8 फरवरी को पाकिस्तान में आम चुनाव सम्पन्न हो गये। इस चुनाव में सेना, चुनाव आयोग व सरकार पर भारी धांधली के आरोप लगे। चुनाव आयोग द्वारा घोषित परिणामों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। चुनाव में निर्दलीय के बतौर लड़ने वाले इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ को 91, नवाज शरीफ की पी एम एल (एन) को 80 व बिलावल भुट्टो की पी पी पी को 54 सीटें मिली हैं, अन्य को 39 सीटें मिली हैं। 266 प्रत्यक्ष मतदान वाली सीटों में 2 पर चुनाव नहीं कराये गये।
पाकिस्तान की संसद की कुल 336 सीटों में 266 सीटों पर प्रत्यक्ष मतदान द्वारा चयन की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त 60 सीटें महिलाओं व 10 सीटें अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं जिन्हें विभिन्न दल अपने को मिले मतों के अनुपात में चुनते हैं।
2018 के आम चुनाव में पाकिस्तान में इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इसके बाद इमरान खान प्रधानमंत्री बने थे। इमरान खान के शासन में पाकिस्तान को आई एम एफ से बेलआउट पैकेज लेकर अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास करना पड़ा। पर कोविड महामारी के दौरान पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था फिर से पटरी से उतर गई। महंगाई आसमान छूने लगी और इसका असर राजनैतिक उठा पटक के रूप में सामने आया।
डांवाडोल होती जा रही पाक अर्थव्यवस्था को थामने के लिए आई एम एफ व अमेरिकी साम्राज्यवादी दोनों इमरान खान के साथ तैयार नहीं थे। इमरान खान ने रूस-यूक्रेन युद्ध के वक्त यूक्रेन का पक्ष न लेकर तटस्थ रुख अपनाया था। अमेरिकी साम्राज्यवादी इससे आक्रोशित थे और इमरान को सत्ता से हटाने को तत्पर थे। घरेलू स्तर पर भी इमरान द्वारा अर्थव्यवस्था न संभाल पाने के चलते आक्रोश बढ़ रहा था। सेना भी अपने बजट कटौती को लेकर इमरान से नाराज थी। इन परिस्थितियों में मार्च 2022 में इमरान खान को अविश्वास प्रस्ताव के जरिये सत्ता से हटा दिया गया। इमरान ने अपनी सत्ता गिराने में विदेशी साजिश की बात की। अब शहबाज शरीफ नये प्रधानमंत्री चुने गये।
अपने को सत्ता से बेदखल किये जाने के खिलाफ इमरान ने आगामी कुछ महीनों तक लगातार सड़कों पर प्रदर्शन किये। पर सेना-नई सरकार के साथ अमेरिकी साम्राज्यवादी उन्हें किसी भी तरह से पाकिस्तानी राजनीति के हाशिये पर धकेलना चाहते थे। उन पर गुप्त दस्तावेज प्रकाशित करने व भ्रष्टाचार के आरोपों में अदालत से सजायें सुना दी गयीं। बाद में उन पर कुछ वर्षों के लिए राजनीतिक प्रतिबंध भी थोप दिया गया।
जिस वक्त इमरान खान पर शिकंजा कसा जा रहा था उसी वक्त पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के नेता नवाज शरीफ को पुनः राजनीति में आने की राह सुगम की जा रही थी। गौरतलब है कि नवाज शरीफ को भ्रष्टाचार के आरोप में 7 वर्ष की सजा हुई थी पर वे 2019 में एक वर्ष सजा काटने के बाद इलाज के नाम पर देश छोड़ कर भाग गये। 2021 में उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया। पर 19 अक्टूबर 2023 को न केवल उनकी राजनीति में आजीवन अयोग्यता को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पलट दिया बल्कि उन्हें देश लौटने व चुनाव लड़ने की भी छूट मिल गयी।
