संयुक्त राज्य अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प और रिपब्लिकन पार्टी को सत्तारूढ़ होने में मदद करने के बाद अब दुनिया के सबसे धनी आदमी यानी एलन मस्क अन्य देशों की धुर दक्षिणपंथी पार्टियों को भी सत्तारूढ़ कराने में लग गये हैं। अभी हाल में ही उन्होंने जर्मनी की अल्टरनेटिव फार जर्मनी को समर्थन देने की घोषणा की। इस पर वहां उन पर जर्मन चुनावों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगा।
आज दुनिया भर की सारी धुर दक्षिणपंथी पार्टियां धार्मिक अल्पसंख्यकों और अप्रवासियों को निशाना बना रही हैं। एक तरह से उनकी सारी राजनीति इसी पर टिकी होती है। अक्सर धार्मिक अल्पसंख्यक और अप्रवासी एक ही समुदाय के होते हैं। तब मामला और गंभीर हो जाता है क्योंकि तब रोजगार की समस्या से आगे बढ़कर राष्ट्र, सभ्यता-संस्कृति के खतरे में पड़ने की बात होने लगती है।
जब एलन मस्क दुनिया भर की इन धुर दक्षिणपंथी पार्टियों को समर्थन देते हैं तब वे केवल अप्रत्यक्ष तौर पर धार्मिक अल्पसंख्यक और अप्रवासी विरोध को हवा नहीं दे रहे होते। वे और भी आगे जाकर स्वयं को अप्रवासी विरोधी के रूप में पेश करते हैं। चाहे अमेरिका हो या यू के या जर्मनी, वे सब जगह अप्रवासियों का विरोध करते हैं।
यह बहुत दिलचस्प है। यह व्यक्ति दक्षिण अफ्रीका में पैदा हुआ और आज संयुक्त राज्य अमेरिका का नागरिक है। यह दुनिया का सबसे धनी आदमी है और वह किसी एक देश में व्यवसाय कर दुनिया का सबसे धनी आदमी नहीं बना है। उसका व्यवसाय सारी दुनिया में फैला हुआ है। वह सारी दुनिया की सरकारां से अपने मन माफिक नीतियां बनवाता है और दौलत बटोरता है। पैसा लगाने और मुनाफा कमाने के मामले में वह किसी देश की सीमा को नहीं मानता।
लेकिन यही व्यक्ति दुनिया के मजदूरों के एक देश से दूसरे देश में जाने का विरोध करता है, खासकर पिछड़े पूंजीवादी देशों से यूरोप और अमेरिका में आने पर। यह उनको लेकर हो रही धुर दक्षिणपंथी राजनीति का खुला समर्थन करता है।
इस तरह के व्यवहार के मामले में एलन मस्क अनूठा नहीं है। बल्कि यह दुनिया भर की एकाधिकारी पूंजी, खासकर साम्राज्यवादी देशों की एकाधिकारी पूंजी का सामान्य व्यवहार रहा है। वैश्वीकरण के नाम पर यह पूंजी सारी दुनिया में विचरण कर रही है और हर जगह से मुनाफा कमा रही है। लेकिन यही पूंजी नहीं चाहती कि मजदूर भी दुनिया भर में इधर से उधर जायें। तब उसे पिछड़े पूंजीवादी देशों में सस्ते श्रम से होने वाले मुनाफे से हाथ धोना पड़ेगा।
इतना ही नहीं, इस एकाधिकारी पूंजी को उन लोगों के सत्ता में होने से ज्यादा फायदा होता है जो राष्ट्र और सभ्यता-संस्कृति के नाम पर अप्रवासियों का ज्यादा विरोध करते हैं। एक तो वे स्वयं छुट्टे पूंजीवाद के घनघोर समर्थक होते हैं, दूसरे वे भांति-भांति के तरीके से मजदूरों को बांटकर पूंजी की राह आसान करते हैं। इसीलिए उदारीकरण-वैश्वीकरण के पिछले चार दशकों में एकाधिकारी पूंजी ने ऐसे लोगों को खूब आगे बढ़ाया है और आज ये या तो सत्ता में हैं या सत्ता के करीब हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प यदि राष्ट्रपति की कुर्सी पर थे और होंगे तो उसका एक प्रमुख कारण अप्रवासी विरोध है। पिछले सौ साल से अमरीकी एकाधिकारी पूंजी सारी दुनिया को लूट रही है। और आज उस देश की राजनीति अप्रवासी खतरे के इर्द-गिर्द घूम रही है। विडम्बना यह है कि थोड़े से लातिनी मूल के लोगों के अलावा अमेरिका का हर नागरिक पिछले पांच सौ साल में पहुंचे अप्रवासियों का वंशज है। मूलतः अप्रवासियों से निर्मित देश आज नये अप्रवासियों को स्वीकार करने को तैयार नहीं है।
पर यह समझना भूल होगी कि यह सब अपने आप हो रहा है। यह सब एकाधिकारी पूंजी द्वारा जान-बूझकर किया जा रहा है। एलन मस्क का उदाहरण इसे दिखाता है कि कैसी-कैसी शक्तियां इसे हवा देने में लगी हुई हैं। बस भारत के हिन्दू फासीवादी जार्ज सोरोस की तरह एलन मस्क का हौव्वा नहीं खड़ा करेंगे क्योंकि एलन मस्क उनकी थैली भर रहा है जिसके बदले में उनकी सरकार एलन मस्क की तिजोरी भरे।
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