उत्तराखंड विद्युत संविदा कर्मियों का आंदोलन, सरकार की बेरुखी, वादाखिलाफी व दमन की नीति

    उत्तराखंड जल विद्युत ऊर्जा के तीनों ही निगमों पारेषण, उत्पादन व वितरण के लगभग 3000 से ज्यादा कर्मी जो कि अलग-अलग पदों पर कार्यरत हैं सभी संविदा पर रखे गए हैं। ये सभी उपनल के माध्यम से भर्ती किए गए हैं। ये संविदाकर्मी पिछले 3-4 वर्षों से अपने नियमितीकरण या विभागीय संविदा के तहत रखे जाने समेत अन्य मांगों के लिए संघर्ष करते रहे हैं। यह संघर्ष विद्युत संविदा कर्मचारी संगठन के नेतृत्व में चलाया जा रहा है जो कि कांग्रेस की ट्रेड यूनियन सेंटर इंटक से सम्बद्ध है। <br />
       इस बार भी मांग के संबंध में हुए त्रिपक्षीय समझौते के लागू ना होने की स्थिति में संविदाकर्मी पुनः 28 अक्तूबर से हड़ताल पर चले गए थे तब यूनियन नेतृत्व का अनुमान था कि दीपावली में बिजली की आपूर्ति बाधित हो जाने की स्थित में सरकार को उनकी मांगें माननी पड़ेंगी। 28 अक्तूबर की दोपहर से ही राजधानी देहरादून में ऊर्जा भवन के गेट पर लगभग दो तीन सौ संविदाकर्मियों ने धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया गया। लेकिन ऊर्जा प्रबंधन द्वारा इन्हें यहां पर टेंट नहीं लगाने दिया। गेट पर धरने को प्रतिबंधित कर दिया गया। पुलिस फोर्स बुला ली गई। लगभग 177 संविदाकर्मियों को गिरप्तार कर लिया गया । <br />
    अगले दिन 29 अक्तूबर को फिर धरना प्रदर्शन हुआ तो लगभग 60 संविदाकर्मियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इन सभी संविदाकर्मियों को फिर निजी मुचलके पर रिहा किया गया। ऊर्जा गेट पर ही प्रदर्शन अगले दिन भी चलता रहा। गेट पर ही रात-दिन डटे रहने की कोशिश की गई लेकिन प्रबंधन के अडियल रुख के चलते 2 नवंबर की सुबह होने से पहले ही यहां से लगभग 10 किमी दूर विधानसभा के पास स्थित बी. एस.एन.एल. टावर में चार संविदाकर्मी चढ़ गए और वहां से मांगें माने जाने की स्थिति में ही टावर से उतरने की बात शासन-प्रशासन से की। और लगभग 200-300 संविदाकर्मी यहां टावर के नीचे धरने पर बैठ गए।<br />
    इसी दिन 2 नवंबर की सुबह-सुबह जब कुछ संविदाकर्मी वहीं विधायक सुबोध उनियाल से मिलने गए तो उसने संविदाकर्मियों को अपमानित किया। धीरे-धीरे आंदोलन के इस रूप का दबाव बनने लगा था। प्रशासन ने भी पुलिसकर्मियों व कुछ अधिकारियों को वहां पर तैनात कर दिया। 4 नवम्बर को 4 संविदाकर्मी यहीं पर आमरण अनशन पर बैठ गए। इसी दिन दोपहर में ए.डी.एम. हरक सिंह रावत अनशन स्थल पर पहुंचे। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री महोदय संविदाकर्मियों से फोन पर बातचीत करना चाहते हैं। संविदाकर्मियों के नेतृत्व ने जब सहमति जताई तो ए.डी.एम. ने कहा कि मुख्यमंत्री बात तभी करेंगे जब टावर पर चढ़े 4 संविदाकर्मी नीचे उतर जाएं। नेतृत्व व सभी संविदाकर्मियों ने जब इससे इंकार किया तो ए.डी.एम. ने परोक्ष तौर पर आंदोलन के दमन की धमकी दी। लेकिन कुछ वक्त गुजर जाने के बाद जब ए.डी.एम. फोन पर बात कराने को तैयार हुए तब मुख्यमंत्री महोदय ने वक्त ना होने की बात कहकर संविदाकर्मियों से बात करने से इंकार कर दिया। <br />
    और फिर शाम होते-होते संविदाकर्मियों को आतंकित करने व उनमें दहशत पैदा करने के लिए तकरीबन 7-8 बजे  ए.डी.एम. व एस. एस.पी. के नेतृत्व में भारी पुलिस बल धरना स्थल पर पहुंच जाती है। टावर के नीचे गद्दे लगाने व इसके चारों ओर जाल लगाने की तैयारी होने लगती है। इस प्रकार शासन व पुलिस प्रशासन संविदाकर्मियों व विशेषकर उनके नेतृत्व को अपने दबाव में लेने में कामयाब हो जाता है। टावर पर चढ़े 4 संविदाकर्मियों को नीचे उतरने को कहा जाता है। दमन होने की आशंका के चलते संविदाकर्मी नीचे उतर आते हैं। संविदाकर्मियों को आश्वासन दिया जाता है कि 5 नवम्बर को मुख्यमंत्री से वार्ता हो जाएगी। अपने मकसद में कामयाब होने के बाद प्रशासन व पुलिस बल चला जाता है तथा टावर पर चढ़े संविदाकर्मियों पर 309 (आत्महत्या का प्रयास) का मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है। <br />
