फ्रांस में चुनाव हुए 2 माह से अधिक का समय हो चुका है पर नई सरकार का गठन अभी तक नहीं हो पाया है। फ्रांस में 30 जून और 7 जुलाई 2024 को चुनाव हुए थे। दूसरे दौर के चुनाव में 577 सदस्यीय राष्ट्रीय असेम्बली में न्यू पापुलर फ्रंट ने 180, मैक्रां समर्थित एनसेंबल ने 153, फासीवादी नेशनल रैली ने 142 सीटें जीती थीं। इस तरह त्रिशंकु संसद सामने आयी थी। यूरोपीय संघ के चुनावों में फासीवादी नेशनल रैली की जीत के बाद राष्ट्रपति मैक्रां ने संसद भंग कर चुनावों की घोषणा की थी।
इन चुनावों में भी फासीवादी पार्टी की जीत का खतरा मंडरा रहा था पर दूसरे दौर के चुनावों में न्यू पापुलर फ्रंट व एनसेंबल ने अपने कुछ उम्मीदवार बैठा कर नेशनल रैली की जीत को रोक दिया। पर अब राष्ट्रपति मैक्रां न्यू पापुलर फ्रंट के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लूसी कास्टेट्स को प्रधानमंत्री बनाने को तैयार नहीं हो रहे हैं। मैक्रां फ्रांस में वामपंथी पृष्ठभूमि का प्रधानमंत्री नहीं चाहते। उधर नेशनल रैली की मैरी ली पेन भी वामपंथी व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनने से रोकने में पूरा जोर लगा रही हैं।
दरअसल फ्रांस के मौजूदा सत्ता संकट के पीछे फ्रांसीसी पूंजीपति वर्ग भी एक भूमिका निभा रहा है वह एक ऐसी पार्टी पर भरोसा करने को तैयार नहीं है जिसने चुनाव में उदारवादी नीतियों को उलटने का वायदा किया हो, जिसने अनुचित पेंशन सुधार उलटने व सार्वजनिक सेवाओं को बेहतर बनाने के वादे किये हों। यद्यपि न्यू पापुलर फ्रंट के ज्यादातर वामपंथी संशोधनवादी व पूंजीपति वर्ग के ही सेवक हैं पर फ्रांसीसी पूंजीपति वर्ग इन पर भरोसा करने को तैयार नहीं है।
इसी के साथ फ्रांसीसी पूंजीपति वर्ग का बड़ा हिस्सा मैरी ली पेन की फासीवादी पार्टी पर भी भरोसा करने को तैयार नहीं है। वह फासीवादी पार्टी को पालने में तो यकीन करता है पर उसे सत्ता सौंपने को तैयार नहीं है। ऐसे में पूंजीपति वर्ग की पसंद मैक्रां की पार्टी ही है पर चुनाव में दूसरे स्थान पर रहने के चलते अभी उसके उम्मीदवार के प्रधानमंत्री बनने पर कोई तैयार नहीं है।
इन परिस्थितियों में फ्रांस में सत्ता संकट गहराता जा रहा है। राष्ट्रपति मैक्रां नयी सरकार बनने देने में सबसे बड़ा रोड़ा बन चुके हैं। वे किसी तरह न्यू पापुलर फ्रंट में फूट डाल अपनी पार्टी की सरकार बनाने की फिराक में हैं। उधर न्यू पापुलर फ्रंट के नेता राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग लाकर उन पर दबाव बनाने की बातें कर रहे हैं।
आने वाला वक्त बतायेगा कि फ्रांस कैसे इस राजनीतिक संकट से बाहर निकलता है। इतना तय है कि फ्रांसीसी जनता की बदहाली इस संकट से बाहर निकलने पर भी हल नहीं होने वाली। पूंजीवादी दायरे में व छुट्टे पूंजीवाद के दौर में उसके जीवन का संकट हल हो भी नहीं सकता। ठन में रोडे़
फ्रांस : सरकार गठन में रोडे़
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
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