गाजापट्टी पर इजरायली नरसंहार का क्षेत्रीय प्रभाव व परिणाम

इजरायल द्वारा गाजापट्टी पर किये जा रहे नरसंहार के चार महीने से ऊपर हो गये हैं। अब तक 28,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं और 70,000 के आस-पास घायल हो चुके हैं। इसके बावजूद इजरायल की यहूदी नस्लवादी सरकार अपने घोषित मकसद को हासिल करने में नाकामयाब रही है। न तो वह गाजापट्टी से हमास का सफाया कर सकी है और न ही अपने बंधकों की रिहाई ही करा पायी है। इजरायली सेना पश्चिमी एशिया की सबसे ताकतवर और आधुनिक सेना है। इसको हर वर्ष 3.8 अरब डालर की अमरीकी सैन्य सहायता मिलती है और 7 अक्टूबर, 23 के हमास के हमले के बाद लगभग इतनी ही रकम के अमरीकी आधुनिक हथियार और गोलाबारूद इसे मिल चुके हैं। इसके बावजूद वह व्यापक नरसंहार और विनाश के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकी है। हमास और अन्य प्रतिरोध संगठनों की ताकत को कमजोर करने में वह पूर्णतया असफल रही है। अमरीकी साम्राज्यवादी न सिर्फ हथियारों से बल्कि पूर्णतया राजनीतिक व कूटनीतिक तौर पर इजरायली यहूदी नस्लवादी सरकार के नरसंहार व व्यापक विनाश के समर्थक और भागीदार रहे हैं। 
    
इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों के साथ अमरीकी साम्राज्यवादियों के अलावा यूरोपीय साम्राज्यवादी उसके व्यापक नरसंहार के समर्थन में रहे हैं। 
    
दूसरी तरफ, इसके प्रतिरोध में संघर्षरत ताकतों में गाजापट्टी के अंदर हमास के साथ पुलिस की अन्य ताकतें रही हैं। इसके अतिरिक्त प्रतिरोध की धुरी में लेबनान में हिजबुल्ला संगठन, यमन में हौथी संगठन तथा सीरिया व इराक में प्रतिरोध संगठन रहे हैं। इन सभी संगठनों का ईरान की हुकूमत दृढ़ता से समर्थन करती है। 
    
इसके अतिरिक्त, इस क्षेत्र की मजबूत ताकतें- साउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और मिश्र- हैं जो एक तरफ अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ अच्छे रिश्ते रखे हुए हैं, अपने-अपने देशों में अमरीकी सैन्य अड्डे कायम रखने की सहूलियतें दिये हुए हैं और स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य बनाने की मांग पर जुबानी जमा खर्च करती रही हैं। 
    
इन क्षेत्रीय ताकतों को दुनिया भर में और खुद इनके देशों के भीतर इजरायली नरसंहार के विरुद्ध और फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष के समर्थन में व्यापक विरोध प्रदर्शनों के दबाव में आना पड़ा है। अब ये शासक विशेष तौर पर साउदी अरब ने अमरीकी साम्राज्यवादियों के तमाम दबावों को धता बताते हुए यह कहना शुरू कर दिया है कि जब तक 1967 की सीमाओं और पूर्वी येरूशलम को राजधानी के साथ स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना को स्वीकार नहीं कर लिया जाता तब तक साउदी अरब इजरायल के साथ अपने कूटनीतिक सम्बन्ध नहीं कायम करेगा। 
    
फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष की गूंज और प्रभाव तथा इजरायल द्वारा बरपा नरसंहार व विनाश का विरोध समूची दुनिया में बढ़ता जा रहा है। इसी कड़ी में दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने इजरायल की नस्लवादी हुकूमत के विरुद्ध गाजापट्टी में नरसंहार को बरपा करने के लिए हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्याय के न्यायालय (प्दजमतदंजपवदंस ब्वनतज वि श्रनेजपबम) में अभियोग दर्ज कराया और न्यायालय ने अपने अनंतिम आदेश में इजरायल की हुकूमत को लोगों को मारने पर रोक लगाने और राहत सामग्री गाजा तक पहुंचाने के प्रयासों में बाधा न डालने का आदेश दिया। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के ये आदेश कागज में ही रह गये। इसके बाद भी इजरायली नरसंहार जारी है। 
    
