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प्रोटेरियल (हिताची) के मजदूरों को मिली आंशिक सफलता

गुड़गांव/ 12 मई को प्रोटेरियल यानी हिताची के मजदूरों का प्रबंधन के साथ समझौता होने के साथ ही उनका संघर्ष फिलहाल खत्म हो गया है। प्रोटेरियल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड मानेसर यानी हिताची

मणिपुर हिंसा : वर्तमान और अतीत

मणिपुर 3 मई से हिंसा, भीषण आगजनी, विस्थापन और दमन के साये में है। अब तक 60 से ज्यादा लोग नृजातीय (जनजातीय) हिंसा और इससे निपटने के नाम पर हो रहे दमन में मारे जा चुके हैं। 200 से ज्यादा लोग घायल हैं

अल्ट्रा एच डी टीवी और समाज

घर में दो साल से टीवी खरीदने की बात हो रही थी। लेकिन अब बच्चों ने जिद कर ली तो टीवी तो खरीदना ही था। किराये के मकान में रह रहा था जिसको मकान मालिक को बेचना था। वह मकान बिक जाता तो वह मकान खाली करना

फिलिस्तीन के लिए नक्बा (महाविनाश) अभी भी जारी है

फिलिस्तीन के महाविनाश के 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। 1948 में फिलिस्तीनियों को उजाड़कर, उनके खेत, मकानों से बेदखल करके और बड़े पैमाने पर हत्यायें करके साम्राज्यवादियों ने साजिश के तहत यहूदी नस्लवादी इजर

पाकिस्तान : गहराता आर्थिक-राजनीतिक संकट

पाकिस्तान से बीते एक वर्ष से वक्त-वक्त पर काफी परेशान करने वाली खबरें आती रही हैं। कभी सरकारी मुफ्त राशन की लाइन में भगदड़ से लोग मर रहे हैं तो कभी राशन के अभाव में सड़कों पर लोग दम तोड़ दे रहे हैं। ब

केरल स्टोरी

झूठे तथ्यों, मनगढ़न्त निष्कर्षों से साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाती फिल्म

भारतीय चुनाव आयोग न स्वतंत्र न निष्पक्ष

भारतीय पूंजीवादी लोकतंत्र के पतन की ढेरों अभिव्यक्तियां हैं। उसका पतन संवैधानिक संस्थाओं के पतन में भी खुद को अभिव्यक्त करता है। प्रेस की स्वतंत्रता की वैश्विक रैंकिंग में भारत का 161 वें स्थान पर

उच्चतम न्यायालय के दो फैसले : खोई साख को पाने की एक कोशिश

11 मई को भारत के उच्चतम न्यायालय ने एक के बाद एक दो फैसले सुनाये। पहला फैसला दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार व उप राज्यपाल के बीच से उपजे विवाद के बाद दिल्ली राज्य सरकार व उप राज्यपाल की शक्तिय

आलेख

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इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं। 

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कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है। 

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।