संस्थान में आत्महत्याओं के खिलाफ आई आई टी कानपुर के छात्र

19 जनवरी को आई आई टी कानपुर के छात्रों ने प्रशासन के खिलाफ संस्थान में प्रदर्शन और सभा की। 18 जनवरी को संस्थान में शोध छात्रा प्रियंका की आत्महत्या से छात्र आंदोलित हो गए। महीने भर के अंदर यह आई आई टी कानपुर में तीसरी घटना थी। 19 दिसम्बर को शोध छात्रा पल्लवी चिल्का, जबकि 11 जनवरी को एम टेक दूसरे वर्ष के छात्र विकास कुमार मीणा की आत्महत्या की घटना हुई। संस्थान में आत्महत्या के कदमों को रोकने में निदेशक और पूरा आईआईटी, कानपुर प्रशासन असफल रहा है।
    
आत्महत्या की घटनाओं पर प्रतिक्रिया देते हुए आईआईटी, बाम्बे के ‘अम्बेडकर फुले पेरियार स्टडी सर्कल’ ने कहा- ‘‘ये संस्थान ‘उत्कृष्ट छात्रों के कब्रिस्तान’ बन गए हैं। संस्थान ऐसे हों, जहां छात्रों से सहानुभूति रखते हुए उनको प्रोत्साहित किया जाए और उनकी देखभाल हो, न कि उत्पीड़न और मौत। इन संस्थानों के प्रशासन को इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।’’ 19 जनवरी को छात्रों की समस्याओं के निवारण के लिए बनी समिति की अक्षमता ही छात्रों के विरोध के निशाने पर थी।
    
इसके लिए छात्रों ने कई सुझाव आई आई टी, कानपुर के निदेशक और प्रशासन के सामने रखे हैं। इन सुझावों में प्रमुखता से शोध छात्रों के लिए बनी समिति की तरह परास्नातक छात्रों के लिए समिति गठित करने का प्रस्ताव रखा। सभी छात्रों की अनिवार्य भागीदारी के साथ किसी बाहरी संस्था द्वारा सेमेस्टर के दौरान दो बार संकाय जागरूकता का अभियान चलाने का प्रस्ताव रखा। संस्थान में पहले सेमेस्टर के दौरान मानसिक स्वास्थ्य की बेहतरी और परस्पर देखभाल पर अनिवार्य कोर्स शुरू करने और इसे छोटे समूहों में संचालित किये जाने का सुझाव है। शोध छात्रों को 9वें सेमेस्टर तक एक मान्य शोध प्रबंध के बाद उेत डिग्री देकर च्ीक छोड़ने का विकल्प भी मिलना चाहिए। शोध छात्रों के लिए संस्थान के निरीक्षक के स्थानांतरण की स्थिति में विषय से जुड़ा हुआ एक बाहरी गाइड भी होना चाहिए जो शोध कार्य को सम्पन्न करवाये। इसी तरह कई अन्य सुझाव छात्रों ने दिए हैं। देखने वाली बात है कि संस्थान के निदेशक और प्रशासन की तरफ से इस पर क्या सहमति बनती है।
    
छात्रों-नौजवानों के बीच बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति पूंजीवादी समाज व्यवस्था की सड़ान्ध की ही अभिव्यक्ति है। साथ ही साथ यह इसकी शिक्षा व्यवस्था की विफलता को भी जाहिर कर देती है। ऐसे में किसी भी आत्महत्या के पीछे मूलतः समाज व्यवस्था को ही जिम्मेदार माना जाना चाहिए। इसलिए आईआईटी कानपुर के छात्रों का संघर्ष जायज है। आईआईटी कानपुर के छात्रों का आत्महत्याओं के खिलाफ विरोध, सुझाव और सुधार के उपाय सुझाने जैसे कदम सकारात्मक हैं। यहां छात्रों को यह समझ लेना चाहिए कि सम्भव है कि उनके संघर्ष को कुछ सफलता मिल जाए। लेकिन यह सफलता पूंजीवादी व्यवस्था के रहते तात्कालिक ही होगी। इसीलिए संघर्ष की दिशा समाज को बदलने की होनी चाहिए।

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