बीते दिनों उ.प्र. के लखनऊ मे विद्युत कर्मचारियों की बिजली पंचायत आयोजित की गयी। यह पंचायत उ.प्र. सरकार द्वारा विद्युत वितरण को निजी क्षेत्र में सौंपने के प्रयासों के विरोध में केन्द्रित थी। सरकार विभिन्न विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के जरिये इस प्रक्रिया को अंजाम देने पर तुली है और इंजीनियर-कर्मचारी सभी इसका विरोध कर रहे हैं।
पंचायत में वितरण निगमों के निजीकरण के लिए बोली प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया गया। इसके साथ हर जिले व परियोजना स्थल पर बिजली पंचायत करने की भी घोषणा हुई।
कर्मचारियों ने इस निजीकरण को अरबों-खरबों की परिसम्पत्तियां चंद कारपोरेट घरानों को सौंपने का षड्यंत्र बताया। कर्मचारियों ने दावा किया कि बीते 7 वर्षों में कर्मचारियों ने लाइन हानि 24 प्रतिशत तक कम की है। कर्मचारियों ने यह भी बताया कि ग्रेटर नोएडा, आगरा व अन्य जगहों पर जहां विद्युत वितरण निजी हाथों में सौंपा गया वहां उपभोक्ता व कर्मचारियों दोनों के हितों के मामले में यह विफल रहा है। कर्मचारियों ने उत्पादक इकाईयों को भी उ.प्र. राज्य विद्युत उत्पादन निगम को सौंपने की मांग के साथ उ.प्र. राज्य विद्युत बोर्ड के पुनर्गठन की भी मांग की।
उन्होंने सरकार के पूर्व समझौतों की भी याद दिलाते हुए निजीकरण को इन समझौतों का उल्लंघन बताया।
दरअसल विद्युत उत्पादन व वितरण निजी हाथों में सौंपना उदारीकरण-निजीकरण के मौजूदा दौर में सरकारों की चाहत रही है। पूंजीपति भी इस क्षेत्र में उतर मुनाफा पीटने को तत्पर रहे हैं। पर सरकारें क्रमशः ही इस दिशा में धीरे-धीरे बढ़ पायी हैं। पहले उसने उत्पादन व वितरण के अलग-अलग निगम स्थापित किये। फिर इन बड़े निगमों को भी 3-4 टुकड़ों में तोड़ दिया। इस प्रक्रिया में सरकार ने कुछ उत्पादक इकाईयों व कुछ शहरों का वितरण निजी हाथों में सौंप दिया। अब सरकार तेजी से सभी निगमों का निजीकरण करने की तैयारी कर रही है।
विद्युत कर्मचारियों ने वक्त-वक्त पर संघर्ष कर सरकार की निजीकरण की प्रक्रिया को धीमा जरूर किया है पर वे उसे पूरी तरह रोक नहीं पाये हैं। किसान आंदोलन भी विद्युत निजीकरण के विरोध में आवाज उठाता रहा है। पर आबादी के बाकी वर्गों व अन्य सरकारी कर्मचारियों का कुछ खास समर्थन विद्युत कर्मचारियों को नहीं मिलता रहा है। विद्युत कर्मचारी भी कई यूनियनों में विभाजित हैं और वे भी कभी संघर्ष तो कभी समझौतापरस्ती का रुख अपनाते रहे हैं। इससे उनकी एकता भी कमजोर पड़ती रही है।
विद्युत उत्पादन-वितरण का निजीकरण इस क्षेत्र के कर्मचारियों की रोजगार सुरक्षा को तो चौपट करेगा ही, साथ ही वह उपभोक्ताओं को महंगी विद्युत खरीदने को भी मजबूर करेगा। इसीलिए वक्त रहते विद्युत निजीकरण के खिलाफ व्यापक एकजुटता व संघर्ष जरूरी है।
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