भस्मासुर बनी पुतिन की वैगनर सेना

रूस में निजी भाड़े की सेना वाली कम्पनी वैगनर के मालिक प्रिगोजिन ने विद्रोह कर दिया और 24 घण्टे के बाद उसने विद्रोह से पांव पीछे खींच लिया। उसकी भाड़े की सेना ने रूस के दक्षिण में रोस्तोव शहर में स्थित, सैनिक मुख्यालय पर कब्जा कर लिया और वह मास्को पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ गया। राजधानी मास्को 200 किमी. रह गई थी। इस दौरान राष्ट्रपति पुतिन की तरफ से बेलारूस के राष्ट्रपति लुकाशेंको ने प्रिगोजिन से बातचीत कर मध्यस्थता की। इसके पहले राष्ट्रपति पुतिन ने प्रिगोजिन के विद्रोह को देश के विरुद्ध गद्दारी और पीठ में छुरा भोंकना करार दिया था। मास्को के इर्द गिर्द सेना को तैयार कर दिया गया था। प्रिगोजिन के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई के लिए मुकदमे कर दिये गये थे। लेकिन लुकाशेंको की मध्यस्थता में हुए समझौते के बाद प्रिगोजिन के विरुद्ध मुकदमे वापस ले लिए गए। प्रिगोजिन को रूस छोड़कर बेलारूस जाने को कहा गया। प्रिगोजिन की वैगनर भाड़े की सेना के विद्रोह में भाग लेने वाले सैनिकों के विरुद्ध कोई कार्रवाई न करने की बात की गयी। विद्रोह में न भाग लेने वाले सैनिकों को उनके चाहने पर रूसी सेना के अंतर्गत ले लेने की घोषणा की गयी। इस तरह इस विद्रोह का पटाक्षेप फिलहाल के लिए हो गया। 
    
प्रिगोजिन को रूसी राष्ट्रपति ने ही पाला-पोसा था और उसे बढ़ावा दिया था। उसे अरबपति बनाने में राष्ट्रपति पुतिन की भूमिका थी। एक रेस्तरां के मालिक को निजी सेना की कम्पनी बनाने के लिए आगे बढ़ाने में राष्ट्रपति पुतिन की भूमिका थी। अपनी निजी सेना वैगनर के जरिये उसने राष्ट्रपति पुतिन की तरफ से सीरिया और लीबिया में तथा कई अफ्रीकी देशों में अपनी भूमिका निभायी थी। इसी दौरान उसने तेल और सोने की खदानों का उन देशों में निष्कर्षण का अधिकार हासिल कर लिया था। वह रूसी राज्य की तरफ से इन देशों में अपनी कारगुजारियां कर रहा था। रूस-यूक्रेन युद्ध में वैगनर के भाड़े के सैनिकों ने सोलेदार और बखमुत शहरों में कब्जा करने में अहम भूमिका निभाई थी। 
    
उसने बखमुत शहर में कब्जे के दौरान रूसी रक्षामंत्री और रूसी जनरलों पर यह आरोप लगाया था कि वे यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध को ठीक तरीके से संचालित नहीं कर रहे हैं। उसने वैगनर के सैनिकों को गोला-बारूद और हथियार न देने का आरोप भी रूसी सैन्य अधिकारियों पर लगाया था। विद्रोह के समय उसने रूसी रक्षा मंत्री और सेना प्रमुख को उसके हवाले करने की मांग की थी। लेकिन जब उसे रूसी सेना का समर्थन नहीं मिला, तभी वह पीछे हटने के लिए तैयार हुआ। 
    
