6 फरवरी सोमवार को तुर्की और उससे सटे सीरिया में एक विनाशकारी भूकंप आया। भूकंप सुबह 4 बजकर 17 मिनट पर आया। भूकंप की तीव्रता 7.8 नापी गयी। बाद में भी भूकंप के हल्के झटके आते रहे। भूकम्प के चलते तुर्की के 10 से अधिक शहर व सीरिया के कई इलाके गिरी हुई इमारतों के मलबे में बदल गये। मौतों का आंकड़ा भूकम्प के 9 दिन बाद 40,000 पार कर चुका है और अभी भी मलबे से लाशों की तलाश जारी है। अनुमानतः तुर्की-सीरिया के 3 करोड़ लोग भूकम्प से प्रभावित हुए हैं। मृतकों का आंकड़ा 1 लाख तक पहुंचने के अनुमान लगाये जा रहे हैं।
तुर्की में भूकंप कोई नई बात नहीं है। यह प्रमुख भूकंप क्षेत्रों में से एक है। 1900 से अब तक यहां 76 बार भूकंप आ चुका है। जिसमें लगभग 90 हजार लोग मारे जा चुके हैं। 1936 से 1999 के बीच 5 बड़े भूकंप तुर्की में आए जिसमें लगभग 45 हजार लोग मारे गये। प्रमुख भूकंप क्षेत्र होने के बावजूद और भूकंप से इतने बड़े पैमाने पर आपदाएं झेलने के बावजूद तुर्की के पूंजीवादी शासकों ने कोई सबक नहीं लिया। भूकंप से जुड़ी तैयारियां लगभग नदारद हैं जिस कारण कोई भी भूकंप भयानक विनाशकारी परिणाम पैदा कर देता है।
1999 में पश्चिमी तुर्की में भूकंप आया जिसमें 17,000 लोग मारे गये थे। इसके बाद तुर्की सरकार ने भूकंप के नाम पर टैक्स वसूलना शुरू किया जिसे वहां विशेष संचार कर के नाम से जाना जाता है। अनुमानतः इस मद से 88 बिलियन लीरा इकट्ठा किया गया। इस रकम के बारे में कहा गया कि इसे भूकंप के परिणामों से निपटने में खर्च किया जायेगा। भूकंप से पूर्व बचाव के कार्य पर खर्च किया जायेगा। लेकिन जब-तब इस पैसे के खर्च पर सवाल उठते रहे हैं। यह पैसा कैसे खर्च किया जा रहा पर, इसके बारे में सरकार ने कभी स्पष्ट जवाब नहीं दिया। तुर्की के मौजूदा भूकंप के बाद लोग तेजी से फिर से इन सवालों को उठा रहे हैं और सरकार के प्रति असंतोष व्यक्त कर रहे हैं।
होना तो यह चाहिए था कि 88 बिलियन लीरा से भूकंप के बचाव कार्य के लिए एक मजबूत तंत्र खड़ा किया जाता। लोगों के घरों का निर्माण भूकम्परोधी ढंग से किया जाता। भूकंप की दृष्टि से इतने संवेदनशील क्षेत्र में जनता को भूकंप से बचाव के लिए नियमित तौर पर ट्रेन्ड किया जाता लेकिन यह सब नहीं किया गया। इसके बजाए एर्दोगन सरकार सत्ता में अपनी पकड़ मजबूत बनाने में ही व्यस्त रही। सारी सत्ता एर्दोगन अपने हाथों में एकत्रित कर देश को फासीवाद के रास्ते में बढ़ाने में ही मशगूल रहे।
मौजूदा भूकम्प में आश्रय-रोजगार से विहीन जो लोग जिन्दा बच गये हैं अब उनकी परीक्षा ठंड और भूख ले रही है। सरकार न केवल भारी लापरवाही से काम कर रही है बल्कि तमाम तरह की राहत एजेन्सियों के प्रभावितों तक पहुंचने में बाधा भी खड़ी कर रही है। तुर्की की सरकार व उसके मुखिया एर्दोगन का सारा ध्यान इस पर है कि कहीं कोई इस मौके पर षड्यंत्र कर उन्हें गद्दी से हटा न दे। वे सारा ध्यान राहत से अधिक अपनी गद्दी बचाने में लगाये हुए हैं। तुर्की के पूंजीपति इस भारी आपदा में भी अवसर व मुनाफा तलाश रहे हैं। सीमेंट कंपनियों के शेयरों के भाव चढ़ गये हैं।
