
मानेसर/ आई एम टी मानेसर में स्थित हिटैची कम्पनी के ठेका मजदूरों ने 2023 में अपनी मांगों को लेकर दो बार हड़ताल की थी। पहली हड़ताल मई माह में 24 घंटे की और दूसरी जुलाई-अगस्त में लगभग एक माह की। दोनों ही बार मजदूरों ने आंशिक जीत हासिल की थी। ठेका मजदूरों की यह हड़ताल अन्य कंपनियों के ठेका मजदूरों के लिए उदाहरण बनी। दूसरी कम्पनियों के मजदूर इस हड़ताल की तारीफ में चर्चा करते हुए मिल जाते थे।
लेकिन हिटैची कम्पनी सहित अन्य कम्पनियों के ठेकेदारों व मालिकों को इन ठेका मजदूरों की हड़ताल और उनकी जीत रास नहीं आई। कम्पनी ने तीन-चार महीने तो मजदूरों के साथ हुए समझौते को लागू किया। लेकिन जैसे ही मजदूर सिर्फ अपने काम से मतलब रखने लगे और मजदूरों ने समझौते के बाद अपनी एकता को बनाए रखने के लिए किसी भी प्रकार की गतिविधि नहीं की तो बाद में कम्पनी मजदूरों की इसी कमजोरी का फायदा उठा कर मजदूरों से किए समझौते का उल्लंघन करने लगी।
समझौते में दर्ज था कि मजदूरों का छुट्टी लेने पर पैसा नहीं कटेगा। इसके बाद मजदूर छुट्टी का लाभ लेने लगे। जो मजदूर छुट्टी लेकर घर जाते और जैसे ही छुट्टी पूरी होने पर मजदूर वापसी की तैयारी कर रहे होते, वैसे ही कम्पनी का ठेकेदार उस मजदूर को फोन करके बोल देता था कि अभी मत आना काम नहीं है। जब काम होगा हम बुला लेंगे। इस प्रकार कई मजदूर अपने घर पर ही रुक जाते थे और जिन मजदूरों को ठेकेदार मना नहीं कर पाता था, वो सीधे कम्पनी गेट पर ड्यूटी के लिए पहुंच जाते थे, इनको भी काम नहीं है, कहकर वापस कर दिया जाता है।
यह सिलसिला निरन्तर चलता रहा और अभी भी जारी है। कंपनी के इस तरह के व्यवहार के बारे में मजदूरों से जानकारी करने पर पता चला कि कुछ मशीनों पर पन्नी चढ़ा दी गई है। और कहा जाता है कि कम्पनी के पास अभी आर्डर नहीं है। आर्डर आने पर काम पर वापस बुला लिया जाएगा। लेकिन कम्पनी व ठेकेदार के द्वारा मजदूरों के साथ किये गये इस तरह के व्यवहार के पीछे सिर्फ आर्डर का नहीं होना ही नहीं है।
अगर किसी कम्पनी में काम कम हो जाता है तो वह पुराने मजदूरों को निकाल कर नये मजदूरों को भर्ती नहीं करती। लेकिन इस कम्पनी ने पुराने मजदूरों को निकाल कर नये मजदूर एक-एक साल के लिए जितने निकाले उससे ज्यादा भर्ती किए हैं। इसका मतलब आर्डर का कम होना नहीं बल्कि कुछ और ही था। इस सब माजरे के पीछे असली मकसद था कम्पनी की आंख की किरकिरी बन चुके ठेका मजदूर, जो दो बार हड़ताल कर चुके थे, को सबक सिखाना। वर्तमान समय में जिस तरह से पूंजीपति वर्ग मजदूरों पर हमलावर हो रखा है, वह नहीं चाहता कि मजदूर, उसके शोषण-उत्पीड़न के रास्ते में कोई अवरोध खड़ा करें।
हिटैची कम्पनी मालिक ने भी मजदूरों को अपने खिलाफ हड़ताल करने की सजा दी। इन मजदूरों को काम से निकालने के रूप में सजा दी गई। जिससे कि फिर से मजदूर ऐसा करने की जुर्रत न कर सकें। इसके लिए कम्पनी कोई भी बहाना, कोई भी हथकंडा अपनाने से पीछे नहीं हटती। इस कम्पनी में मजदूरों को काम से निकालने की असली वजह यही थी।
इन हालातों से बचने के लिए जरूरी है कि मजदूरों में वर्गीय चेतना पैदा हो। मजदूरों को अपनी आर्थिक मांगों के लिए भी लड़ते समय मजदूर वर्गीय राजनीतिक कुशलता दिखलानी चाहिए। मजदूर जब तक मालिक को अपने वर्ग शत्रु के तौर पर नहीं मानेंगे तब तक मजबूती से नहीं लड़ पाएंगे। वर्तमान संघर्षों में इस कमी को देखा जा सकता है। इस कम्पनी में भी यही कमी रही। यहां मजदूर और मजदूर नेताओं ने अपनी आंशिक जीत के बाद मालिक व ठेकेदार के संभावित हमले का मुकाबला करने के लिए एकता को बनाए रखने पर जोर नहीं दिया। मालिक ने मजदूरों की इसी कमजोरी का फायदा उठाकर मजदूरों को काम से निकाल दिया। -मानेसर संवाददाता