जब अपनी पर गुजरी, तो दिखी तानाशाही

पिछले कुछ समय से मोदी सरकार के इशारे पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने विपक्षी पार्टियों विशेष रूप से आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेताओं पर प्रिवेंशन आफ मनी लान्ड्रिंग एक्ट 2002 (PMLA) के तहत केस दर्ज किए हैं। इसके तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर जमानती हैं। इसमें अग्रिम जमानत का कोई प्रावधान नहीं है। गौरतलब है कि वर्तमान मोदी सरकार ने 2018 में पीएमएलए में संशोधन किया था जिसमें धारा 45 के तहत जमानत मिलना मुश्किल हो गया। जिसके तहत व्यक्ति को अपनी बेगुनाही खुद साबित करनी होती है कि उसके खिलाफ सभी अपराध निराधार हैं।
    
मोदी सरकार के इशारे पर म्क् ने दिल्ली सरकार के नेताओं पर च्डस्। के तहत केस दर्ज किया जिसमें पहले दिल्ली के दो मंत्रियों सत्येंद्र जैन और मनीष सिसोदिया और फिर राज्यसभा सांसद संजय सिंह को गिरफ्तार किया और अब आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया। इसके बाद खूब हंगामा हुआ। देश के अलावा दुनिया के अन्य देशों ने भी इस पर टिप्पणी की। राष्ट्रीय मीडिया को भी किसी हद तक इस पर रिपोर्टिंग दिखानी पड़ी।
    
अपने भाषणों और प्रेस वार्ताओं में अन्य विपक्षी दल और आम आदमी पार्टी के नेता यह दलील दे रहे हैं ‘‘कि मोदी सरकार पीएमएलए कानून के तहत केस लगा कर नेताओं को डराने-धमकाने और तोड़ने का काम कर रही है। क्योंकि यह नेता मोदी सरकार के खिलाफ में बोल रहे हैं इसलिए उनके ऊपर केस लगाकर उनको गिरफ्तार किया जा रहा है’’। एक दलील बहुत जोरों-शोरों से उठाई जा रही है कि ‘‘न्याय कहता है कि जब तक किसी व्यक्ति के ऊपर कोई अपराध सिद्ध नहीं हो जाता तब तक वह निर्दोष है। पुलिस का काम है कि वह व्यक्ति के ऊपर दोष सिद्ध करे परंतु इस कानून के तहत व्यक्ति को पहले अपराधी मान लिया जाता है और उसे सिद्ध करना होता है कि वह अपराधी नहीं है। यह तो नाइंसाफी है। देश में तानाशाही लागू की जा रही है।’’    
    
विपक्षी पार्टियों की उक्त बात में सच्चाई का एक अंश है। यह बात सही है कि मोदी काल में जनता के साथ-साथ विपक्ष पर भी संघ-भाजपा सीधे हमलावर रहे हैं। पर यह बात भी सच है कि मजदूरों-मेहनतकशों के दमन के इंतजाम में बाकी दल भी कहीं से कम नहीं रहे हैं।
    
जब सरकार विपक्षी पार्टियों के नेताओं के ऊपर इस तरह की कार्रवाई करती है तभी उन्हें नाइंसाफी नजर आती है। उन्हें लगता है कि देश में तानाशाही लागू है। पर इससे पहले तो उनके लिए भी सब बढ़िया चल रहा होता है। देश, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र दिखाई देता रहा है। उस समय देश की मजदूर, किसान, छात्र, नौजवान, महिला, दलित, आदिवासी जनता के ऊपर हो रही नाइंसाफी और तानाशाही नहीं दिखाई देती।
    
क्या इससे पहले ऐसा कुछ नहीं हो रहा होता जिसे नाइंसाफी कहा जाए। उस समय इन्हें मजदूर-मेहनतकश जनता के ऊपर हो रही तानाशाही नहीं दिखाई देती। क्या पीएमएलए से पहले या उसके अलावा ऐसे कानून नहीं हैं जिसमें गिरफ्तार व्यक्ति को अपराधी या दोषी माना जाए और उसे खुद अपने आप को निर्दोष साबित करना पड़ता है।
    
अनलाफुल एक्टिविटी प्रीवेंशन एक्ट (UAPA) इससे भी खतरनाक काला कानून है जिसे देश की रक्षा के नाम पर शासक वर्ग ने मजदूर-मेहनतकश जनता को दबाने और कुचलने के लिए बनाया है। यह कानून 1967 में बनाया गया था और इस कानून का उपयोग शासक वर्गों की सभी पार्टियों ने किया। अपने समय में इसका भरपूर इस्तेमाल शासक वर्ग की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ उठ रही आवाज को दबाने के लिए किया गया। 
    
आज भी मजदूर-किसान-नौजवान- छात्र-महिला-दलित-आदिवासी के खिलाफ हजारों की संख्या में केस दर्ज हैं। अभी भी हजारों लोग इस केस के तहत जेलों के अंदर बंद हैं। मजदूर मेहनतकश, छात्र-नौजवान, दलित-आदिवासी की बात तो छोड़िए जो मानवाधिकार कार्यकर्ता या बुद्धिजीवी सरकार के खिलाफ में जनता की आवाज उठाते हैं; उन्हें भी इस कानून के तहत सालों-साल जेल के अंदर बंद कर दिया जाता है। भीमा कोरेगांव केस के तहत ही कई मानवाधिकार कार्यकर्ता, प्रोफेसर-वकील-बुद्धिजीवियों को 6 सालों से जेल के अंदर बंद किया हुआ था जो हाल ही में रिहा हो पाये हैं।
    
टाडा, पोटा ऐसे ही काले कानून थे जो पूंजीपति वर्ग ने अपनी तानाशाही को मजबूत बनाने के लिए बनाए हुए थे। UAPA के अलावा आज भी कई ऐसे कानून देश में मौजूद हैं।
    
असल में यह पूंजीवादी व्यवस्था है। पूंजीवादी व्यवस्था, पूंजीपति वर्ग द्वारा मजदूर वर्ग पर तानाशाही के अलावा और कुछ नहीं है।
         -हरीश, दिल्ली
 

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