उड़ीसा में हाल में हुई रेल दुर्घटना जिसमें दो यात्री गाड़ियां और एक मालगाड़ी कुछ ही मिनट के अंतर पर आपस में बुरी तरह टकरा गईं, जिसमें सवार 2500 में से 288 लोगों की मौत की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है और 1100 से अधिक लोगों के घायल होने की खबर है। उसके संदर्भ में मीडिया में भारत में विकसित एक रेल तकनीक ‘‘कवच’’ की बड़ी चर्चा है। इसमें आश्चर्यजनक यह है कि किसी तकनीक की चर्चा तब होती है जब उससे कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की जाये। या उससे कोई बड़ी दुर्घटना या आपदा को टाला गया हो। यहां भारत में विकसित कवच नामक टेक्नोलॉजी की चर्चा तब हो रही है जब सदी की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना की खबर आयी है। ऐसा बेवजह नहीं है। वास्तव में भारत का सरकार परस्त मीडिया, जिसे कभी गोदी मीडिया तो कभी भाजपाई मीडिया भी कहा जाता है, इस दुर्घटना के लिए कोई केन्द्र की भाजपा सरकार, प्रधानमंत्री मोदी, रेल मंत्री या रेल मंत्रालय और उनकी नीतियों को दोष न देने लगे, इससे उन्हें कवच प्रदान करने का काम करता है। इस प्रकार यहां दो कवच सामने आते हैं - पहला भारत में विकसित वह कवच जो दो रेलगाड़ियों को आपस में किसी भी हाल में टकराने से रोकने में कारगर एक तकनीक है और दूसरा वह कवच जो मीडिया सरकार की किसी भी करतूत की रक्षा जनता से करता है। वह सरकार का रक्षा कवच है। पहला कवच जिसे वैज्ञानिकों ने परिश्रम से विकसित किया है वो तो यात्रियों की जान बचाने में काम नहीं आ पाया पर दूसरा कवच मीडिया द्वारा सरकार को उपहार में दिया गया कवच है, वह बखूबी काम कर रहा है। रोचक यह है कि इस कवच को विकसित करने में कोई मेहनत नहीं करनी होती, गोदी मीडिया इसमें पहले से ही पारंगत है।
उल्लेखनीय है कि रेलवे विभाग सरकार की उपलब्धियों (और उससे भी बढ़कर) सरकार के चुनावी वायदों के लिहाज से एक महत्वपूर्ण विभाग है। सरकार के समर्थक एक समय में बुलेट ट्रेन की कल्पना हिन्दुस्तान में करके प्रफुल्लित होते थे। वही समर्थक आज भी भारत में वंदे भारत ट्रेनों की बढ़ती रफ्तार से मुग्ध होते हैं। (नोट : बढ़़ते किराये की बात वे नहीं करते) ऐसे में प्रधानमंत्री को नयी रेलगाड़ियों को हरी झंडी दिखाते फोटो खिंचवाने में बड़ी खुशी होती है। (इतनी खुशी कि फोटो फ्रेम में वे किसी और को बर्दाश्त नहीं कर पाते।)
हमारे रेलमंत्री भी बड़े आदमी हैं। उनके पास रेलवे के अलावा भी कई बड़े विभाग हैं। पर शायद रेलवे उनका प्रिय विभाग है। उल्लेखनीय यह है कि इस रेल दुर्घटना से ठीक पहले रेल अधिकारियों की लम्बी बैठक में भारतीय रेल की बड़ी उपलब्धियों, तरक्कियों की बड़ी चर्चा मंत्री जी कर रहे थे। भारत की जनता को सरकार और रेल मंत्रालय के कामों का अच्छे से और विस्तार से पता चल सके इसके लिए सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो भी आते रहते हैं जिनमें हमारे रेल मंत्री विधिवत किसी इंजन में सवार होकर कवच तकनीक का प्रदर्शन करते हुए दिखते हैं जब वह इंजन ब्रेक न लगाने पर भी उसी पटरी पर खड़ी ट्रेन से नहीं टकराता।
