पाकिस्तान : इमरान खान की रिहाई के लिए व्यापक प्रदर्शन

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25-26 नवम्बर को पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की रिहाई के लिए राजधानी इस्लामाबाद में व्यापक प्रदर्शन हुए। पूरे देश खासकर खैबर पख्तुनबा प्रांत से आये प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए सरकार ने मालवाहक समुद्री जहाजों के कंटेनरों को इस्लामाबाद की सीमाओं पर लाइन से खड़ा कर दिया था। पर प्रदर्शनकारी लोगों की बड़ी संख्या को रोकने में ये कंटेनर असफल रहे और हजारों की तादाद में ये इस्लामाबाद के केन्द्र तक पहुंचने में सफल रहे। आजादी के नारे लगाते, गीत गाते प्रदर्शनकारियों पर इसके बाद सेना व पुलिस का कहर टूट पड़ा। आंसू गैस से शुरू करते हुए सीधे फायरिंग की भी खबरें हैं। प्रत्युत्तर में प्रदर्शनकारियों द्वारा भी हमला बोला गया। इस प्रक्रिया में 6-7 प्रदर्शनकारियों व 4-5 सुरक्षा हेतु तैनात जवानों के मारे जाने व सैकड़ों प्रदर्शनकारियों के घायल होने की खबरें हैं। अंततः इमरान की पत्नी बुशरा बीबी के पीछे हटने के आदेश के बाद फिलहाल इस्लामाबाद प्रदर्शनकारियों ने खाली कर दिया है। 
    
पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी इमरान खान अगस्त 18 से अप्रैल 22 तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे थे। वे अपनी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ (पी टी आई) के संस्थापक भी थे। अप्रैल 22 में एक अविश्वास प्रस्ताव के जरिये उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया। 9 मई 2023 को भ्रष्टाचार के आरोपों में उनकी गिरफ्तारी हुई। इसके बाद वे 3 दिन में छोड़ दिये गये। 5 अगस्त 23 को इन्हें दोबारा गिरफ्तार किया गया तब से ही वे जेल में हैं। उन्हें भ्रष्टाचार, विवाह कानून उल्लंघन, राज्य की गोपनीय बातों को लीक करने, उपहारों को बेचने, प्रदर्शनों में आतंकी कार्यवाही आदि 150 केसों में फंसा दिया गया है। जिनमें जब-जब उन्हें पहले के मामलों में जमानत मिलती, सरकार उन पर नये केस लाद देती। 
    
यद्यपि इमरान खान जेल में थे और उनकी पार्टी भी सीधे चुनाव नहीं लड़ सकती थी फिर भी निर्दलीय के बतौर खड़े उनके उम्मीदवारों ने चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया पर विपक्षी दलों ने गठबंधन कर सरकार बना ली। ऐसे में पाकिस्तान में इमरान के प्रति जनसमर्थन कम नहीं हुआ। अब तक इमरान की रिहाई हेतु 4 बड़े प्रदर्शन आयोजित हो चुके हैं। पर मौजूदा सरकार इमरान की रिहाई को तैयार नहीं है। 
    
पाकिस्तान की राजनीति में सभी प्रमुख पूंजीवादी दल भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद में आकण्ठ लिप्त हैं। इमरान की पार्टी भी इनसे अलग नहीं है। यहां की राजनीति में सेना, अमेरिकी साम्राज्यवाद व कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतें भी गहरा प्रभाव रखती रही हैं। अप्रैल 2022 के अविश्वास प्रस्ताव के पीछे सीधे अमेरिकी साम्राज्यवादियों के हाथ होने का आरोप इमरान ने लगाया था। 
    
इमरान ने जब 2018 में सत्ता ग्रहण की थी तो उन्होंने ज्यादा लोकतांत्रिक व जनकल्याणकारी सरकार का वायदा किया था पर उनका शासनकाल भी बाकी सरकारों से कुछ खास अलग नहीं रहा। अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत भी इस दौरान नहीं सुधरी। 
    
पाकिस्तानी जनता शासकों की इस उठा-पटक के बीच लम्बे वक्त से पिस रही है। कभी सैन्य तानाशाही तो कभी चुनी गयी सरकार का सिलसिला यहां लम्बे वक्त से जारी है। ऐसे में पाकिस्तानी अवाम पूंजीवादी दलों के साथ-साथ सेना-अमेरिकी साम्राज्यवाद व कट्टरपंथी संगठनों के चंगुल से मुक्त होकर ही अपने बेहतर भविष्य की ओर कदम बढ़ा सकती है। अन्यथा कभी एक तो कभी दूसरा पूंजीवादी नेता उसे स्वप्न दिखा ठगते रहेंगे। 

आलेख

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इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

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1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

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असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

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इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।