पुरी दुनिया में चीन का निर्यात बढ़ता जा रहा है। सस्ता होने के कारण हरेक देश चीन से माल खरीदना चाहता है। इसीलिए व्यापार संतुलन के मामले में पलड़ा चीन का भारी रहता है। कुछ देश जैसे अमेरिका तक चीन के बढ़ते निर्यात के कारण परेशान है। क्योंकि इससे उसका आर्थिक प्रभाव दुनिया में कमजोर पड़ रहा है। भारत जैसे देश तो चीन की तरह निर्यात वृद्धि दर को हासिल करने के सपने कब से देख रहे हैं।
लेकिन चीन के इस बढ़ते निर्यात के पीछे मज़दूरों की श्रम शक्ति है जिसे चीनी कम्पनियां लूट रही हैं। ऐसी ही एक कम्पनी शीन है जो गुआनझु इलाके में अपना उत्पादन करती है। यह विभिन्न स्थापित ब्रांडों के लिए रेडीमेड कपड़े बनाती है। इस इलाके में करीब 5000 कम्पनियां हैं जिनमें अधिकांश शीन कम्पनी की सप्लायर हैं। यहाँ काम करने वाले 80 प्रतिशत मज़दूर शीन कम्पनी के लिए काम करते हैं।
काम की तीव्रता की बात की जाए तो एक सामान्य टी शर्ट बनाने में मज़दूर को 6-7 सेकंड का समय लगता है जिसके बदले उसे 1-2 युयान मिलते हैं। ये मज़दूर दिन में 18-18 घंटे तक काम करते हैं। इस इलाके में काम के सामान्य घंटे प्रति सप्ताह 75 हैं। इन्फॉसिस के चैयरमेन यूँ ही नहीं भारत में भी प्रति सप्ताह 70 घंटे काम करने की बात करते हैं। बाल मज़दूरों से काम न कराने के बोर्ड लगे होने के बावजूद यहाँ बाल श्रमिक भी हैं।
चीन की तरह ही मज़दूरों को चूसने की चाहत दुनिया का हरेक देश का पूंजीपति वर्ग रखता है। लेकिन अमेरिका और यूरोप का पूंजीपति ऐसा कर नहीं पा रहा है। इसलिए उसके यहाँ की कुछ एन जी ओ चीन में मज़दूरों के शोषण का प्रश्न उठाते रहती हैं। ऐसा वे इसलिए नहीं करते कि चीन के मज़दूर वर्ग से उसे कोई लगाव है बल्कि वे चीन पर राजनीतिक दबाव कायम करती हैं। लेकिन इसी बहाने चीन के अंदर मज़दूरों के शोषण की तस्वीरें सामने आती रहती हैं।
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