कांवड यात्रा और हिटलरी फरमान

हिंदू फासीवादियों के हिटलरी फरमान पर सुप्रीम कोर्ट ने भले ही अंतरिम रोक लगा दी है परन्तु कांवड यात्रा के दौरान समाज में जहर घोलने की इनकी इस कोशिश ने दिखला दिया है कि हिंदू फासीवादी उत्तर भारत में अपने खोये जनाधार को पाने के लिये किस कदर प्रयासरत हैं। यदि ये इस बार भी पूर्ण बहुमत से केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब हो जाते तब ये देश को किस तरफ बढ़ाते इसका मुजाहिरा भी इनके इस फरमान ने किया है। गौरतलब है कि हिटलर के शासन काल में जर्मनी में यहूदियों को एक बैज लगाकर चलना पड़ता था ताकि उनकी पहचान उजागर रहे।
    
जो खबरें आ रही हैं उनसे पता चल रहा है कि कांवड यात्रा के मार्ग में पड़ने वाले फल विक्रेता, होटलों, ढाबों के मालिक और वहां काम करने वालों ही नहीं अपितु दूसरा कोई सामान बेचने वालों एवं कोई अन्य काम धंधा करने वाले बहुत से लोगों को भी इस दौरान पुलिस ने नेम प्लेट लगाने को बाध्य किया। यहां एक खास बात और भी है कि पुलिस ने हिन्दुओं को अपना पूरा नाम लिखने अर्थात अपनी जातिगत पहचान उजागर करने के लिये भी बाध्य किया। स्पष्ट है कि हिंदू फासीवादियों के इस फरमान के निशाने पर मुसलमानों के साथ दलित और शूद्र भी थे। और इसमें ताज्जुब की कोई बात नहीं है, क्योंकि आर एस एस-भाजपा घोर मनुवादी हैं और ठीक इसीलिये पिछले 10 सालों के इनके शासन काल में दलित उत्पीड़न की घटनायें और उन पर हमले बढ़े हैं।
       
अभी भले ही सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें रोक दिया लेकिन पिछले 10 सालों में हमने कितनी ही बार अलग-अलग स्तरों पर न्याय व्यवस्था को इनके खतरनाक एजेंडे को आगे बढ़ाते हुये एवं इनके समक्ष आत्मसमर्पण करते हुये देखा है। दूसरी संवैधानिक संस्थाओं- ई डी, सी बी आई, चुनाव आयोग इत्यादि की दुर्गति से भी सभी भली-भांति वाकिफ हैं। हिंदू फासीवाद के विरुद्ध संघर्ष में विपक्षी ‘‘इंडिया’’ गठबंधन की सीमायें भी हर बीतते दिन के साथ उजागर हो रही हैं। हालिया लोकसभा चुनाव के बाद से महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से लेकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड तक में मुसलमानों पर लगातार हमले हो रहे हैं लेकिन ऐसे ज्यादातर मौकों पर ‘‘इंडिया’’ गठबंधन और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी चुप्पी लगाये हुये हैं। 
    
इस लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र और कई उत्तर भारतीय राज्यों में मजदूर-मेहनतकश जनता ने एक हद तक भाजपा-आर एस एस के सांप्रदायिक एजेंडे के बनिस्पत बेरोजगारी, महंगाई और लोकतंत्र खत्म करने की इनकी कोशिशों के विरुद्ध मतदान किया। इस कारण ये बहुमत की सरकार बनाने में असफल रहे और इसी कारण विपक्षी ‘‘इंडिया’’ गठबंधन को भी संजीवनी मिली और न्यायपालिका भी इनके दबाव से कुछ मुक्त हुई। आगे भी कोर्ट या ‘‘इंडिया’’ गठबंधन नहीं बल्कि मजदूर-मेहनतकश जनता की अपने आर्थिक मुद्दों पर लड़ाई, साथ ही, फासीवाद और पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष ही हिंदू फासीवादियों को पीछे धकेलेगा।

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।