जैसे सावन में झड़ी लगती है ठीक वैसे ही चुनावी साल में भारत रत्न की झड़ी लगी है। इस वक्त तक पांच ‘‘महापुरुषों’’ को भारत रत्न दिया जा चुका है। कर्पूरी ठाकुर, लाल कृष्ण आडवाणी, चौधरी चरण सिंह, नरसिम्हा राव, एम.एस.स्वामीनाथन को भारत रत्न दिया भी जा चुका है। कर्पूरी ठाकुर और चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देकर मोदी ने इण्डिया गठबंधन की दो पार्टियों जनता दल (यू) और राष्ट्रीय लोक दल को अपने पाले में समेट लिया है। आडवाणी, राव और स्वामी नाथन के जरिये अपने वोट बैंक को सुरक्षित और व्यापक बनाने की कोशिश की है।
अपनी चुनावी जीत (‘‘370’’ से ज्यादा भाजपा राजग 400 से पार) के बड़े-बड़े दावों के बावजूद जिस तरह से मोदी एण्ड कम्पनी काम कर रहे हैं ये इनकी किसी हताशा को ही दिखला रहा है। आडवाणी, चौधरी चरण सिंह, नरसिम्हा राव के बाद मोदी सरकार कुछ और भारत रत्न इसलिए बांट सकती है ताकि कुछ और दलों को अपने पाले में खुलेआम लाया जा सके। ऐसे एक नाम तो मान्यवर कांशीराम बन जाते हैं। कांशीराम को भारत रत्न की मांग बसपा की पुरानी मांग है। और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिये जाने के समय कांग्रेस पार्टी ने भी कांशीराम को भारत रत्न की मांग कर डाली थी। बाल ठाकरे को भारत रत्न की मांग तो शिवसेना कर ही रही है।
नरसिम्हा राव को भारत रत्न दिया जाना आंध्र प्रदेश में अपनी चुनावी जमीन को मजबूत करने की कोशिश करना है। हालांकि भाजपा जनसंघ के जमाने से जिस आर्थिक नीति की मांग करती आयी थी उसको भारत में खुलेआम लागू करने वाले नरसिम्हा राव ही थे। ‘‘नई आर्थिक नीतियों’’ के जरिये नरसिम्हा राव ने भारत को देशी-विदेशी पूंजी के खुले चारागाह में तब्दील कर दिया था। इसके अलावा जिस राम मंदिर पर मोदी और हिन्दू फासीवादी इतरा रहे हैं उसके लिए रास्ता साफ नरसिम्हा राव ने ही किया था। बाबरी मस्जिद के ध्वंस को नहीं रोका और जिस समय संघी खुलेआम मस्जिद तोड़ रहे थे उस समय प्रपंची नरसिम्हा राव मौन धारण कर अपने घर में पूजा करने का नाटक कर रहे थे।
गौर से देखा जाए तो अतीत में नरसिम्हा राव (धार्मिक-साम्प्रदायिक उन्माद के साथ नई आर्थिक नीतियां) मोदी का काम कर रहे थे और वर्तमान में मोदी वही कर रहे हैं जो आज नरसिम्हा राव करना चाहते। धार्मिक-साम्प्रदायिक उन्माद व नई आर्थिक नीतियां एक ही सिक्के के दो पहलू भर हैं।
भारत के इतिहास में भारत रत्न का ऐसा बंटवारा कभी नहीं किया गया था। चुनावी साल में कुछेक हस्तियों को भारत रत्न कभी-कभी दिये गये परन्तु मोदी ने भारत के सर्वोच्च पुरूस्कार को चुनावी भोंपू में बदल डाला है। चलताऊ हिन्दी फिल्मी गाने ‘लगी आज सावन की झडी है’ को ‘लगी आज भारत रत्न की झड़ी’ में बदल डाला है।
लगी भारत रत्न की झड़ी है
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को