जमीन खाली कराने से पहले पुनर्वास का खाका तैयार करने का निर्देश

हल्द्वानी/ बनभूलपुरा में रेलवे द्वारा जमीन लिए जाने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्वास की योजना तैयार करने का निर्देश दिया है। 24 जुलाई की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार, केन्द्र सरकार और रेलवे को संयुक्त तौर पर कहा कि यह योजना बनानी होगी कि कथित तौर पर रेलवे की जमीन पर रह रहे इन लोगों का पुनर्वास कब, कैसे और कहां किया जाएगा। कोर्ट ने अपने सम्मुख यह योजना रखने को कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 11 सितंबर, 2024 को होनी है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और उज्जल भुइयां की पीठ ने रेलवे की ओर से दाखिल अर्जी पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया है। रेलवे ने अर्जी में सुप्रीम कोर्ट के 5 जनवरी, 2023 के उस आदेश में संशोधन करने की मांग की है, जिसके तहत रेलवे को हल्द्वानी में उसकी जमीन पर कब्जा करके दशकों से रह रहे लोगों को हटाने पर रोक लगा दी थी।
    
संज्ञान में रहे 20 दिसंबर, 2022 को एक निजी याचिकाकर्ता की जनहित याचिका पर उत्तराखंड हाईकोर्ट नैनीताल ने बनभूलपुरा में रह रहे 50,000 लोगों के आवास खाली कराने का आदेश दिया था। यहां पर निवास करने वाली आबादी आजादी के पहले से यहां रह रही है। कुछ आबादी बाद के समय में भी बसती रही है। आजादी के समय से पहले का प्राइमरी स्कूल यहां की जमीन पर मौजूद है। साथ ही दो राजकीय इंटर कालेज, माध्यमिक स्कूल, प्राइमरी स्कूल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सहित तमाम नागरिक सुविधा यहां के निवासियों को मिली हैं। कई लोगों के जमीन के शत्रु सम्पत्ति, फ्री होल्ड, नजूल के कानूनी दस्तावेज आदि भी रेलवे द्वारा नकार दिये गये। यहां निवास करने वाली अधिकतर आबादी मुस्लिम समुदाय से है। कुछ आबादी हिंदू समुदाय की भी है।
    
नैनीताल हाईकोर्ट के इस जन विरोधी फैसले के खिलाफ बनभूलपुरा के निवासियों सहित उत्तराखंड के क्रांतिकारी-सामाजिक-राजनीतिक संगठनों, शहर के न्याय प्रिय लोगों ने आवाज उठाई। जिसकी गूंज उत्तराखण्ड ही नहीं पूरे देश में सुनाई देने लगी। यह मामला उस समय काफी चर्चित रहा। जहां एक तरफ बनभूलपुरा को बचाने के लिए प्रदर्शन किये जा रहे थे, आवाज उठाई जा रही थी वहीं दूसरी तरफ यहां के निवासियों ने आंदोलन के साथ कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला लिया। इसके तहत लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ जनवरी, 2023 में अपनी याचिका लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी, 23 को लोगों को तत्काल राहत देते हुए नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। मामले की सुनवाई अभी जारी है।
    
रेलवे सालों से इस जमीन को खाली कराना चाहता है। परन्तु उसने कभी जमीन खाली करने का नोटिस नहीं दिया। निजी याचिकाकर्ता की याचिका के बाद ही नोटिस जारी किये गये। उसने कभी भी रेलवे के विस्तारीकरण के अलावा कोई ठोस योजना नहीं रखी। अभी भी वह वंदे भारत एक्सप्रेस चलाने व ट्रैक के संरक्षण की बात कह रहा है। ट्रैक के संरक्षण के लिए रेलवे स्टेशन के पूरब में बहने वाली गौला नदी पर मजबूत सुरक्षा दीवार बनाई जा सकती है। इस दिशा में भी प्रयास कमजोर हैं। इससे रेलवे की अगम्भीरता का पता चलता है।
    
बनभूलपुरा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अभी रेलवे व सरकारों को पुनर्वास की योजना रखने का निर्देश दिया है। लेकिन इससे पूर्व फरीदाबाद के खोरी गांव को खाली करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने ही दिया था। उत्तराखंड के ही लालकुआं में सालों से रह रहे गरीब मजदूरों की नगीना कालोनी को खाली कराने से रोकने की याचिका सुप्रीम कोर्ट सुनने तक को तैयार नहीं हुआ। पिछले समय में गरीब, मजदूरों-मेहनतकशों की बस्तियों के कई मामलों में कोर्टों के आदेशों की मदद से सरकारों ने गरीब, मजदूरों-मेहनतकशों की बस्तियां खाली करायी हैं। इनकी संख्या देशभर में अनगिनत है। वहीं दूसरी ओर पिछले कुछ सालों से फासीवादी मोदी सरकार व भाजपा शासित राज्य सरकारों ने अल्पसंख्यकों और गरीबों को उजाड़ने में बुलडोजर का काफी इस्तेमाल किया है। इनका बुलडोजर राज सुर्खियों में रहा है। इन मामलों में पुनर्वास की कोई बात नहीं की गयी।
    