लेकिन इस नरसंहार के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय न्याय के न्यायालय के अनंतिम आदेश का यह प्रभाव पड़ा कि दुनिया भर के अधिकांश शासकों के बीच इजरायली नस्लवादी जनसंहारकों की थू-थू हुई और अमरीकी साम्राज्यवादियों की भी भाषा बदलने लगी। अमरीकी विदेश मंत्री पश्चिमी एशिया के अपने पांचवें दौरे में यह कहने लगा कि इजरायल को गाजापट्टी में फिलिस्तीनी नागरिकों को हमले का निशाना नहीं बनाना चाहिए। फिलिस्तीनी बच्चे ठीक उनके खुद के बच्चों की तरह हैं। उन्हें भी सुरक्षित जीवन, शिक्षा आदि का अधिकार है। लेकिन ब्लिंकन के इन पाखण्डपूर्ण कथनों पर किसी को भी विश्वास नहीं है। नेतन्याहू ने उसके उपदेश को अनसुना कर दिया। 
    
इससे पहले, इजरायली शासकों ने अपने असफल हमले को ढंकने के लिए और अमरीकी साम्राज्यवादियों ने दुनिया भर में उनके प्रति बढ़ते विरोध के चलते एक समझौता वार्ता की शुरूवात की। यह वार्ता सीआईए प्रमुख, मोसाद (इजरायली खुफिया एजेन्सी) प्रमुख, कतर और मिश्र के शासकों के प्रतिनिधियों के बीच पेरिस में हुई। इसने एक अस्थायी युद्ध विराम के लिए एक प्रस्ताव हमास के पास भेजा। हमास ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए एक जवाबी प्रस्ताव पेश किया। हमास द्वारा इन समझौताकारों द्वारा तैयार प्रस्ताव को रद्द करने का कारण यह बताया गया कि इसमें फिलिस्तीनियों की मांगों के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। इसमें सिर्फ कैदियों और बंधकां की रिहाई के बारे में बातें की गयी हैं। अपने द्वारा पेश प्रस्ताव में हमास ने फिलिस्तीन समस्या के समाधान के लिए तात्कालिक और दीर्घकालिक योजना पेश की। उसने कहा कि बंधकों की रिहाई और अन्य कार्य तीन चरणों में होंगे। प्रत्येक चरण 45 दिन का होगा। पहले चरण में अन्य लोगों की रिहाई होगी और तीसरे चरण में शवों और शरीर के अवशेषों की अदला-बदली होगी। लेकिन पहले चरण में ही इजरायल को गाजापट्टी से अपनी सैन्य कार्रवाई रोकनी होगी और अपनी सेनाओं को यहां से ले जाना होगा। इसी चरण में ही गाजापट्टी में राहत सामग्री आना शुरू होगी तथा गाजापट्टी के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया की शुरूवात हो जायेगी। जब तक ये कदम नहीं शुरू होंगे, दूसरा चरण नहीं शुरू होगा। 
    
हमास की ये ही शर्तें इजरायली नस्लवादी हुकूमत को स्वीकार नहीं हुइंर्। नेतन्याहू ने घोषणा कर दी कि जब तक हमास को नष्ट नहीं कर दिया जाता तब तक युद्ध जारी रहेगा। यहीं पर अमरीकी साम्राज्यवादियों और इजरायल के बीच मतभेद सामने आ गये। अमरीकी साम्राज्यवादियों का कहना था कि हमास के प्रस्ताव में आगे वार्ता करने और समझौता करने की गुंजाइश है, जबकि यहूदी नस्लवादी इजरायली हुकूमत ने अब अपने हमले को राफा सीमा पर, जहां 13-14 लाख गाजावासी सुरक्षित क्षेत्र समझ कर विस्थापितों के बतौर टेण्टों में रह रहे हैं, करने की योजना बनायी है। नेतन्याहू ने कहा कि हमने अपनी सेना को राफा क्षेत्र में हमले की योजना बनाने का आदेश दे दिया है। 
    
इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेन्सी (यू.एन.आर.डब्ल्यू.ए.), जो फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए स्थापित की गयी है, के बारे में इजरायली शासकों ने यह आरोप लगाया कि इसके 12 सदस्य 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास द्वारा किये गये हमलों में शामिल थे। इजरायली शासकों के ये आरोप सरासर बेबुनियाद थे। उनके पास इसके कोई प्रमाण नहीं थे। इसके बावजूद, अमरीकी साम्राज्यवादियों सहित कई साम्राज्यवादी देशों ने इस एजेन्सी को दी जाने वाली सहायता बंद कर दी। यू.एन.आर.डब्ल्यू.ए. एकमात्र ऐसी संस्था है जिसकी पहुंच फिलिस्तीनी विस्थापितों के शिविरों तक में थी। लेकिन इससे संयुक्त राष्ट्र संघ और इनकी संस्थाओं का दोहरापन जाहिर होता है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसलों को ये संस्थायें लागू नहीं कर पातीं। बेबुनियाद आरोपों के आधार पर ही फिलिस्तीनियों को राहत देने वाली संस्था की मदद बंद कर दी जाती है। इन बेबुनियाद आरोपों के आधार पर उन कर्मचारियों की सेवायें तक निलंबित कर दी जाती हैं। जांच होने तक इंतजार भी नहीं किया जाता। यह इन अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के दोगलेपन को उजागर करता है। यहां यह भी गौरतलब है कि यू.एन.आर.डब्ल्यू.ए. में दसियों हजार कर्मचारी फिलिस्तीन के राहत कार्य में लगे रहे हैं और इनमें से करीब 150 कर्मचारी इजरायली हमलों में उस समय मारे गये हैं जब ये राहत कार्य कर रहे थे। 
    
यह रकम उस समय रोकी गयी है जब लाखों-लाख फिलिस्तीनी नागरिक भूख, दवाओं के अभाव, साफ पीने के पानी के अभाव और बीमारियों से पीड़ित हैं और मर रहे हैं। 
    
लेकिन यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उनके पैरोकार अमरीकी व अन्य साम्राज्यवादियों के लिए फिलिस्तीनी नागरिकों के जीवन की कोई कीमत नहीं है। 
    
जैसे ही नेतन्याहू हुकूमत ने अपनी सेना को राफा सीमा पर हमला करने का आदेश दिया वैसे ही अमरीकी साम्राज्यवादियों सहित इस क्षेत्र के शासकों के लिए परेशानी बढ़ने लगी। अमरीकी साम्राज्यवादियों ने इजरायली शासकों को ऐसा न करने की नसीहत दे डाली। यह ध्यान देने की बात है कि अमरीकी शासकों ने कभी भी इजरायल को युद्ध समाप्त करने की नसीहत नहीं दी। अब अमरीकी साम्राज्यवादियों को आगामी चुनाव की चिंता सताने लगी है। 2024 के उत्तरार्ध में अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव हैं। अरब-अमरीकी मतदाता मुख्यतया डेमोक्रेटिक पार्टी के पारम्परिक समर्थक रहे हैं। लेकिन इस समय जहां कहीं भी बाइडेन प्रचार करने जा रहे हैं, उन्हें इजरायल द्वारा किये जा रहे नरसंहार का पक्ष लेने के लिए विरोध का सामना करना पड़ रहा है। अमरीका के सभी बड़े शहरों में फिलिस्तीनियों पर हो रहे अत्याचारों के विरोध में बड़े-बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं। अभी हिलेरी क्लिण्टन के विरोध में बड़ा प्रदर्शन हुआ है। ऐसी स्थिति में, बाइडेन ने इजरायली शासकों को यह संदेश दिया है कि इजरायल अमरीकी हथियारों के इस्तेमाल के संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकारों के पालन की एक रिपोर्ट अमरीकी सत्ता प्रतिष्ठान को सौंपे। यह और कुछ नहीं बाइडेन का पाखण्ड है और इजरायली नरसंहार के अपराधों में अपनी संलिप्तता को ढकने की कोशिश है। 
    