    संविदाकर्मी अपने 4 अनशन में बैठे साथियों के साथ अब वहां से 5 किमी. दूर परेड ग्राउंड पर आ जाते हैं। वार्ता के आश्वासन का झुनझुना पूरा नहीं हो पाता है और फिर यहां पर अनशन के पांचवे-छठवें दिन जबकि धीरे-धीरे शासन-प्रशासन पर दबाव बनने लगा था। हीरा सिंह बिष्ट(भूत पूर्व श्रम मंत्री) द्वारा मात्र वार्ता कराने के आश्वासन पर अनशन तोड़ दिया जाता है। आंदोलन को अब लगभग एक माह होने को है लेकिन वार्ता के लिए अभी भी इंतजार है। <br />
    आंदोलन अभी भी चल रहा है। आंदोलन में इस बार नहीं पिछली दफा भी ऊर्जा भवन के सामने चले आमरण अनशन आंदोलन में  कमजोरी दिखाई गई थी। इस बार भी जब दोनों मौके पर दबाव शासन पर बना था तो शासन-प्रशासन की तिकड़मों व रुख के दबाव में आकर पीछे हटने का कदम उठाया गया। इस बात को संविदाकर्मी भी महसूस कर रहे हैं कि ये ऐसे मौके थे जहां और दबाव बनाकर कुछ हासिल किया जा सकता था। <br />
    पिछली दफा चले आंदोलन में 14 मार्च 2013 को त्रिपक्षीय समझौता हुआ था जिसमें मुख्यमंत्री के प्रतिनिधि के बतौर विधायक सुबोध उनियाल, विजयपाल सिंह सजवाण संसदीय कार्यमंत्री, ए.के. जौहरी प्रबंध निदेशक(यू.पी.सी.एल.) जी.पी. पटेल प्रबंध निदेशक(यू.जी.वी.एन.लि.) इंटक के महामंत्री व विद्युत संविदा संगठन के अध्यक्ष व महामंत्री शामिल थे। इस समझौते के मुताबिक उपनल के माध्यम से भर्ती ऊर्जा के तीनों निगमों विद्युत संविदाकर्मियों को तीन माह में नियमावली जारी कर फिर विभाग में संविदा के तहत समायोजित किया जाना था। लेकिन यह समझौता अब तक लागू नहीं हो पाया। इसे लागू करने की मांग पर आंदोलन चल रहा है।  <br />
    उत्तराखंड सरकार जहां राज्य स्थापना दिवस के दिन व उससे एक दिन पहले हुई बैठक में विभाग के तहत संविदा में कार्यरत कर्मियों को नियमित करने की घोषणा कर चुकी है जिसके तहत 18000 से ज्यादा संविदा कर्मी नियमित होने हैं व भविष्य में संविदा पर भर्ती ना करने की बात कर रही है। यह घोषणा मात्र हवाई है या हकीकत कुछ वक्त गुजरने के बाद पता लगेगा। उत्तराखंड आपदा से अब तक राहत के नाम पर जो कुछ हवाई घोषणायें व योजनाएं हो रही हैं उनकी हकीकत सभी जानते हैं। इसके अलावा जहां एक ओर राज्य सरकार को शिक्षा मित्रों की मानदेय बढोत्तरी या कर्मचारियों के 2800 के ग्रेड पे को 4200 किए जाने की मांग सरकारी खजाने पर बोझ लगती है तब इस बात की संभावना बनती है कि 2014 के लोक सभा चुनाव के लिए ये सारी घोषणाएं हो रही हों। <br />
     इन घोषणाओ पर प्रश्न चिह्न इसलिए भी लगता है कि राज्य सरकार ने उपनल को ठेकेदार या आउटसोर्सिंग कंपनी में बदल दिया है। उपनल के माध्यम से संविदा में रखे गए हजारों कर्मियों से इसकी दलाली के रूप में करोड़ों रुपए की कमाई होती है। प्रति संविदाकर्मी दो से तीन हजार रुपये उपनल के पास कमीशन के रूप में चले जाते हैं। सरकार जब ये आदेश तक पारित नहीं करतीं कि उपनल को आउटसोर्सिंग एजेंसी के रूप में खत्म करके सभी संविदाकर्मियों को विभागीय संविदा के तहत रखा जाय। तब घोषणाओं पर सवाल उठना स्वाभाविक है। <br />
    जब पूंजीपति वर्ग के पक्ष में नग्न होकर संविदाकरण व ठेकाकरण का दौर सरकार चला रही हो, मजदूर कर्मचारी विरोधी नीतियों को लागू कर रही हो साम्राज्यवादी मुल्कों से किए गए समझौते के तहत सरकारी कर्मचारियों की संख्या को कम करते जाना व सुविधाओं में कटौती करते जाना हो तब ऐसी घोषणायें खुद में सवाल पैदा कर देती हैं। हालांकि करोड़ों कामगारों की बरबादी की कीमत पर मुट्ठी भर कामगारों को सुविधाए देने की संभावनाएं मौजूद रहती हैं। सरकारें ऐसी घोषणा कर सकती हैं और एक हद तक उसको लागू भी कर सकती हैं। सरकार का ऐसा करना भी पूंजीपति वर्ग के पक्ष में ही होता है। <br />
    बहरहाल विद्युत संविदाकर्मी आंदोलन पर डटे हुए हैं। नेतृत्व व सभी संविदाकर्मियों को इन समग्र स्थितियों को ध्यान में रखना होगा पूंजीवादी राजनीतिक पार्टियों भाजपा, कांग्रेस आदि आदि व इनकी ट्रेड यूनियन सेंटर के झांसे में ना आकर अपने यूनियन को और ज्यादा जुझारू व संघर्षशील बनाना होगा। <br />
                <strong> देहरादून संवाददाता </strong>

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