स्वाभाविक सवाल है कि इस तकनीक के होने के बावजूद ऐसी भयानक दुर्घटना कैसे हुई जिसमें दो नहीं तीन गाड़ियां टकरा गईं वो भी अस्सी से अधिक की रफ्तार पर? जवाब है कि इन रेल गाड़ियों में अभी यह तकनीक नहीं लगायी गयी थी। ये रेलगाड़ियां और ये रेलवे स्टेशन अभी पुराने भारत के तौर-तरीके से ही चल रहे हैं। (जी के की यह बात अपने पाठकों को बता दें कि नये भारत की शुरूवात इतिहास की नई परिभाषाओं में 2014 में भाजपा सरकार के आने से बतायी जाती है)
इस हादसे के पीछे रेल सिग्नल प्रणाली के उपकरणों का पुराना पड़ जाना, उनका उचित रख रखाव न हो पाना बताया जा रहा है। बड़ी संख्या में रेल कर्मचारियों की कमी का तथ्य भी एक बार फिर सामने आ रहा है जिसकी वजह रेल बजट में लगातार कटौती और जिसका परिणाम रेल ड्राइवरों की 12-12 और उससे भी अधिक घण्टों की ड्यूटी में होता है। कई बार तो उनींदे ड्राइवरों को कुछ मिनट के लिए गाड़ी रोककर झपकी लेकर काम चलाना पड़ता है। पर सरकार कवच तकनीक के प्रचार में व्यस्त रहकर इस कार्यकाल के अपने काम को लगभग पूरा समझती रही है। बाकी मीडिया का कवच उसकी रक्षा कर रहा है।
नैतिकता के आधार पर आप यह अपेक्षा इस ‘‘नये भारत’’ में नहीं कर सकते कि सारे काम छोड़कर नयी रेलों को हरी झण्डी दिखाने वाले प्रधानमंत्री या उपलब्ध वीडियो को शूट कर पोस्ट करने वाले मंत्री इस्तीफा दे देंगे। उपलब्धियों का श्रेय मंत्री लोगों को है। खामियों की जिम्मेदारी लेने की उन्हें जरूरत नहीं।
क्योंकि यह सरकार राष्ट्रवादी है। रेल मंत्री घटनास्थल पर वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए देखे गये। गोदी मीडिया ने इस्तीफे की हर चर्चा को यह कहकर खारिज कर दिया कि यह वक्त रेल मंत्री को सबसे ज्यादा मेहनत से बचाव कार्य की देखरेख करने का है। इसी गोदी मीडिया के कुछ एंकरों को प्रधानमंत्री की घटनास्थल की यात्रा में सबसे उल्लेखनीय यह लग रहा था कि उनकी यात्रा के समय धूप और गर्मी बहुत ज्यादा थी। आई टी सेल द्वारा केयरिंग पी एम हैशटैग चलाया गया।
इन्हीं खबरों में छुप जा रही कुछ खबरें सोशल मीडिया पर ऐसी भी थीं जो यह बताती हैं कि अब तक 288 मृतकों में से 200 को भी मुआवजा नहीं मिला। जनरल डिब्बों में बहुत ज्यादा भीड़ होने की तस्वीरें भी आयी हैं। यात्रियों के परिजनों को अपने लापता परिजनों की तलाश में जिन लाशों में से पहचान करवायी जा रही थी वे बहुत ही सीमित स्थान में बेकद्री से बड़ी बुरी तरह से रखी गयी थीं।
घटनास्थल के पास वाली जनता ने राहत कार्य से लेकर अस्पतालों में रक्तदान करने, अस्पतालां में परिजनों की तलाश में पहुंच रहे लोगों को खाना-पानी मुहैया कराने तक पुरजोर भागीदारी की।
सरकार समर्थकों और चाटुकारों के पास राष्ट्रवाद के साथ-साथ साम्प्रदायिकता का कवच भी है, ऐसा भी देखने में आया। अपनी खामियों पर पर्दा डालने के लिए किसी साजिश की आशंका के बयान आये, सोशल मीडिया पर घटनास्थल के पास की एक धार्मिक इमारत की तस्वीर को हाईलाइट किया गया। उसे मस्जिद बताकर दुर्घटना को आतंकी साजिश बताया जा रहा था। यह इस कदर हो रहा था कि उड़ीसा पुलिस को इसके विरोध में बयान देना पड़ा कि इस दुर्घटना को साम्प्रदायिक रंग देने वालों के खिलाफ कार्यवाही की जायेगी।