खुद इजरायल के अंदर नेतन्याहू का बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है। यह विरोध दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। 9-10 फरवरी को तेलअबीब सहित पूरे इजरायल में लाखों लोगों ने नेतन्याहू से इस्तीफे की मांग करते हुए प्रदर्शनों में भाग लिया है। 
    
यहां यह गौर करने की बात है कि अमरीकी साम्राज्यवादियों और यहूदी नस्लवादी इजरायली शासकों की नीतियों में कोई तार्कितता भरी निरंतरता नहीं है। वे कभी कहते हैं कि हमास के साथ कोई समझौता वार्ता नहीं होगी तो कभी वार्ता के लिए खुद प्रयास तेज कर देते हैं। अभी हाल में ही वे पिछले दरवाजे से मिश्र से वार्ता के लिए अपने प्रतिनिधियों को भेज चुके हैं। इनकी नीतियों की असंगतता के बरक्स यदि फिलिस्तीनी प्रतिरोध की नीतियों को देखा जाए तो उनमें तार्किकता के साथ ही निरन्तरता भी दिखाई देती है। 
    
यह हमेशा अन्यायपूर्ण और न्यायपूर्ण युद्धों के बीच के चरित्र के कारण होता है। हमास एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य के लिए अपने प्रतिरोध के अन्य घटकों के साथ लड़ रहा है। उनकी लड़ाई न्यायपूर्ण लड़ाई है। हालांकि हमास का कट्टरपंथी रुझान इस संघर्ष को कमजोर करता है। यमन के हूथी लोग यदि आब-अल मंदेब में इजरायली, अमरीकी व ब्रिटिश मालवाहक जहाजों पर हमला कर रहे हैं तो वे इस मामले में निरंतरता लिए हुए हैं और उनका कहना है जब गाजापट्टी से इजरायली आक्रमणकारी हट जायेंगे तो वे ये हमले बंद कर देंगे। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने ब्रिटिश साम्राज्यवादी पिछलग्गुओं के साथ मिलकर और अकेले भी यमन पर हवाई हमले करते हैं, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का खुलेआम उल्लंघन करते हैं और यह भी कहते हैं कि उनका इरादा युद्ध को फैलने से रोकना है। एक तरफ वे युद्ध को विस्तारित करते हैं, दूसरी तरफ घोषणा करते हैं कि वे युद्ध के विस्तार को सीमित करने के लिए यह सब कर रहे हैं। उनके अतार्किक बयान और कदम उनके अन्याय के पक्ष में होने के कारण हो रहे हैं। उनका यही हाल हिजबुल्ला, सीरिया और इराक के प्रतिरोध की धुरी के साथ हो रहा है। 
    
यह एकदम सही बात है जो किसी ने कही है कि एक कमजोर देश एक मजबूत देश को परास्त कर सकता है बशर्ते कि उस देश की जनता उठ खड़ी हो और वह अपने भवितव्य की बागडोर अपने हाथ में लेने का साहस कर ले। 
    
यह बात आज फिलिस्तीन के संघर्ष पर लागू होती है। 
    
यह बात भी फिलिस्तीन के संघर्ष में पूरी तौर पर खरी उतरती है कि युद्ध का फैसला एक या दो किस्म के उन्नत हथियार नहीं करते बल्कि लाखों-करोड़ों लोग, जागरूक लोग, संगठित लोग करते हैं। 

राफा पर इजरायली हमला शुरू

12 फरवरी की रात को इजरायल ने गाजापट्टी के दक्षिणी शहर राफा पर हवाई हमला शुरू कर दिया। राफा में पहले दिन के हमलों में 100 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गये हैं। गौरतलब है कि गाजा की आधी से अधिक आबादी विस्थापित होकर राफा में तम्बुओं में जीने को मजबूर है। राफा में 15 से 17 लाख फिलिस्तीनी विस्थापित होकर शरण लिए हुए हैं। राफा पर हमले के बाद इजरायल के अमेरिकी-ब्रिटिश सहयोगी भी इस हमले पर जुबानी चिंता जाहिर करने लगे हैं।

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