
आजकल पं.बंगाल का संदेशखाली राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का मुद्दा बना हुआ है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है। संघ-भाजपा की चाटुकारिता में लीन मीडिया विपक्षी दल के शासन तले होने वाली घिनौनी करतूतों को मुद्दा नहीं बनायेगा तो भला और किस बात पर हल्ला काटेगा। ये अलग बात है कि ऐसी ही ढेरों घटनायें भाजपा शासन वाले राज्यों में संघी लम्पट खुद अंजाम देते हैं तो मीडिया को सांप सूंघ जाता है। तब मीडिया भूलकर भी इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की जुर्रत नहीं करता। उ.प्र. में बी एच यू की छात्रा के साथ भाजपा आई टी सेल के 3 लंपटों ने सामूहिक बलात्कार किया पर यह मीडिया के लिए मुद्दा नहीं बना। पर संदेशखाली में अत्याचारी तृणमूल नेता शाहजहां शेख है। विपक्षी दल का नेता होना ऊपर से मुस्लिम होना संघ-भाजपा के लिए मुद््दा उठाने का सुनहरा मौका बन गया। एक दबंग द्वारा भूमि छीनने-यौन हिंसा करने के मामले को साम्प्रदायिक रंग में रंगने में संघ-भाजपा के नेता जुट गये। वे शाहजहां शेख के बहाने मुस्लिमों को अत्याचारी व जनजाति के लोगों को पीड़ित बताने में जुट गये। हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य फैला उन्हें वोटों की फसल नजर आने लगी। मीडिया भी उन्हीं के सुर में सुर मिलाने लगा।
जहां तक प्रश्न संदेशखाली में जनजातीय लोगों के उत्पीड़न का है तो निश्चित ही वहां तृणमूल नेताओं की दबंगई रौंगटे खड़े करने वाली है। पुलिस प्रशासन पूरी निर्लज्जता के साथ दबंगों के साथ खड़ा है। तृणमूल नेता ने सैकड़ों जनजातीय लोगों की जमीनें छीन रखी हैं। कई महिलाओं से सामूहिक बलात्कार की भी खबरें आ रही हैं। शाहजहां शेख की दबंगई से कई गांवों की जनता पीड़ित है। जैसे ही मामला उजागर हुआ, पुलिस-प्रशासन व दबंगों के भय से पुरुषों की बड़ी संख्या पलायन कर गई। पुलिस उत्पीड़न-अत्याचार के साथ दबंगों की दबंगई वहां महिलाएं झेल रही हैं। उन्हें शाहजहां शेख के खिलाफ मुंह खोलने के अपराध में बार-बार मारा-पीटा तक गया। हालांकि घटना के उजागर होने पर दबाव में कुछ लोगों की जमीनें वापस भी होनी शुरू हुईं। पर महिलाओं के साथ यौन अत्याचारों के मामले में ममता बनर्जी से लेकर तृणमूल के बाकी नेता इसे संघ-भाजपा का दुष्प्रचार करार देते रहे हैं।
पं.बंगाल में ममता बनर्जी का शासन एक तरह का अर्द्ध फासीवादी शासन रहा है। इसका पता इसी तथ्य से चल जाता है कि ग्राम पंचायतों के चुनाव में हजारों तृणमूल प्रत्याशी निर्विरोध चुन जाते रहे हैं। ऐसे में तृणमूल के विरोध में चुनाव में उतरने व प्रचार करने तक की छूट विपक्षी दलों को नहीं मिल पाती। तृणमूल के लंपट जगह-जगह दबंगई, महिला हिंसा करते रहे हैं। पर ममता बनर्जी पहले इसे माकपा का दुष्प्रचार तो अब भाजपा का दुष्प्रचार करार दे मामले पर लीपापोती करती रही है। एक महिला होने के बावजूद वह बेशर्मी से अपने कार्यकर्ताओं के गैंगरेप के अपराधों को भी झुठलाने में जुटी रही हैं। संदेशखाली मसले पर भी वह यही कर रही है।
फिलहाल मौजूदा समय में तृणमूल नेता शाहजहां शेख गिरफ्तार हो चुका है पर ममता बनर्जी का प्रशासन दरअसल केन्द्रीय एजेंसियों से उसकी रक्षा करता रहा है। इन हालातों में जरूरत जनजातीय लोगों के एकजुट हो दबंगों के खिलाफ संघर्ष की बनती है। जाहिर है दबंगों की दबंगई का शिकार न केवल जनजातीय लोग होते रहे हैं बल्कि मुस्लिम मेहनतकश भी होते रहे हैं। पर हिन्दू-मुस्लिम की दृष्टि से हर एजेण्डे को देखने के आदी संघ-भाजपा के नेता इस मसले को भी साम्प्रदायिक रंग देकर राजनीतिक रोटियां सेंकने में जुटे हैं।
वैसे भी भारत की पूंजीवादी राजनीति में जैसे-जैसे दक्षिणपंथी पार्टियों भाजपा-तृणमूल-आप आदि का वर्चस्व बढ़ा है वैसे-वैसे सारे सामाजिक मुद्दों पर भी दक्षिणपंथी राजनीति हावी हुई है। महिला मसले पर भी यही हो रहा है। तृणमूल के दबंग आज सामूहिक बलात्कार कर राजनीति में बने हुए हैं तो संघी सोच के संत खुलेआम मुस्लिम महिलाओं के बलात्कार की धमकी देते पाये जाते हैं। दंगों में राम का नारा लगा मुस्लिम महिलाओं से हिंसा की जाती है।
संदेशखाली मसले पर संघ-भाजपा दरअसल महिला हितैषी होने की नौटंकी कर रहे हैं। जिस भाजपा के शासित राज्यों उ.प्र.-म.प्र.-राजस्थान आदि में कोई दिन महिलाओं से बलात्कार के बगैर न गुजरता हो। जहां भाजपा के स्थानीय नेताओं से लेकर विधायकों-सांसदों पर बलात्कार के मामले चल रहे हों। उस संघ-भाजपा का संदेशखाली पर घड़ियाली आंसू बहाना पाखण्ड के अलावा कुछ नहीं है। यही पाखण्ड संघ-भाजपा की धुन पर नाचता मीडिया भी कर रहा है।
जहां तक प्रश्न संदेशखाली की पीड़ित महिलाओं व आम जन का है तो निश्चित ही उन्हें एकजुट हो तृणमूल के दबंगों के खिलाफ खड़े होना होगा पर अगर वे इस भुलावे में रहेंगे कि इन दबंगां से संघ-भाजपा के नेता उन्हें मुक्त करायेंगे तो वे अपने लिए तृणमूल के दबंगों के बजाय संघ-भाजपा के दबंगों के चंगुल में फंसने का इंतजाम कर रहे होंगे। जिनकी दबंगई-गुण्डागर्दी के आगे तृणमूल की दबंगई छोटी पड़ जायेगी। वे कुंए से निकल अपने को खाई में गिरा पायेंगे। अपनी एकजुटता पर यकीन कर संघर्ष करने से ही वे अपने लिए बेहतर जीवन की ओर बढ़ सकते हैं।