इस आपदा में भी अवसर तलाशते हुए सवर्ण बेरोजगारों को सरकार के साथ लाने का प्रयास सोशल मीडिया पर किया गया। रेल दुर्घटना की व्याख्या यूं की गयी कि रेल विभागों के कामों में सतर्कता और कौशल की आवश्यकता होती है और जब रेलवे की नौकरियों में आरक्षण से अयोग्य व्यक्ति आ जाते हैं तो ऐसी दुर्घटनायें होती हैं। इस प्रकार भाजपाई राष्ट्रवाद साम्प्रदायिकता और बेरोजगारी की बीमारियों को भी अपना कर पूर्ण हो जाता है।
‘‘नये भारत’’ में सदी की सबसे दर्दनाक और सबसे बड़ी दुर्घटना की जिम्मेदारी-जवाबदेही कैसे सुनिश्चित की जाये? इस सम्बन्ध में सरकार और मंत्री को मीडिया पहले ही मुक्त कर चुका है। ऐसी घटनाओं की तकनीकी जांच के लिए रेलवे सुरक्षा कमिश्नर सबसे सक्षम माना जाता है क्योंकि वह रेल संचालन के सभी तकनीक मामलों से परिचित होता है। इस मामले में सरकार ने इसके अलावा सीबीआई को यह जांच सौंपी है। पूरी संभावना है कि इक्का-दुक्का मजदूर-कर्मचारी या बहुत से बहुत एकाध अधिकारी को बलि का बकरा बनाया जाये। और नीति निर्माता और लागूकर्ता लोग साफ पाक बच जायें। क्योंकि संसाधन आवंटन में कमी या नीतियों और बजट के पहलुओं पर ध्यान देना इस जांच संस्था के दायरे में कितना आयेगा यह कहना मुश्किल है।
ममता बनर्जी समेत कई विपक्षी पार्टियों ने सरकार को घेरने का प्रयास किया है जो कि स्वभाविक है पर राष्ट्रवाद का चुनावी पक्ष इतना हावी है कि कांग्रेस ने शुरू में इस घटना पर बयान देने के लिए अपने प्रतिनिधियों को टीवी चैनल पर भेजने से मना कर दिया था।
भारत में पहली रेलवे लाइन बिछाने के 180 साल बाद 21वीं सदी में सारे सुरक्षा तकनीक की उपलब्धता के बावजूद ऐसी दुर्घटना के लिए सरकार को जिम्मेदारी लेनी चाहिए। रेलवे को अपनी नीतियों और संसाधनों की स्थिति की समीक्षा करनी चाहिए। जनता और उसके प्रतिनिधियों को सरकार से सवाल करते हुए हर मुमकिन प्रयास करना चाहिए कि इस दुर्घटना को प्राकृतिक आपदा की शक्ल न दी जा सके। सिर्फ ऐसा करके यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में ऐसी घटनायें न हों।
रेलवे सुरक्षा फंड मसाज, क्राकरी आदि में खर्च
2017 में मोदी सरकार द्वारा रेलवे की सुरक्षा बढ़ाने के लिए एक विशेष फण्ड बनाया गया था। पर सी ए जी की रिपोर्ट में पाया गया कि सुरक्षा के नाम पर आवंटित फण्ड दूसरी मदों में खर्च हो रहा है। राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष नामक यह फण्ड 2017-18 के बजट में बना था तब 5 वर्षों के लिए इस कोष हेतु 1 लाख करोड़ रु. रखे गये थे। पर सी ए जी की रिपोर्ट में पाया गया कि इस फण्ड का भारी दुरुपयोग किया गया। इसका एक हिस्सा मसाज करने वालों, क्राकरी, फर्नीचर, कार के किराये व लैपटाप आदि में खर्च किया गया। इसके साथ ही यह भी तथ्य है कि रेलवे व केन्द्र को इस कोष में 1ः4 के अनुपात में धन देना था पर रेलवे 4 वर्षों में अपने हिस्से का चौथाई ही इस मद हेतु दे पाया। 20,000 करोड़ की जगह उसने महज 4225 करोड़ रु. इस मद में उपलब्ध कराये। रेलवे सुरक्षा के नाम पर धन का कम आवंटन और उस आवंटन का भी अन्य फालतू मदों में खर्च दिखलाता है कि दुर्घटनाओं का इंतजाम खुद रेलवे की बदइंतजामी ही कर रही है। एक ओर ट्रैक की मरम्मत, ट्रैक बदलने का काम पिछड़ रहा है दूसरी ओर सरकार को वंदे भारत दौड़ाने की जल्दबाजी है ऐसे में दुर्घटनायें स्वाभाविक ही हैं।