लेकिन बनभूलपुरा के मामले में पुनर्वास की नीति तैयार करवाने के अदालती आदेश के पीछे जनता की एकजुटता रही है। यहां के निवासी व संगठन विकास विरोधी नहीं हैं। निवासी व इनके पक्ष में संघर्ष करने वाले संगठन पुनर्वास की मांग करते रहे हैं। उनकी मांग को सभी ने हमेशा अनदेखा किया है। जनता की एकजुटता के दम पर ही सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि आखिरकार वे सभी इंसान हैं। दशकों से इस जमीन पर सैकड़ों परिवार रह रहे हैं और उन सभी के पक्के मकान हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि ऐसे में न्यायालय निर्दयी नहीं हो सकते। हालांकि कई परिवार गरीब, मजदूरों-मेहनतकशों, झुग्गी झोपड़ी वालों के भी हैं।
    
अभी सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्वास की नीति तैयार करने को कहा है। परंतु आगे के समय में यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में यह पुनर्वास किया जाता है या सरकारों के हवाले छोड़ दिया जाता है। उत्तराखंड राज्य व केंद्र में स्थित भाजपा की सरकार मुस्लिम विरोधी है। मुस्लिम बहुल इलाका होने के कारण वह यहां से लोगों को हटाना चाहती है। अपने हिंदुत्व प्रेम के कारण भी यह सरकार इनको यहां नहीं देखना चाहती है। हिन्दू-मुस्लिमों के जो भी परिवार यहां रह रहे हैं, कोई परिवार इस पुनर्वास की नीति से छूट न जाए इसके लिए भी निगाह रखने की जरूरत है। साथ ही लोगों का पुनर्वास कहां होता है यह भी मायने रखता है। जो लोग यहां पर रह रहे हैं वह पिछले कई वर्षों से यहां के निवासी हैं। लोगों का रोजगार, काम-धंधा, जीवन यापन करने के साधन, छात्रों की शिक्षा, लोगों के परिवारों की आपस में रिश्तेदारी यहीं पर मौजूद है। यहां से 15-20 किलोमीटर दूरी में पुनर्वास होने पर भी यह लोगों के हितों को काफी प्रभावित करेगा। 
    
स्थानीय निवासियों व इनके पक्ष में बोलने वालों को इस मामले में सचेत तौर पर निगाह बनाकर रखनी होगी कि जमीन लेने की स्थिति में सभी लोगों का पुनर्वास ठीक तरीके से हो। तभी इस लम्बी लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है और लोगों के आवास के अधिकार को सुरक्षित किया जा सकता है।    -हल्द्वानी संवाददाता
 

आलेख

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो। 

/gazapatti-mein-phauri-yudha-viraam-aur-philistin-ki-ajaadi-kaa-sawal

ट्रम्प द्वारा फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से हटाकर किसी अन्य देश में बसाने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों की पुरानी योजना ही है। गाजापट्टी से सटे पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार है। अमरीकी साम्राज्यवादियों, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाह इस विशाल तेल और गैस के साधन स्रोतों पर कब्जा करने की है। यदि गाजापट्टी पर फिलिस्तीनी लोग रहते हैं और उनका शासन रहता है तो इस विशाल तेल व गैस भण्डार के वे ही मालिक होंगे। इसलिए उन्हें हटाना इन साम्राज्यवादियों के लिए जरूरी है। 

/apane-desh-ko-phir-mahan-banaao

आज भी सं.रा.अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत है। दुनिया भर में उसके सैनिक अड्डे हैं। दुनिया के वित्तीय तंत्र और इंटरनेट पर उसका नियंत्रण है। आधुनिक तकनीक के नये क्षेत्र (संचार, सूचना प्रौद्योगिकी, ए आई, बायो-तकनीक, इत्यादि) में उसी का वर्चस्व है। पर इस सबके बावजूद सापेक्षिक तौर पर उसकी हैसियत 1970 वाली नहीं है या वह नहीं है जो उसने क्षणिक तौर पर 1990-95 में हासिल कर ली थी। इससे अमरीकी साम्राज्यवादी बेचैन हैं। खासकर वे इसलिए बेचैन हैं कि यदि चीन इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह इस सदी के मध्य तक अमेरिका को पीछे छोड़ देगा।