सीरिया में राहत कार्य में पश्चिमी साम्राज्यवादी प्रतिबंध बड़ी बाधा बन कर सामने आ रहे हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादी इस स्थिति में भी प्रतिबंध उठाने को तैयार नहीं हैं। युद्ध की तैयारी में पानी की तरह पैसा बहा रहे साम्राज्यवादी राहत के नाम पर चंद कतरे खर्च करने में भी आनाकानी कर रहे हैं। पूंजीवादी समाज व्यवस्था का आम चरित्र ही यही है कि वो पूंजीपतियों के पक्ष में और आम मेहनतकशों के खिलाफ काम करती है। पूंजीपति वर्ग अपने मुनाफे के लिए प्रकृति का इस तरह से दोहन करता है कि पूरी मानव जाति को ही खतरे के निशान पर ले आता है। इसके दोहन से नदी, समुद्र, पहाड़, मैदान, जंगल, रेगिस्तान कुछ नहीं बचा है।
आज विज्ञान इतनी प्रगति कर चुका है कि भूकंप वाले स्थलों को चिन्हित किया जा सके और भूकंपरोधी निर्माण कर आपदा से होने वाले नुकसान को बेहद सीमित किया जा सके पर पूंजीवाद में वैज्ञानिक ढंग से परीक्षण कर निर्माण करने के स्थान पर मार्केट व खरीदारों का सर्वे किया जाता है। ताकि मुनाफा अधिक से अधिक कमाया जा सके। इसीलिए भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों में भी बहुमंजिला इमारतें, बड़े-बड़े शापिंग माल आदि का निर्माण किया गया जिसके चलते प्राकृतिक आपदा ने ज्यादा गंभीर रूप ले लिया।
भूकंपरोधी निर्माण के जरिये ही जापान ऐसी आपदाओं के वक्त के नुकसान को न्यून कर पाया है। पर तुर्की-सीरिया अगर इस ओर नहीं बढ़ रहे हैं तो इसमें उनके पूंजीवादी शासकों की मुनाफे की हवस के साथ साम्राज्यवादियों द्वारा थोपे युद्धों-प्रतिबंधों की भी भूमिका है। आपदा से नुकसान पैदा करने के बाद भी इनके कारनामे भुखमरी-ठण्ड-बीमारी से प्रभावित आबादी को और नुकसान पहुंचाने के ही हैं। ऐसे वक्त में आम जनता-मजदूर-मेहनतकश ही सुख-दुख के सच्चे साथी बन एक-दूसरे की मदद को आगे आ रहे हैं।
पूंजीवादी सरकारें आम तौर पर ही आम मेहनतकश जनता से न्यूनतम सरोकार रखती हैं। जनता का जीवन अलग होता है और शासकों की अय्याशियां अलग। प्राकृतिक आपदा के समय भी यही दिखता है। ऐसे विकट समय में भी सरकारों का कुप्रबन्धन चरम पर रहता है। राजनेता घड़ियाली आंसू बहाते हैं और राहत में खर्च किये पैसे को डकार जाते हैं। ऐसे समय में राजनेताओं और ज्यादातर अधिकारियों का रवैया नर पिशाचों जैसा होता है।
इन्हीं सब कारणों से पूंजीवादी समाजों में प्राकृतिक आपदाएं भयानक विनाश पैदा करती हैं जबकि किसी मानव केन्द्रित व्यवस्था में विज्ञान की प्रगति का इस्तेमाल कर इस विनाश के बहुलांश से बचा जा सकता है। इन अर्थों में तुर्की में मारे गए लोग प्राकृतिक आपदा से ज्यादा पूंजीवादी व्यवस्था के शिकार हुए हैं।