सम्भल हिंसा : 5 लोगों की मौत, जिम्मेदार कौन

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24 नवंबर को मुरादाबाद के सम्भल में जामा मस्जिद में सर्वे के दौरान हिंसा भड़क उठी और इस हिंसा में 5 लोगों की मौत हो गयी। इस हिंसा के बाद एक बार फिर मुसलमान समुदाय को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराकर उसके खिलाफ विष वमन शुरू हो गया है।
    
भारत में जब से केन्द्र में भाजपा की सरकार बनी है तब से वह कई तरह से हिंदू-मुस्लिमों के बीच तनाव पैदा कर रही है (हालांकि संघ यह काम अपने जन्म के समय से कर रहा है लेकिन केंद्र में सत्ता हासिल करने के बाद इस अभियान में तेजी आ गयी है)। इन तरीकों में एक तरीका है मुगल काल में मुगल शासकों द्वारा मंदिरों को तोड़ कर मस्जिद बनाने के नाम पर भ्रम पैदा करना और अब मस्जिदों को तोड़कर मंदिर बनाने के अभियान के जरिये हिंदू आबादी के बीच श्रेष्ठता बोध स्थापित करना।
    
इसी अभियान के तहत पहले अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का अभियान चलाया गया। राम मंदिर बनने के बाद मथुरा-काशी में भी इसी तरह के अभियान की शुरुआत की गयी। काशी में जब ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का मामला उठा तब इस पर खूब बवाल हुआ लेकिन बाद में वह मुद्दा ठंडा पड़ गया। लेकिन हाल के दिनों में सम्भल में जामा मस्जिद का मुद्दा उठ गया। और इस मामले पर स्थानीय न्यायालय ने जिस तरह तत्परता दिखाई उससे मामला और संदेहास्पद हो जाता है।
    
दरअसल 19 नवंबर को विष्णु शंकर जैन नाम के वकील ने सम्भल की कोर्ट में एक याचिका दायर की कि सम्भल की जो जामा मस्जिद है वह वास्तव में हिन्दुओं का हरिहर मंदिर है जो कल्कि अवतार हैं। 1526 में बाबर के हमले के समय यह मंदिर तोड़कर मस्जिद का निर्माण करवाया गया था। अतः इस मस्जिद के सर्वे की इजाजत दी जाए। ज्ञात हो कि इस मस्जिद को भारतीय पुरातत्व विभाग ने ऐतिहासिक इमारत के तहत संरक्षित की श्रेणी में डाल रखा है। इसके अलावा दूसरे पक्ष को सुने बिना ही कोर्ट ने ढ़ाई घंटे की सुनवाई के बाद मस्जिद के सर्वे की इजाजत दे दी और मात्र 6 दिन में अपनी रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। इस कार्यवाही के लिए एक कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर दिया और कोर्ट कमिश्नर ने उसी दिन शाम को जाकर पहले चरण का सर्वे कर लिया। दूसरा सर्वे 24 नवंबर को किया जाना था। कोर्ट द्वारा दूसरे पक्ष को सुने बिना दिये गये इस फैसले के बावजूद जामा मस्जिद की कमेटी ने शांतिपूर्वक सर्वे का काम पूरा करवाया।
    
इसी बीच 22 नवंबर को जुमे की नमाज थी। उस समय पुलिस ने भारी सख्ती कर रखी थी। इससे भी मुस्लिम समुदाय में संदेह पैदा होने लगा। 24 नवंबर को सुबह 6 बजे के आस-पास पुलिस और शासन-प्रशासन दल-बल के साथ सर्वे के लिए पहुंचा। मस्जिद के बुजुखाने की नाप लेने के लिए एस डी एम ने उसे खाली करवा दिया। जब पानी मस्जिद के बाहर निकला तब बाहर मौजूद लोगों के बीच इस तरह की बात होने लगी कि मस्जिद में खुदाई हो रही है। उस समय बाहर मौजूद पुलिस के व्यवहार ने लोगों को और नाराज कर दिया।
    
देखते ही देखते पुलिस और स्थानीय मुसलमान आबादी आमने-सामने आ गये। स्थानीय आबादी में से कुछ ने जहां पत्थर फेंके वहीं पुलिस ने जवाब में गोलियां चलायीं। इस गोलीबारी में 5 लोगों (सभी मुस्लिम) के मारे जाने की पुष्टि हुई। स्थानीय लोगों के मुताबिक इन पांचों की मौत पुलिस की गोली से हुई है वहीं पुलिस के मुताबिक पांचों की मौत देशी तमंचे से हुई है।
    