इस तरह नई सरकार ने सेना, अदालत व पीछे से अमेरिकी साम्राज्यवाद की मदद से नवाज शरीफ को सत्तासीन करने की पूरी योजना बना ली थी। पर इमरान खान के समर्थकों की सड़कों पर कार्यवाहियां नवाज की जीत के प्रति आश्वस्त नहीं कर रही थीं। ऐसे में चुनाव की तारीख 8 फरवरी से महज 25 दिन पूर्व 13 जनवरी को मुख्य न्यायाधीश ने इमरान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ को आंतरिक चुनाव न कराने के मद्देनजर चुनाव चिन्ह क्रिकेट बैट से वंचित कर दिया व पार्टी अब किसी भी उम्मीदवार को पार्टी टिकट पर चुनाव नहीं लड़ा सकती थी। ऐसे में जेल में बंद इमरान खान की पार्टी के सदस्यों को निर्दलीय तौर पर चुनाव लड़ने को मजबूर होना पड़ा। चुनाव आयोग ने इन निर्दलीय प्रत्याशियों को मनमाने तरीके से चुनाव चिन्ह दे नवाज शरीफ के पक्ष में काम किया। 8 फरवरी को सैन्य हस्तक्षेप व धांधली के आरोपों के बीच चुनाव सम्पन्न हुए।
मतगणना के वक्त शुरू में रुझान निर्दलियों की भारी जीत के रूप में सामने आया। पर बाद में ये रुझान बदल गये। यानी पहले इमरान खान की पार्टी बहुमत की ओर बढ़ रही थी पर बाद में त्रिशंकु संसद के रूप में अंतिम नतीजे आये। तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी ने मतगणना में भी धांधली के आरोप लगाये।
प्रांतीय असेम्बलियों में खैबर पख्तूनवा में तहरीक-ए-इंसाफ, पंजाब में पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज), सिन्ध व बलूचिस्तान में पी पी पी बड़ी पार्टी के रूप में उभरे हैं। पंजाब व बलूचिस्तान में पार्टियां बहुमत से दूर हैं।
अब त्रिशंकु संसद के पश्चात पी पी पी व पी एम एल (एन) परस्पर गठजोड़ कर सरकार बनाने का प्रयास कर रहे हैं साथ ही वे तहरीक-ए-इंसाफ के निर्दलियों को तोड़ने की जुगत में भी जुटे हैं। अभी संभावना यही नजर आ रही है कि ये दोनों दल गठबंधन बना सरकार बना लेंगे।
पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था बीते कुछ वर्षों में लगातार खस्ताहालत की ओर बढ़ती गयी है। पाकिस्तान में अल्लाह-आर्मी व अमेरिका का राजनीति में हस्तक्षेप लगातार बना रहा है। इस चुनाव में भी यह हस्तक्षेप जगजाहिर हुआ। हालांकि नवाज शरीफ को जिताने के सारे प्रयासों को लोकतंत्र चाहने वाली जनता ने विफल कर दिया।
इन चुनावी परिणामों को बहुत से लोग आर्मी व अमेरिका की हार के रूप में विश्लेषित कर रहे हैं। किसी हद तक यह बात सही भी है। हालांकि इमरान खान व उनकी पार्टी भी बाकी दोनों पार्टियों की ही तरह आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी रही है। पाकिस्तान की मौजूदा आर्थिक दुर्दशा में उसका भी बराबर का हाथ रहा है।
पाकिस्तान के अलग-अलग प्रांतों में इन दलों का आधार है। पूंजीपति वर्ग के विभिन्न धड़े इन अलग-अलग पार्टियों को समर्थन देते रहे हैं। ऐसे में सेना-अमेरिका राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। इसके साथ ही कट्टरपंथी धार्मिक संगठन भी अपने तरीके से सक्रिय रहते रहे हैं। यह सब स्थितियां पाकिस्तान को कभी सैन्य शासन तो कभी चुनावी लोकतंत्र की ओर ले जाती रही हैं।
इन परिस्थितियों में पाकिस्तानी मेहनतकश जनता कट्टरपंथ-अमेरिका-सेना व अपने पूंजीपति वर्ग सबकी मार झेलने को मजबूर है। इन सबसे किनारा कर अपना भविष्य अपने हाथों में लेने के लिए जनता जब तैयार होगी तभी पाकिस्तान इस अंधी गली से बाहर बेहतर भविष्य की ओर बढ़़ पायेगा।
पाकिस्तान चुनाव : त्रिशंकु संसद
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
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अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को