वामपंथी ठप्पा और पूंजीवादी पट्टा
21 सितम्बर को श्रीलंका में राष्ट्रपति पद का चुनाव हुआ। 22 सितम्बर को परिणाम आ गया। अनुरा दिसानायके (उम्र 55 वर्ष) नये राष्ट्रपति चुने गये। उन्हें 42.31 प्रतिशत मत मिले। विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा 32.76 प्रतिशत मत पाकर दूसरे और रानिल विक्रमसिंघे 17 प्रतिशत मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे। मतगणना के पहले राउंड में जब किसी को बहुमत नहीं मिला तो गणना का दूसरा राउंड हुआ और अनुरा दिसानायके चुनाव जीत गये। अनुरा दिसानायके ने नेशनल पीपल्स पावर गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा। वे स्वयं जेवीपी (जनता विमुक्ति पेरामुना) पार्टी से हैं।
उनके चुनाव जीतते ही पूंजीवादी प्रचारतंत्र ने उनके श्रीलंका के पहले वामपंथी राष्ट्रपति होने की बात की। भारत के भी पूंजीवादी प्रचारतंत्र ने उनके वामपंथी होने और भारत विरोधी बयानबाजी को लेकर शंका जाहिर की। ज्ञात हो कि अनुरा दिसानायके ने चुनाव में भारत के कई प्रोजेक्टों को बंद करने की बात की साथ ही अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा श्रीलंका को दिये जा रहे कर्ज की शर्तों के बारे में फिर से बात करने की भी बात की।
अनुरा दिसानायके के अतीत और उनके चुनावी वायदों को लेकर श्रीलंका में उनके राष्ट्रपति बनने को लेकर ढेर सारी बातें की जा रही हैं। उनकी चुनावी सभाओं में युवाओं और मजदूरों की मौजूदगी को लेकर ऐसी बातें की जा रही हैं कि अनुरा दिसानायके श्रीलंका की काया पलट देंगे। उनकी मजदूर मेहनतकश परिवार से आने की पृष्ठभूमि के आधार पर यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि वे मजदूरों की स्थिति में सुधार के लिए कार्य करेंगे। वे श्रीलंका में 2022 से जारी आर्थिक संकट को हल करेंगे।
अनुरा दिसानायके और उनकी पार्टी के बारे में बात की जाए तो पता चलता है कि अनुरा दिसानायके का जन्म 24 नवंबर 1968 को कोलम्बो से 400 किलोमीटर दूर एक छोटे से गांव गैलेवेला में एक दिहाड़ी मज़दूर के घर हुआ था। वे छात्र जीवन से ही जेवीपी पार्टी में शामिल हो गये। शुरू के दिनों में जेवीपी माओवादी धारा के साथ सशस्त्र आंदोलन द्वारा श्रीलंका की सत्ता पर कब्जा करना चाहती थी। 1970 और 1980 का दशक श्रीलंका में हिंसक विद्रोहों का दौर रहा। जेवीपी पार्टी पर भी हिंसा में शामिल होने का आरोप लगा। इन्हीं हिंसक विद्रोहों के दौरान जेवीपी पार्टी के संस्थापक की मौत हो गयी।
जेवीपी पार्टी के बारे में एक तथ्य और है। वह यह कि यह पार्टी भी सिंहली राष्ट्रवाद से प्रेरित रही है तथा तमिल आंदोलन के खिलाफ हिंसक गतिविधियों में भी यह शामिल रही है। जब 2009 में श्रीलंका में तमिलों के खिलाफ राजपक्षे सरकार ने सेना का प्रयोग कर उनका कत्लेआम किया तब भी जेवीपी ने उसका समर्थन किया था। अभी हाल के चुनावों में अनुरा दिसानायके को जो वोट मिले हैं उसमें अधिकांश वोट सिंहल और बौद्ध के मिलना इस बात की पुष्टि करता है। तमिलों (हिंदू और मुस्लिम) के वोट मात्र 10 प्रतिशत ही उनको मिले हैं।
अगर बात की जाए उनके मार्क्सवादी होने और इस हिसाब से नीतियों को लागू करने की तो पूंजीपति वर्ग इस बात से पूरी तरह आश्वस्त है कि वे उनके मुनाफे की राह में रुकावट नहीं बनेंगे। जब 2014 में अनुरा दिसानायके को जेवीपी की कमान मिली तभी से उन्होंने अपनी पार्टी की बची-खुची वामपंथी छवि से छुटकारा पाने के लिए जेवीपी के अतीत के लिए श्रीलंका के लोगों से माफी मांगी थी (दरअसल यह माफी श्रीलंका के पूंजीपतियों से ज्यादा थी)। इसके बाद उन्होंने 2019 में श्रीलंका के राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ा लेकिन उनको मात्र 3 प्रतिशत वोट मिले। लेकिन जब 2022 में श्रीलंका की आर्थिक स्थिति खराब हुई और राष्ट्रपति राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा तब ऐसी स्थिति में उनकी लोकप्रियता बढ़ती गयी। उनका सत्ता प्रतिष्ठानों से बाहर का व्यक्ति होने और मजदूर पारिवारिक पृष्ठभूमि ने उनको लोकप्रिय बनाने में भूमिका अदा की।
अनुरा दिसानायके राष्ट्रपति तो बन गये हैं लेकिन श्रीलंका की संसद में उनकी पार्टी के मात्र 3 ही सदस्य हैं। ऐसे में अगर यह मान भी लिया जाए कि वे अपने चुनावी वायदों को पूरा करेंगे तो भी उनकी राह में रुकावटें मौजूद रहेंगी।
दरअसल अनुरा दिसानायके पर भले ही मार्क्सवादी होने का ठप्पा लगा हो परन्तु उनके गले में जो पट्टा है वह पूंजीवाद का ही है। अनुरा दिसानायके और उनकी पार्टी का हस्र वैसा ही होगा जैसे ग्रीस में सिरिजा पार्टी का हुआ। जब 2015 में आर्थिक स्थिति खराब होने पर सिरिजा पार्टी ने ग्रीस की सत्ता संभाली थी तो उसने भी अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष की नीतियों की मुखालफत की थी और उनको बदलने का वायदा किया था लेकिन हुआ उसका उल्टा ही।
जल्द ही श्रीलंका के मज़दूर वर्ग को अहसास होगा कि उन्होंने भेड़ का खाल पहने भेड़िये को ही अपना राजा चुना है। अगर श्रीलंका के मजदूर वर्ग को अपनी मुक्ति करनी है तो उसे अपने वर्ग की सामूहिक ताकत पर भरोसा कर क्रांतिकारी संगठन का निर्माण करना होगा और श्रीलंका में मजदूर मेहनतकश का राज कायम करना होगा।