भीमताल बस हादसा : 4 लोगों की मौत, दो दर्जन लोग घायल

/bheemtaal-bus-haadasaa-4-logon-ki-maut-do-dozens-log-ghayal

हल्द्वानी/ 25 दिसम्बर को पिथौरागढ़ से हल्द्वानी आ रही रोडवेज की बस नैनीताल में भीमताल इलाके में वोहरा कुन के पास 150 फीट गहरी खाई में गिर गयी। इस दुर्घटना में 4 लोगों की मौत हो गयी और दो दर्जन लोग घायल हो गये। बताया जा रहा है कि गलत दिशा से आ रही आल्टो कार को बचाने के चक्कर में बस खाई में गिर गयी।
    
लेकिन इसके अलावा और भी कई ऐसे कारण हैं जो लगातार हो रही इन बस दुर्घटनाओं की जड़ में हैं। जिस बस को पिथौरागढ़ भेजा गया था वह अपनी पूरी अवधि पार कर चुकी थी यानी अब वह सड़क पर चलाने के लायक नहीं रह गयी थी। इसके बावजूद उसे पहाड़ भेज दिया गया।
    
कहीं बस में ज्यादा सवारी भरना भी दुर्घटनाओं का कारण बन जाता है। अभी कुछ दिनों पहले ही (5 नवंबर) पौड़ी गढ़वाल के बराथ गांव से रामनगर आ रही बस हादसे में करीब 40 लोगों की मौत हो गयी थी। इस बस में 60-65 लोग सवार थे। कहीं सड़कों पर बने गड्डे भी दुर्घटनाओं की वजह बन जाते हैं।
    
इसी तरह 18 नवंबर को रामनगर (नैनीताल) से गुरुग्राम जा रही बस रास्ते में हल्दुआ के पास नियंत्रण खो बैठी थी। यह हादसा ड्राइवर को हार्ट अटैक की वजह से हुआ। हालांकि इस दुर्घटना में किसी की मौत नहीं हुई। बाद में यह भी पता चला कि उस ड्राइवर का बी पी बढ़ा हुआ था। यानी बस ड्राइवर बस को चलाने के लिए फिट ही नहीं था उसे बस पर भेज दिया गया।
    
इन दुर्घटनाओं का तात्कालिक कारण कुछ भी हो सकता है लेकिन इसकी जड़ में यह पूंजीवादी व्यवस्था है। इस व्यवस्था के तहत आज जो भी नीतियां बनायी जा रही हैं उसमें पूंजीपति वर्ग का मुनाफा देखा जा रहा है और इसके लिए राज्य के कल्याणकारी ढांचे को खत्म किया जा रहा है। परिवहन विभाग को भी लगातार निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। रोडवेज में भी लगातार ठेके पर नौकरियां भरी जा रही हैं। बसों की संख्या कम हो रही है जिसकी वजह से खटारा बसों को यात्रियों को लाने ले जाने के लिए लगा दिया जाता है। जो लोग काम कर रहे हैं उन पर काम का भारी दबाव रहता है।
    
सरकार दुर्घटनाओं को रोकने और नागरिकों की सुरक्षा के नाम पर निजी वाहनों पर भारी जुर्माने लगाती है जैसे हेलमेट या सीट बेल्ट न बांधने के नाम पर हजारों रुपये का जुर्माना, वाहनों की फिटनेस और पुराने वाहनों को कुछ साल बाद चलन से बाहर करना आदि आदि कई कानून सरकार ने बनाये हुए हैं। लेकिन खुद उन मानकों का पालन नहीं करती है और अपने उम्र पूरी करने वाले वाहनों को सडक पर चलाती है और यात्रियों की जान को जोखिम में डाल देती है।
    
इस बस दुर्घटना ने एक बार फिर स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल पट्टी खोल कर रख दी है। आयुष्मान योजना की आड़ में सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था इतनी जर्जर हो चुकी है कि वे आकस्मिक दुर्घटनाओं के अवसर पर घायलों की मदद कर ही नहीं पाती। भीमताल के जिस इलाके में यह दुर्घटना हुई वहां से सी एच सी मात्र 1 किलोमीटर की दूरी पर था। लेकिन वहां पर घायलों के लिए एम्बुलेंस ही नहीं थी। इसके अलावा अन्य संसाधनों की कमी भी थी।
    
जब भी ऐसी दुर्घटनाएं होती हैं तो सरकार कुछ रुपये देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है। क्या किसी इंसान की जान की कीमत कुछ लाख रुपये है। आगे ऐसी दुर्घटनाएं न हों इसकी तरफ सरकार कोई कदम नहीं उठतीं। कुछ दिनों में ये दुर्घटनाएं भुला दी जाती हैं।

आलेख

/ceasefire-kaisa-kisake-beech-aur-kab-tak

भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

/terrosim-ki-raajniti-aur-rajniti-ka-terror

आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।

/modi-government-fake-war-aur-ceasefire

युद्ध विराम के बाद अब भारत और पाकिस्तान दोनों के शासक अपनी-अपनी सफलता के और दूसरे को नुकसान पहुंचाने के दावे करने लगे। यही नहीं, सर्वदलीय बैठकों से गायब रहे मोदी, फिर राष्ट्र के संबोधन के जरिए अपनी साख को वापस कायम करने की मुहिम में जुट गए। भाजपाई-संघी अब भगवा झंडे को बगल में छुपाकर, तिरंगे झंडे के तले अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने के लिए ‘पाकिस्तान को सबक सिखा दिया’ का अभियान चलाएंगे।

/fasism-ke-against-yuddha-ke-vijay-ke-80-years-aur-fasism-ubhaar

हकीकत यह है कि फासीवाद की पराजय के बाद अमरीकी साम्राज्यवादियों और अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादियों ने फासीवादियों को शरण दी थी, उन्हें पाला पोसा था और फासीवादी विचारधारा को बनाये रखने और उनका इस्तेमाल करने में सक्रिय भूमिका निभायी थी। आज जब हम यूक्रेन में बंडेरा के अनुयायियों को मौजूदा जेलेन्स्की की सत्ता के इर्द गिर्द ताकतवर रूप में देखते हैं और उनका अमरीका और कनाडा सहित पश्चिमी यूरोप में स्वागत देखते हैं तो इनका फासीवाद के पोषक के रूप में चरित्र स्पष्ट हो जाता है। 

/jamiya-jnu-se-harward-tak

अमेरिका में इस समय यह जो हो रहा है वह भारत में पिछले 10 साल से चल रहे विश्वविद्यालय विरोधी अभियान की एक तरह से पुनरावृत्ति है। कहा जा सकता है कि इस मामले में भारत जैसे पिछड़े देश ने अमेरिका जैसे विकसित और आज दुनिया के सबसे ताकतवर देश को रास्ता दिखाया। भारत किसी और मामले में विश्व गुरू बना हो या ना बना हो, पर इस मामले में वह साम्राज्यवादी अमेरिका का गुरू जरूर बन गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अपने मित्र मोदी के योग्य शिष्य बन गए।