कर चोरी का गोरखधंधा

सिंगापुर और मारीशस दो छोटे द्वीपीय देश हैं। सिंगापुर की आबादी लगभग 60 लाख है और इसका सकल घरेलू उत्पाद लगभग 525 अरब डालर है। मारीशस की आबादी लगभग 13 लाख और इसका सकल घरेलू उत्पाद लगभग 15 अरब डालर है। इनकी तुलना में भारत आबादी और अर्थव्यवस्था के आकार दोनों के लिहाज से काफी बड़ा देश है। इसकी आबादी लगभग 140 करोड़ और सकल घरेलू उत्पाद लगभग 4000 अरब डालर है। इसके बावजूद सिंगापुर और मारीशस भारत में विदेशी निवेश करने वाले सबसे बड़े दो देश हैं। 2024 के वित्त वर्ष में भारत में सिंगापुर ने 11 अरब डालर से ज्यादा का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया तो मारीशस ने 8 अरब डालर का। इनके बाद ही अमेरिका, जर्मनी और दक्षिण कोरिया का नम्बर आता है। इन्होंने क्रमशः 5 अरब डालर, 50 करोड़ डालर और 40 करोड़ डालर का निवेश किया। 
    
ऐसा कैसे संभव है कि दो छोटे से देश अमेरिका, जर्मनी, दक्षिण कोरिया को पछाड़ कर भारत जैसे बड़े देश के सबसे बड़े प्रत्यक्ष विदेशी निवेशक बन बैठे हैं। इसका राज सिंगापुर और मारीशस जैसे देशों की कर व्यवस्था में छिपा हुआ है। ये देश अपने यहां से कारोबार करने वाली कंपनियों से बहुत मामूली कर लेते हैं। इन देशों का भारत से समझौता है जिसकी वजह से जो कंपनियां अपने कारोबार और आय पर इन देशों को कर चुका देती हैं, उन्हें भारत को कर नहीं देना पड़ता है। इसका लाभ उठाने के लिए भारत की निर्यातक कंपनियां इन देशों में शैल कंपनी खड़ी कर इस फर्जी कंपनी के नाम पर निर्यात करती हैं। इस निर्यात के एवज में होने वाले भुगतान को पुनः ये फर्जी कंपनियां भारत में विदेशी निवेश के रूप में दिखाकर भारत भेजती हैं। इसे राउंड इनवाइसिंग कहा जाता है। इसके जरिये दिखाया गया विदेशी निवेश भारतीय कंपनियों की ही पूंजी होती है। 
    
एक और तरीका राउंड ट्रिपिंग का है। इस मामले में अमेरिका या इंग्लैण्ड की कंपनियां सिंगापुर-मारीशस जैसे देश में फर्जी कंपनियां खड़ी करती हैं और इसके माध्यम से भारत में निवेश करती हैं। इस तरह ये कंपनियां अपने मूल देश में कर नहीं चुकातीं। इस तरह का विदेशी निवेश अमेरिकी या अंग्रेज कंपनियों का होता है लेकिन आंकड़ों में यह सिंगापुर या मारीशस के विदेशी निवेश के रूप में दिखता है। 
    
उदारीकरण के वर्षों में पैदा होने वाले गोरखधंधों में से यह भी एक गोरखधंधा है। 

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

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इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

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