हम मजदूर कितने आजाद हैं?

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साथियो, मौजूदा दौर में मजदूरों के हालात किसी से छुपे नहीं हैं। जहां कम वेतन, काम के घंटों में बढ़ोत्तरी, बढ़ती महंगाई, अस्थाई नौकरी से मजदूर के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं वहीं पूंजीपतियों द्वारा मजदूरों के काम के घंटे बढ़ाने का मशविरा दिया जा रहा है।
    
कोई काम के घंटे हफ्ते में 70 करने की कहता है, कोई हफ्ते में 90 घंटे करने को कहता है तो कोई रविवार की छुट्टी न लेने का वक्तव्य देता है। और यह सब राष्ट्रवाद के नाम पर किया जा रहा है।
    
साथियों ऐसे ही कुछ हालात हमारी कंपनी में बने हुए हैं। प्लांट के अंदर मजदूरों का शोषण और उनके अधिकारों का दमन किया जा रहा है।
    
हालात इतने बुरे हो चुके हैं कि मजदूरों को शोषण के खिलाफ एक होने से रोकने के लिए व मजदूरों के संघर्ष को कुचलने के लिए मैनेजमेंट द्वारा मजदूरों के मोबाइल के वाट्सएप ग्रुप, फेसबुक पेज तक चेक किए जा रहे हैं।
    
हमारे इस लोकतांत्रिक देश में जनता को कुछ संवैधानिक मौलिक अधिकार दिए गए हैं जिनमें से एक है- निजता का अधिकार। प्लांट में मौजूद मजदूर यूनियन को इस निजता के अधिकार के तहत मैनेजमेंट के ऊपर कोई कानूनी कार्यवाही या कोई मुकदमा करना चाहिए था। लेकिन इस मुद्दे पर मौजूदा यूनियन की चुप्पी बताती है कि वह भी मैनेजमेंट के इस फैसले के साथ खड़ी है।
    
साथियों कुछ दिनों बाद देश में 76 वां गणतंत्र दिवस मनाया जाएगा। लेकिन बेलसोनिका जैसी तमाम कंपनियों में लोकतंत्र की रोज धज्जियां उड़ाई जाती हैं। इन कंपनियों में देश का कोई भी संविधान लागू नहीं होता है। या यह कहना भी आसान होगा कि यह अपने आप में एक देश है जहां इनके अपने आप के कानून हैं।
    
आखिर में कि साथियों अगर हम आजाद हैं तो हम अपने अधिकारों के लिए लड़ते क्यों नहीं हैं? अपने ऊपर हो रहे शोषण के खिलाफ कुछ बोलते क्यों नहीं हैं?         
        -एक मजदूर, गुड़गांव

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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