भारत में बदनाम अडाणी केन्या में निशाने पर

अडाणी और केन्या के मजदूर-कर्मचारी

जैसे भारत में विदेशी (अमेरिकी-ब्रिटिश-जापानी) पूंजीपति रात-दिन भारत की प्राकृतिक संपदा व मजदूरों के श्रम का दोहन करते हैं ठीक वैसे ही भारत के सबसे बड़़े पूंजीपतियों में शामिल अडाणी-अम्बानी-टाटा भी विदेशों में शोषण-दोहन में लगे रहते हैं। 
    
अभी अडाणी की बांग्लादेश को दी गयी धमकी की कहानी बहुत दूर तक नहीं फैली थी कि केन्या से खबर आयी कि वहां के मुख्य हवाई अड्डे (जो कि केन्या की राजधानी नैरोबी में स्थित है) को सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने घेर लिया। हालत यह हो गई कि विमानों का परिचालन ठप्प हो गया और सैकड़ों यात्री हवाई अड्डे में फंस गये। केन्या में मचे इस घमासान के पीछे अडाणी का हाथ है। असल में अडाणी की मुनाफा कमाने की सर्वग्रासी भूख बढ़ती ही जा रही है। पहले उसने भारत के हवाई अड्डे, बंदरगाह हजम किये अब वह केन्या के सबसे बड़े व सबसे व्यस्त जोमो केन्याटा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे को नवीनीकरण व संचालन के नाम पर हजम कर जाना चाहता है। अडाणी ऐसा न कर सके इसके लिए ‘केन्या एयरपोर्ट वर्कर्स यूनियन’ ने हड़ताल का आह्वान किया। सफल हड़ताल ने अडाणी और केन्या की जन विरोधी सरकार के खतरनाक मंसूबों को पूरे देश के सामने उजागर कर दिया है। 
    
केन्या के मजदूर, कर्मचारी अच्छी तरह से जान रहे हैं कि अडाणी के हाथ जिस हवाई अड्डे को केन्या सरकार दे रही है वह अडाणी के हाथों में जाने के बाद न केवल राष्ट्रीय शर्म का विषय होगा बल्कि उनकी रोजी-रोटी भी छीन लेगा। 

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता