लालकुंआ/ उत्तराखण्ड राज्य के लालकुआं में स्थित सेन्चुरी पल्प एण्ड पेपर मिल में इन दिनों मजदूरों की पहलकदमी देखने को मिल रही है, ऐसी पहलकदमी सेन्चुरी मिल के इतिहास में लम्बे वक्त बाद देखने को मिली है।
सेन्चुरी मिल भारत में एक ही स्थान से पेपर, बोर्ड (कागज की मोटी परत), टिश्यु और पल्प (लुगदी) की सबसे बड़ी निर्माताओं में से एक है जिसकी क्षमता लगभग 1450 मीट्रिक टन (डज्) प्रतिदिन है। यह मिल 1984 से परिचालन में है।
सेन्चुरी मिल में अभी निश्चित अवधि समझौता एल टी एस (स्ज्ै. स्वदह ज्मतउ ैमजजमसउमदज) 2024-2027 के लिए प्रबंधक वर्ग और श्रम संगठनों के बीच वार्ताओं का दौर जारी है।
मिल के श्रमिकों द्वारा पहलकदमी का स्वरूप इस प्रकार होता है कि श्रमिक सभी श्रम संगठनों के पदाधिकारियों को (विशेष रूप से उन पदाधिकारियों को जो समझौते की वार्ताओं में बैठते हैं) समझौते के स्वरूप में बातचीत करने के लिए बुलाते हैं क्योंकि सितम्बर माह से शुरू वार्ताओं का परिणाम किसी भी श्रमिक के समझ से परे होता है।
श्रमिकों द्वारा यह बैठक पहली दफा 21 सितम्बर 24 को कारखाने के मुख्य कैन्टीन में बुलायी गयी जिसमें सभी श्रम संगठनों के पदाधिकारियों ने भागीदारी की।
सेन्चुरी मिल के सभी श्रमिकों के प्रतिनिधित्व के रूप में वर्तमान में मिल में छः श्रम संगठन कायम हैं।
21 सितम्बर 24 को मुख्य कैंटीन में मीटिंग में लगभग 250-300 श्रमिक शामिल हुए और उन्होंने एक स्वतंत्र मांगपत्र यूनियन के पदाधिकारियों को प्रेषित किया (ज्ञात हो कि सभी श्रम संगठन प्रबंधक वर्ग को अपना-अपना चार्टर ऑफ डिमांड जनवरी 2024 के अंत में ही दे चुके हैं।)। श्रमिकों के मांग पात्र में निम्न मांगें होती हैं-
1. न्यूनतम 10,000 (दस हजार रुपये) तक मासिक वृद्धि।
2. मेडिक्लेम पॉलिसी 6 लाख रुपये सालाना हो।
3. सभी श्रमिकों को सीनियरिटी अलाउंस वरिष्ठता भत्ता 800 रुपये मिले।
4. टण्क्ण्।ण् (परिवर्तनीय महंगाई भत्ता) नियमानुसार देय हो।
5. इंजीनियरिंग विभाग (इलेक्ट्रिकल, इन्स्ट्रूमेंट और मेकेनिकल) में प्रमोशन एवं पूर्व की भांति इन श्रमिकों को शिफ्ट में ड्यूटी में बुलाया जाए।
इन बिन्दुओं के अलावा एक मुख्य सवाल यही रहता है कि समझौते में इतनी देरी क्यों हो रही है? उपरोक्त सभी बिन्दुओं पर सभी श्रम संगठन अपनी-अपनी राय रखते हैं। सभी श्रमिक नेता इन सक्रिय श्रमिकों की इस पहल को ना-नुकुर के साथ अच्छा-बुरा बताते हैं लेकिन कुल लब्बोलबाव यही होता है कि आप सभी श्रमिकों को यह सब नहीं करना चाहिए।
उक्त मीटिंग में जब सेन्चुरी श्रमिक कल्याण संघ, यूनियन के अध्यक्ष ए के त्यागी अपनी बात रख ही रहे होते हैं तो उनकी बात का जबरदस्त विरोध श्रमिकों की तरफ से होता है। क्योंकि ऐसा खुला मंच श्रमिकों को कभी मिला ही नहीं उनके मन में जो भी पीड़ायें होती हैं वो सभी व्यक्त करते हैं। सही-गलत जो भी हो, क्योंकि इन श्रम संगठनों ने कभी मजदूरों को अपनी भावनाएं व्यक्त करना भी सिखाया नहीं।
अंत में श्रमिक सभी श्रम संगठनों ने आश्वासन मांगते हैं कि सेटलमेंट में पैकेज खुलने के बाद जब सभी नेता हस्ताक्षर करेंगे तो उससे पहले समझौते के ड्राफ्ट को गेट मीटिंग के माध्यम से सभी श्रमिकों के सामने रखेंगे।
इसी क्रमानुसार श्रमिक दुबारा से एल टी एस के सम्बन्ध में अपनी समस्याएं रखने के लिए 13 अक्टूबर 24 को 5ः30 शाम को मुख्य द्वार की कैंटीन में सभी श्रम संगठनों को बुलाते हैं, लेकिन इस बार सेन्चुरी श्रमिक कल्याण संघ का कोई पदाधिकारी शामिल नहीं होता है और कुछ संगठनों के नेता न आने के लिए बहाना बनाते हैं। 13 अक्टूबर की मीटिंग शुरू होने से पहले ही प्रबंधक वर्ग मुख्य द्वार की कैंटीन बंद कर देता है ताकि मजदूर बैठक न कर सकें।
लेकिन श्रमिक अपने हौंसले का परिचय देते हुए कैंटीन के बाहर ही खुले मैदान में बैठक प्रारम्भ करते हैं। उक्त बैठक में मजदूर श्रमिक नेताओं को खूब खरी-खोटी सुनाते हैं और सभा के सामने उपस्थित न हो सके नेताओं की आलोचना करते हैं और उनके झूठ का भण्डाफोड करते हैं कि मान्यवर नेतागण अब आपको श्रमिकों के प्रति अपनी जवाबदेही तय करनी पड़ेगी।
उक्त बैठक में श्रमिक नेताओं से समझौते की वार्ताओं का परिणाम पेश करने में लिखित पारदर्शिता की मांग करते हैं, नेताओं की मजदूरों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करने की मांग करते हैं और बेहद जायज आरोप लगाते हैं कि आज श्रमिक अपने नेताओं से मिलने को या बात करने को तैयार हैं लेकिन नेता बात नहीं कर रहे हैं।
फिर 18 अक्टूबर 24 को प्रबंधक वर्ग दिवाली का बोनस 20 प्रतिशत देने की घोषणा करता है। इससे पहले 16 अक्टूबर 24 की वार्ता में प्रबंधक वर्ग अपना 3316 रुपये वेतन वृद्धि का पैकेज खोलता है। सी.टी.सी. में। सभी श्रमिकों की ओर से यही आह निकलती है कि खोदा पहाड़ निकली चुहिया। फिर 24 अक्टूबर 24 को एलटीएस की वार्ता में प्रबंधक वर्ग आर्थिक मांग में केवल 50 रुपये की बढ़ोत्तरी करता है। फिर इसके बाद प्रबंधक वर्ग 16 नवम्बर 24 को एलटीएस की वार्ता बुलाता है और इसमें वरिष्ठता भत्ता 800 रुपये देने की बात करता है वो भी अपने जारी आर्थिक पैकेज में से ही, जिसका सभी श्रम संगठन दबी आवाज में विरोध करते हैं। अगली वार्ता 19 नवम्बर 24 को बुलाने की बात करता है लेकिन 19 नवम्बर 24 को वार्ता नहीं बुलायी जाती है। इसका कारण श्रमिकों को नहीं बताया जाता है।
उपरोक्त असमंजस में सभी श्रमिक फिर अपने आप को असहाय पाते हैं क्योंकि कुछ श्रम संगठन, गेट मीटिंग करने का आश्वासन देते हैं लेकिन इसको भी पूरा नहीं करते हैं। फिर संघर्षरत श्रमिकों के सब्र का बांध टूट जाता है।
फिर एक बार श्रमिक एक बैठक का आयोजन कम्पनी से बाहर करते हैं। 26 नवम्बर 24 को शहीद स्मारक लालकुंआ में। इस बैठक में राजनीतिक पार्टी कांग्रेस से जुड़े राज्य आंदोलनकारी हरीश पनेरू उन्हें अपना समर्थन देने पहुंचते हैं। इस बार श्रमिकों के निशाने पर यूनियन नेता नहीं बल्कि प्रबंधक वर्ग होता है और खुली चुनौती प्रबंधक वर्ग को श्रमिक देते हैं कि 30 नवम्बर 24 तक आप समझौता करें नहीं तो इसके बाद हम उग्र आंदोलन करेंगे। इस मीटिंग को रोकने पुलिस भी आती है। इस पूरे प्रकरण में सभी श्रम संगठन तटस्थ रहते हैं।
इस पूरे ही संघर्ष में मुख्य बात यह होती है कि संघर्षरत मजदूरों को अपनी जायज लड़ाई के लिए जो समझ में आता है वो करते हैं बिना किसी नेतृत्व के स्वतः स्फूर्त तरीके से। यूनियनें समझौतापरस्त हैं और संघर्षरत मजदूर स्वतः स्फूर्त तरीके से उन पर दबाव बना रहे हैं। मजदूरों को अपनी पहलकदमी ज्यादा कारगर बनाने के लिए एकजुटता मजबूत करने की ओर बढ़ना होगा अन्यथा वे फिर छले जायेंगे।
सेन्चुरी मिल के संघर्षरत श्रमिकों को सलाम पेश करते हुए ‘‘अवतार सिंह संधु’’ या ‘‘पाश’’ की कविता ‘‘हम लड़ेंगे साथी’’ के कुछ अंश-
हम लड़ेंगे साथी
जब तक पुलिस के सिपाही अपने ही भाइयों को गला घोंटने को मजबूर हैं
हम लड़ेंगे साथी, हम लड़ेंगे जब तक दुनिया में लड़ने की जरूरत बाकी है
जब बंदूक न हुई, तब तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग ना हुआ तो लड़ने की जरूरत बाकी होगी
हम लड़ेंगे कि अब तक लड़े क्यों नहीं
अपनी सजा कबूलने के लिए, लड़ते हुए मर जाने वानले की याद जिन्दा रखने के लिए हम लड़ेंगे !
-एक पाठक, लालकुंआ