राष्ट्रपति पुतिन की सत्ता धनिक अल्पतंत्र की सत्ता है। वे इन अरबपतियों के हित में रूस की सत्ता का संचालन कर रहे हैं। राष्ट्रपति पुतिन की सत्ता हर विरोध को देश के अंदर कुचल रही है। यह धनिक अल्पतंत्र की तानाशाही है। प्रिगोजिन भी धनिक अल्पतंत्र का हिस्सा है। वह युद्धोन्मादी है। सोलेदार और बखमुत की विजय में अपनी भूमिका से इतराया वह अपने को रूसी सेना से बढ़कर मानने लगा। उसकी महत्वाकांक्षा बढ़ गयी। यूक्रेन में उसकी भूमिका की वजह से उसकी प्रशंसा रूस के अंदर बढ़ गयी। पुतिन विरोधी धनिक तंत्र का एक हिस्सा उसके समर्थन में था। वह खुद मीडिया में अपनी उपलब्धियों को आये दिन पेश करता था। वह सेना से और आक्रामक होने की मांग कर रहा था। आये दिन वह सेना के जनरलों और रक्षा मंत्री की तीखे शब्दों में आलोचना करता था। इस सबसे वह अपनी युद्धोन्मादी छवि को और मजबूत कर रहा था। चूंकि पुतिन भी राष्ट्रवाद की आंधी बहाकर रूसी लोगों को, वहां की मजदूर-मेहनतकश आबादी को अपने इर्द-गिर्द गोलबंद कर रहे थे, इसलिए इन दोनों युद्धोन्मादियों के बीच, ज्यादा उग्र राष्ट्रवादी और युद्धोन्मादी होने की होड़ अंदर ही अंदर चल रही थी। 
    
पुतिन द्वारा पाले-पोसे गये इस निजी सेना वैगनर के मालिक को लगने लगा कि वह रूसी सेना के मुकाबले ज्यादा कारगर है। उसकी 25,000 के आस-पास की वैगनर भाड़े की सेना को जब रूसी सेना और रक्षा मंत्रालय ने यह कह दिया कि वह रूसी सेना के कमान के अंतर्गत आ जाए, तब प्रिगोजिन बौखला गया। उसने रूसी सेना के साथ संविदा करने से इंकार कर दिया। इसके बाद उसने आरोप लगाया कि उसके सैन्य शिविरों में रूसी सेना ने बमवारी की है जिसमें उसके कई सैनिक हताहत हुए हैं। यह उसके विद्रोह की पूर्वपीठिका रही है। 
    
यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि अमरीकी साम्राज्यवादियों को इस विद्रोह की भनक थी। अमरीकी खुफिया एजेन्सी प्रिगोजिन के सम्पर्क में थी या नहीं, इसकी जानकारी का अभी खुलासा नहीं हुआ है। लेकिन अमरीका व पश्चिमी यूरोप के देश इस विद्रोह से जो उम्मीद कर रहे थे, वह नहीं हो पाया। अमरीकी साम्राज्यवादी रूस की प्राकृतिक सम्पदा के भण्डार पर निगाहें लगाये हुए हैं। वे प्रिगोजिन के विद्रोह से रूसी राष्ट्रपति को सत्ताच्युत करने की संभावनायें देख रहे थे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। 
    
प्रिगोजिन के असफल विद्रोह के बाद राष्ट्रपति पुतिन की स्थिति कमजोर हुई है। रूस के अंदर पूंजीपति वर्ग का पुतिन विरोधी गुट अब ज्यादा सक्रिय हो सकता है। उसे कुचलने के लिए पुतिन की सत्ता और ज्यादा दमनकारी कदम उठाने की ओर जा सकती है। इन दोनों गुटों के बीच संघर्ष और तीव्र हो सकता है। 
    
पुतिन ने जिस प्रिगोजिन को पाला-पोसा था, वही उसके लिए काल बन कर आ खड़ा हुआ। वह भस्मासुर की तरह पुतिन की सत्ता के लिए काल बन रहा था। 
    
रूस की मजदूर-मेहनतकश आबादी पुतिन के शासन के दौरान पिस रही है, तबाह-बर्बाद हो रही है। रूसी अर्थव्यवस्था का सैन्यीकरण करने से और पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियों द्वारा लगाये गये व्यापक प्रतिबंधों से व्यापक मजदूर आबादी के जीवन की परेशानियां-तकलीफें असहनीय होती गयी हैं। उनका हित पुतिन या प्रिगोजिन के किसी भी गुट के समर्थन में नहीं है। ये दोनों रूसी मजदूर-मेहनतकश आबादी के दुश्मन हैं। न ही अमरीकी साम्राज्यवादियों और उनके सहयोगी नाटो देशों द्वारा रूस में तख्तापलट की साजिशों में मजदूर-मेहनतकश आबादी का हित है। 

आलेख

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।