सदस्यों के इलाज के लिए बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। ई.एस.आई. विभाग के कर्मचारियों ने काम बंद कर दिया। जो कर्मचारी निजी अस्पतालों के ऑनलाइन रेफर बनाते थे उन्होंने रेफर बनाना बंद कर दिया और जो कर्मचारी प्रतिपूर्ति दावा के कागज जमा करने का काम करते थे, उन्होंने वह काम करना बंद कर दिया। दवा वितरण करने वाले कर्मचारी ने दवा वितरण करना बंद कर दिया। जिससे मरीजों को भारी परेशानी उठानी पड़ी। जो मरीज अस्पताल में भर्ती थे उनके पुराने रेफर की अवधि पूरी हो गई थी। उनको निजी अस्पतालों के डाक्टर ने दोबारा रेफर बनाने को कहा था जो रेफर नहीं बन सके। और औषधालय में मजदूरों को दवा भी नहीं मिल सकी। भूखे-प्यासे मजदूर पूरे दिन ई. एस.आई. विभाग में भटकते रहे पर इलाज से वंचित रहे। पूरे दिन भटकने के बाद मेरे मरीज़ का भी रेफर नहीं बन पाया। मजदूर कर्मचारियों को इलाज़ के लिए मात्र ई.एस.आई. ही तो मात्र एक सहारा है उसमें भी सरकार ने बुरा हाल बना रखा है। सरकार और ई.एस.आई. प्रशासन पूंजीपतियों के लिए काम कर रहा है। सरकार और पूंजीपति मुफ्त के मजदूर चाहते हैं। वह चाहते हैं कि उन्हें मजदूरों को न ई.एस.आई. और न ही पीएफ देना पड़े। सरकार पूंजीपतियों के लिए मजदूरों-कर्मचारियों के श्रम कानूनों को खत्म कर रही है। सरकार मजदूरों से ई.एस.आईं. अंशदान तो कटौती कर रही है पर ई.एस.आई. विभाग में कार्यरत कर्मचारियों को स्थायी करने के बजाय उन्हें नौकरी से ही निकाल दे रही है। जब ई.एस.आई. विभाग में स्थायी कर्मचारी ही नहीं होंगे तो वहां मजदूरों को ई.एस.आई. की सुविधा कैसे मिलेगी, यानी दवाई भी नहीं मिल सकेगी। यह तो वही मुहावरा है ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी। -भूपेंद्र शर्मा, पंतनगर

आलेख

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समाज के क्रांतिकारी बदलाव की मुहिम ही समाज को और बदतर होने से रोक सकती है। क्रांतिकारी संघर्षों के उप-उत्पाद के तौर पर सुधार हासिल किये जा सकते हैं। और यह क्रांतिकारी संघर्ष संविधान बचाने के झंडे तले नहीं बल्कि ‘मजदूरों-किसानों के राज का नया संविधान’ बनाने के झंडे तले ही लड़ा जा सकता है जिसकी मूल भावना निजी सम्पत्ति का उन्मूलन और सामूहिक समाज की स्थापना होगी।    

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फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।

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यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।