लेकिन यह स्पष्ट है कि इस हिंसा में पांच लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। पुलिस ने 2500 से ज्यादा अज्ञात लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की है। अब मुस्लिम युवकों में भय है कि किसी को भी इस हिंसा से जोड़कर जेल में डाला जा सकता है और भविष्य बर्बाद किया जा सकता है। कई परिवार अपना घर-बार छोड़कर भाग चुके हैं।
    
पूंजीवादी प्रचार तंत्र जो आज संघ-भाजपा की भाषा बोल रहा है, वह इस हिंसा के लिए मुसलमान समुदाय को दोषी ठहरा रहा है। ऊपरी तौर पर किसी को भी देखने पर ऐसा लग सकता है। क्योंकि एक तरफ पुलिस और शासन है जो कोर्ट के आदेश पर सर्वे करने गये तथा दूसरी तरफ पत्थर फेंकते मुसलमान युवा। आम जनमानस में इस तरह का संदेश देने की कोशिश की जाती है कि शासन प्रशासन को शांतिपूर्वक कोर्ट के आदेश का पालन करने दिया जाता तो यह सब हिंसा नहीं होती और पांच लोग न मारे जाते। वहीं पूंजीवादी प्रचार तंत्र ड्रोन की सहायता से सड़कों पर बिखरे हुए ईंट-पत्थर दिखाकर आम जनमानस के अंदर मुसलमानों के खिलाफ नफरत का माहौल बना रहा है।
    
लेकिन बात इतनी सीधी नहीं है। आज लगातार यह बात की जाती है कि भारत के न्यायालयों में करोड़ों केस पेंडिंग हैं। हजारों लोग जेलों में ऐसे हैं जिनका सालों से मुकदमा ही नहीं शुरू हुआ है। किसी भी मामले की लम्बी-लम्बी तारीखें पड़ती हैं। ऐसे में सम्भल की कोर्ट मात्र ढ़ाई घंटे की सुनवाई पर एक मस्जिद का सर्वे करने का आदेश दे देती है और वह भी उस इमारत का जो भारतीय पुरातत्व विभाग के कब्जे में है। बिना भारतीय पुरातत्व विभाग और मुसलमान समुदाय को एक भी तारीख पर सुने बिना। और कोर्ट कमिश्नर भी उसी दिन सर्वे करने पहुंच जाते हैं। यह सब बिना किसी पूर्व तैयारी के तो नहीं हो सकता।
    
इसके अलावा 1991 में वर्शिप एक्ट बना जिसके तहत 1947 के बाद किसी भी धार्मिक स्थल में कोई बदलाव नहीं किया जायेगा। इस एक्ट का उल्लंघन खुद सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ करते हैं और ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने की इजाजत दे देते हैं। जब कानून की गलत परंपरा को खुद सुप्रीम कोर्ट शुरू कर रहा हो तो सम्भल की कोर्ट भी उसी नक्शे कदम पर चलकर 1991 के वर्शिप एक्ट का उल्लंघन करते हुए मस्जिद के सर्वे की इजाजत दे देती है।
    
उसके बाद शासन-प्रशासन और पुलिस प्रशासन के रुख की बात की जाए तो वह पहले भी सांप्रदायिक रहा है और अब तो हालात यह हैं कि उनको ऊपर से पूरी छूट मिली हुई है। जो पुलिस के आला अधिकारी एक चोर को अगली बार चोरी करने पर सीधे सीने में गोली मारने की धमकी देते हैं। ऐसी मानसिकता वाले अधिकारी पुलिस बल का नेतृत्व करते हैं। हिंसा भड़कने की स्थिति में वे ऐसा व्यवहार करते हैं मानो उन्हें इसी बात का इंतज़ार हो। अभी हाल ही में बहराइच में हुई हिंसा में भी पुलिस और शासन का व्यवहार देखने को मिल चुका है।
    
आज संघ-भाजपा जो सत्ता पर विराजमान हैं उनका मकसद सुदूर अतीत में हिंदू जनता पर मुस्लिम शासकों द्वारा किये गये व्यवहार को सांप्रदायिक नजरिये से पेश करना है। और फिर हिंदू आबादी को अतीत में उत्पीड़ित दिखाना है। और उसका बदला आज लेने के बहाने उनकी गोलबंदी कर सत्ता पर पहुंचना है। उनके इस काम में आज भारत का पूंजीपति वर्ग और उनका पूंजीवादी प्रचारतंत्र साथ खड़ा है। जनता की मूलभूत समस्याएं इन सबमें पीछे छूट जाती हैं।
    
ऐसे में यह जरूरी है कि संघ-भाजपा और पूंजीपति वर्ग के इस गठजोड़ का पर्दाफाश किया जाये और जनता को उनके मूलभूत मुद्दों पर गोलबंद किया जाये। तभी ऐसी हिंसाओं से समाज को बचाया जा सकता है।
 

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