...लेकिन असल सवाल तो इस पूंजीवादी व्यवस्था के अंत का है

बढ़ती असमानता पर आक्सफाम इंटरनेशनल की रिपोर्ट

आक्सफाम इंटरनेशनल ने हालिया प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में बताया है कि दुनिया के 1 प्रतिशत सबसे अमीर लोगों की संपत्ति में पिछले एक दशक में 42 ट्रिलियन डालर अर्थात 420 खरब डालर का जबरदस्त उछाल आया है, और यह रकम दुनिया की निचली आधी आबादी की कुल संपत्ति से 34 गुना अधिक है। प्रति व्यक्ति यह वृद्धि ऊपरी 1 प्रतिशत लोगों में 4 लाख डालर तो निचली 50 फीसदी आबादी में मात्र 335 डालर बैठती है। 
    
रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के इन अरबपतियों में 80 फीसदी जी-20 देशों में रहते हैं और ये अपनी संपत्ति का महज आधा फीसदी ही टैक्स देते हैं। 
    
अमीरी और गरीबी की इस भयावह होती खाई पर चिंता जाहिर करते हुये आक्सफाम इंटरनेशनल की असमानता नीति के प्रमुख मैक्स लासन कहते हैं कि ‘‘असमानता अश्लील स्तर पर पहुंच गई है और सरकारें नागरिकों और दुनिया को इसके विनाशकारी प्रभावों से बचाने में असफल रही हैं।’’
    
आक्सफाम इंटरनेशनल एक ब्रिटिश गैर सरकारी संस्था है जो कि समय-समय पर दुनिया के पूंजीपतियों और सरकारों को मजदूर-मेहनतकश जनता की मेहनत की असीमित लूट के प्रति आगाह करती रहती है, और जनता को थोड़ा कम निचोड़ने अर्थात पूंजीपतियों पर टैक्स बढ़ाने और कुछ कल्याणकारी कदम उठाने के सुझाव देती रहती है, और इस तरह यह संस्था इस पूंजीवादी व्यवस्था के सचेत रक्षक की अपनी भूमिका का निर्वाह करती है। 
    
जब मैक्स लासन कहते हैं कि ‘‘सबसे अमीर एक फीसदी लोग अपनी जेबें भर रहे हैं और बाकियों को टुकड़ों पर जीने के लिये छोड़ दिया गया है’’, तो वे असल में इन ‘टुकड़ों’ को कुछ बढ़ाने मात्र की ही बात कर रहे होते हैं। लेकिन असल सवाल तो यह है कि जब दुनिया की सारी दौलत मजदूर-मेहनतकश जन अपनी मेहनत से पैदा करते हैं तो वह चंद हाथों में कैसे सिमट जाती है? इसका कारण यह पूंजीवादी व्यवस्था है जिस पर आक्सफाम इंटरनेशनल कोई बात नहीं करती है, लेकिन जिसका अंत ही मजदूर-मेहनतकश जनता को इस भयावह शोषण से मुक्ति दिला सकता है।
    
दूसरे, आक्सफाम जैसी संस्थायें 1 प्रतिशत अमीरों की अमीरी की बात करते हुये बढ़ती असमानता को तो चिन्हित करती हैं लेकिन, उस उच्च या उच्च मध्यम वर्ग पर कुछ नहीं बोलती हैं जिसके हित इस पूंजीवादी व्यवस्था के साथ सीधे जुड़े हुये हैं। असल में करोड़ों में खेलने वाला पूंजीवादी व्यवस्था का संचालक यह वर्ग भी मजदूर-मेहनतकश जनता का दुश्मन है।
 

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