आज समाज में अपराधों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। साम्प्रदायिक दंगां से लेकर महिला अपराधों तक, हत्या से बलात्कार तक, सभी की संख्या पहले से कहीं ज्यादा है। और इन अपराधों का कारण पुरुष प्रधान मानसिकता ही जान पड़ती है। महिला अपराधों में खासकर यह स्पष्ट दिखती है।
अगर बात करें किसी बलात्कार की घटना पर तो लोग कई बार महिलाओं पर दोष देते हैं। कई बार तो हमारे नेतागण ही पीड़ित महिलाओं के खिलाफ बोलते हैं। महिलाओं के जीन्स और टॉप जैसे कपड़ों को दोषी बताते हैं। लेकिन बलात्कार तो पांच साल की बच्ची से लेकर 85 साल की महिला से भी होता है। और सोचने की बात यह भी है कि किसी लड़की के छोटे कपड़े या जीन्स से नौजवान संतुलन खो देते हैं और बलात्कार जैसी घटना को अंजाम देते हैं तो लड़के पूरा दिन बहुत कम कपड़ों में घूमते रहते हैं। उस हिसाब से महिलाओं को अपना संतुलन खो देना चाहिए।
असल कारण किसी के कपड़ों का नहीं होता है। कारण है कि आज समाज में महिलाओं को देखे जाने का नजरिया क्या है। आज समाज में सोशल मीडिया से, फोन, टी.वी. आदि हर जगह से महिलाओं को एक माल (उपभोग करने की वस्तु) के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। जब किसी दिमाग में दिन-रात किसी बात को भरा जाता है तब वह वही समझने लगता है। आम तौर पर नई पीढ़ी किसी महिला को देखकर यही नजरिया रखने लगती है। यह नजरिया किसी को माल के बतौर देखने का बन जाए तब उसे उपभोग करने की इच्छा भी पैदा हो जाती है।
घरेलू हिंसा में पुरुष प्रधान सोच भी कारण बनती है। और यह सोच महिला व पुरुष दोनों में होती है। घर के सम्पत्ति के झगड़े में या फिर हिंसा में जहां पुरुष की मानसिकता महिला को कमतर देखने की होती है तो वहीं महिला की आस्था धार्मिक रूढ़िवादी परम्पराओं से जुड़ी होती है जहां पति देवता, परमात्मा सब कुछ बताया जाता है जिस कारण महिला अपने साथ हो रही हिंसा का प्रतिरोध भी नहीं करती। कई जगह यदि महिलायें अपने ऊपर हो रही ज्यादती के खिलाफ आवाज उठाती हैं तो उन्हें स्वयं उनके मां-बाप समाज की दुहाई देते हुए चुप करा देते हैं।
भारतीय समाज वर्गीय होने के साथ-साथ घोर रूढ़िवादी परम्पराओं वाला भी है। समाज वर्गीय होने के साथ-साथ घोर जातिवादी भेदभाव वाला भी है यहां जाति की श्रेष्ठता के साथ-साथ छोटे-बड़े का, महिला-पुरुष का भेद मौजूद है।
उदाहरण के लिए हिन्दू धर्म में यह भेद दाम्पत्य जीवन शुरू होने के पहले दिन से ही दिखाई देता है। यहां शादी के बाद एक रस्म होती है जिसे मण्डा विसर्जन कहते हैं। जहां गांव के बाहर जाकर लड़का-लड़की की गांठ व कंगन खोलने के बाद दोनों को एक-एक छड़ी दी जाती है। जिसमें रिवाज को पूरा करने के लिए लड़का अपनी पत्नी को छड़ी से मारता है तथा लड़की छड़ी को छोड़कर अपने पति के पैर पकड़ (छूती) लेती है। यह रिवाज इस बात को दर्शाता है कि हर हाल में पुरुष सही है। और एक औरत सिर्फ और सिर्फ उसकी सेवक व दासी मात्र है। उससे ज्यादा कुछ नहीं।
यह रिवाज मनाया भी इसलिए ही जाता है कि अगर पति पत्नी पर हाथ उठाये तो पत्नी को प्रतिरोध करने के बजाय उसकी चरण वंदना करनी चाहिए। पत्नी बेशक निर्दोष हो लेकिन पति के गुस्से का शिकार होना उसके लिए स्वर्ग ही है। ऐसे ही बहुत सारी कूपमण्डूकता समाज में मौजूद हैं। रूढ़िवादी विचार मौजूद हैं।
इस सबके पीछे एक और कारण जान पड़ता है। वो है गैर तार्किक शिक्षा।
क्योंकि शासक पूंजीपति वर्ग वही शिक्षा आम जनमानस को देता है जिससे उसकी मशीनरी, उसका स्वर्ग, उसकी व्यवस्था चलती रहे। वह नहीं चाहता कि लोग तार्किक बनें और उसके द्वारा की जा रही खुली व नंगी लूट पर लोग सवाल खड़ा करें।
ऐसी शिक्षा जो इंसान को तर्कशील बनाए। वो तो समाजवाद में कम्युनिस्टों के शासन में बिना मुनाफे की व्यवस्था में ही संभव है।
जहां हर तरह के शोषण-उत्पीड़न, रूढ़िवादी परम्पराओं का नामो निशां नहीं होगा। जहां उपभोक्तावाद और पुरुष प्रधानता को जड़ से समाप्त कर दिया जायेगा। -दीपक आजाद, हरिद्वार
समाज में बढ़ते महिला अपराधों का कारण पुरुष प्रधान मानसिकता
राष्ट्रीय
आलेख
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।