पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नहीं रहे। पूंजीवादी मीडिया उनकी विनम्रता के गुणगान कर रहा है। बेशक वे एक विनम्र प्रधानमंत्री थे। उनमें इंदिरा-राजीव या मोदी की तरह अकड़ का नामोनिशान तक नहीं था। पर अगर भारतीय मेहनतकश जनता के नजरिये से देखा जाए तो शासक वर्ग के इस प्यादे ने जनता को जो जख्म दिये, उसके घाव बहुत गहरे हैं।
मनमोहन सिंह को 1991 में उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की जनविरोधी नीतियों को बतौर वित्तमंत्री भारत में लागू करने के लिए हमेशा न सिर्फ याद रखा जायेगा बल्कि हमेशा कोसा जायेगा। ये नीतियां बीते 3-4 दशकों से भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित करती रही हैं। भारतीय कृषि के गहराते संकट में इन नीतियों की भारी भूमिका थी। कृषि आगतों यथा बीज, पानी, उर्वरक, विद्युत आदि के दाम बढ़ने के साथ-साथ कृषि के बाजार की ताकतों के हवाले होने में इन नीतियों की भारी भूमिका रही है। कृषि के इस संकट से करोड़ों छोटे-मझोले किसान तबाह हुए हैं, लाखों किसानों ने आत्महत्यायें की हैं। किसानों की अनवरत जारी इन हत्याओं का दाग मनमोहन सिंह के माथे पर लगा हुआ था।
इन नीतियों के परिणामस्वरूप कल्याणकारी राज्य (जो कि पहले से ही भारत में बेहद कमजोर था) का खात्मा किया गया। सरकार ने शिक्षा-इलाज-रोजगार देने की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। सरकारी संस्थानों के निजीकरण की मुहिम चल पड़ी। महंगी होती शिक्षा, महंगा इलाज और आसमान छूती बेकारी ने बीते 30-35 वर्षों में अनगिनत युवाओं की आशाओं-उम्मीदों को चकनाचूर करने का काम किया है। उनकी बदहाली के प्रमुख दोषियों में मनमोहन सिंह अग्रणी रहेंगे।
खनिज सम्पदा को पूंजीपतियों को लुटाने, भ्रष्टाचार की चौतरफा नदियां बहाने, दमन के क्रूर काले कानून बनाने, लुटेरी साम्राज्यवादी पूंजी को लूट की खातिर देश में बुलाने आदि कुकर्मों के लिए मनमोहन सिंह हमेशा याद रखे जायेंगे। इनके शासन में व्याप्त भ्रष्टाचार, अमीरी-गरीबी की बढ़ती खाई पर सवार होकर इनसे कई गुना शातिर हिंदू फासीवादी मोदी सत्ता तक जा पहुंचा। मोदी-शाह मण्डली को सत्ता की सीढ़ियां चढ़ाने में मनमोहन सिंह की नीतियों की कम भूमिका नहीं रही।
निश्चय ही अपनी नीतियों की मार से त्रस्त जनता के दुःखों पर पानी के छीटें डालने, उसके गुस्से से व्यवस्था को बचाने के लिए मनमोहन काल में मनरेगा, सूचना अधिकार, खाद्यान्न गारंटी सरीखी कुछ योजनायें बनायी गयीं। पर मनमोहन सिंह द्वारा शुरू की गयी नीतियों के जख्मों के आगे इन योजनाओं की राहत कहीं नहीं ठहरती।
पूंजीपतियों की दौलत, लूट को चार चांद लगाने में मनमोहन सिंह की भूमिका हमेशा स्वीकारी जायेगी। पूंजीपति वर्ग हमेशा अपने इस नायक को याद रखेगा। पर मजदूर-मेहनतकश मनमोहन सिंह को मेमने की खाल ओढ़े उस भेड़िये की तरह याद रखेंगे जो विनम्रता से उनका गला रेतने की नीतियां देश में लागू करने की शुरूआत कर गया।