हम बरेली शहर के मढ़ीनाथ और बंशीनगला मोहल्ले की बात कर रहे हैं। यहां अलग-अलग नाम से दो सेण्टर संचालित होते हैं। यहां कई कर्मचारी हैं व एक डॉक्टर भी है। यहां छोटी-छोटी बीमारी जैसे- खांसी, जुकाम, बुखार आदि की दवा दी जाती है व बच्चों का टीकाकरण किया जाता है। कुछ बीमारियों की जांचें भी होती हैं। जगह-जगह सामुदायिक केन्द्र सरकार ने खोले हैं। लेकिन इन सामुदायिक केन्द्रों में डॉक्टरां की तैनाती नाम मात्र की है।
हम बात कर रहे हैं बरेली शहर के मोहल्ला बंशीनगला व मढीनाथ की। यहां हालत ये हैं। एक तो ये गरीब बस्ती है। पढ़े लिखे लोगों की संख्या कम है। जो पढ़े लिखे लोग हैं उनकी बात करें तो पता चलता है कि अरे यार जैसा चल रहा है चलने दो। इतना टाइम किसी के पास नहीं है जो इनकी कार्यवाही करें। मैं बीमार हुआ तो सामुदायिक केन्द्र दवाई लेने गया तो मैंने पूछा पर्चे कहां बनते हैं तो एक कर्मचारी वहां बैठे थे उन्होंने कहा डॉक्टर तो हैं नहीं, तो मैंने कहा पर्चा कौन बनाता है तो कर्मचारी ने कहा बताइये आप को क्या परेशानी है। मैंने कहा मुझे खांसी, जुकाम व सांस फूल रही है। कर्मचारी ने कहा आइये अंदर यहां से आप दवा ले लीजिए, कर्मचारी ने तीन तरह की गोली उठाकर मुझे दे दी और दवाई उठाकर अपने रजिस्टर पर चढ़ा ली। और कहा पांच दिनों के बाद आना। पांच दिन के बाद मैं फिर अस्पताल पहुंचा फिर पर्चा बनाने वाले व डाक्टर नहीं थे। मैंने पूछा भाई साहब डॉक्टर नहीं है। कर्मचारी ने कहा डाक्टर फील्ड में गये हैं। तो वह कब तक आयेंगे, बोले पता नहीं। आप दवा ले लीजिए। मैं अंदर गया कर्मचारी ने पूछा क्या हुआ। मैंने बताया आपने कोई पर्चा हमें नहीं दिया है तो आपको कैसे पता चलेगा कि आपने पिछली बार कौन सी दवा दी थी तो कर्मचारी ने कहा जो डॉक्टर नहीं था, आपको क्या समस्या है। मैंने समस्या बताई उसने फिर पिछली दवाई दे दी और मैं दवा लेकर चला आया।
साथियो, सरकार ने सामुदायिक केन्द्रों के नाम पर बड़ी-बड़ी बीमारियों को निशाने पर ले रखा है। लेकिन वहां डॉक्टर नहीं हैं न ही बी पी चेक करने वाला है। डॉक्टर समय से नहीं आते हैं। न ही यहां दवाईयां मिलती हैं। कुछ ही दवाइयां यहां मिलती हैं। राम भरोसे हिन्दुस्तान चल रहा है। सरकार ने संविदा पर डॉक्टर, कर्मचारी, नर्स रखे हैं। जनता के पैसों की लूट मचा रखी है। -एक पाठक, बरेली
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की हालत
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को