माईलाइ नरसंहार की 56वीं बरसी और आज के गाजा में नरसंहार के सबक

माईलाइ नरसंहार : अमेरिकी सैनिकों ने इन वियतनामी महिलाओं और बच्चों को एक साथ इकट्ठा किया फिर आग लगा कर मार डाला।

आज से 56 वर्ष पहले 16 मार्च, 1968 को वियतनाम में माईलाइ के एक दक्षिण वियतनामी गांव में अमरीकी फौजों ने नरसंहार किया था। इस दिन एक अमरीकी फौजी टुकड़ी ने गांव में घुसकर 500 से अधिक निहत्थे, ग्रामीण पुरुषों और महिलाओं को घेरकर बच्चों, अबोध शिशुओं और कुछ बूढ़ों को बहुत ही बेरहमी से मार डाला था। गांव में कोई हथियार नहीं मिला और इस नरसंहार को अंजाम देने में सिर्फ चार घण्टे का समय लगा था। 
    
इस नरसंहार को छिपाने की लाख कोशिशें करने के बावजूद दुनिया के सामने इसकी सच्चाई आ ही गयी। बाद में कुछ निचले स्तर के अमरीकी सैनिकों पर अमरीकी फौजी अदालत में मुकदमा चलाने का नाटक करके उन्हें कुछ सजा सुनायी गयी। लेकिन असली मुजरिम तरक्की करता गया। यह मुजरिम कालिन पावेल था। यह उस समय अमरीकी सेना का मेजर था। इस नरसंहार को रचने के लिए जिन पर मुकदमा चलाया गया था उनमें लेफ्टिनेंट केली और कमाण्डिंग अफसर अर्नेस्ट मदीना सहित कुछ जवान थे। इन लोगों ने मुकदमे के दौरान बताया कि उन्हें सभी वियतनामी लोगों से घृणा करने की शिक्षा दी गयी थी। इन सभी को कोई सजा नहीं दी गयी। सिर्फ लेफ्टिनेंट केली को 20 लोगों की हत्या करने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा दी गयी। बाद में इस सजा को भी माफ कर दिया गया। 
    
लेकिन कालिन पावेल लगातार तरक्की करता गया और अमरीका का विदेश मंत्री बन गया। 
    
लेकिन माईलाइ नरसंहार के बाद समूची दुनिया में अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा वियतनाम पर कब्जा करने के विरुद्ध विरोध तेज होता गया। अंततोगत्वा 1975 में वियतनाम से अमरीकी साम्राज्यवादियों को अपना बोरिया बिस्तर समेटकर जाना पड़ा। इस दौरान और इसके पहले अमरीकी साम्राज्यवादियों ने माईलाइ जैसे अनेकानेक नरसंहार किये थे। लेकिन वियतनामी मुक्ति संग्राम के योद्धाओं द्वारा अमरीकी सैनिकों की मौतें लगातार बढ़ती जा रही थीं। जितना ही अधिक अमरीकी साम्राज्यवादियों की फौज की हताहतों की संख्या बढ़ती जाती थी उतना ही ये और ज्यादा विनाश ओर नरसंहारों को अंजाम देते जाते थे। ये वियतनामी योद्धाओं से पिटते थे और नागरिकों विशेष तौर पर महिलाओं और बच्चों का नरसंहार करते थे। 
    
यह सिलसिला इन्होंने दुनिया भर में जारी रखा है। वियतनाम युद्ध से इन्होंने बस इतना सबक सीखा है कि ये युद्ध के मैदान में अमरीकी सैनिकों की तैनाती से भरसक बचने का प्रयास करते हैं। जमीनी लड़ाई में ये बलि का बकरा बनाने के लिए स्थानीय लोगों को ही लगाते हैं। लेकिन दुनिया पर प्रभुत्व कायम करने की कोशिशों की शैतानी चालें हमेशा चलते रहते हैं। 
    
यही काम ये आज गाजा में फिलिस्तीनियों का नरसंहार कराने में इजरायलियों के साथ मिलकर कर रहे हैं। इजरायल की यहूदी नस्लवादी सत्ता समूचे फिलिस्तीन को फिलिस्तीनियों से मुक्त कराने के अभियान में नरसंहार और विनाश का महाताण्डव रच रही है। लेकिन इस बार उसे फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष के जांबाजों से मुकाबला करना पड़ रहा है। हमास और प्रतिरोध संगठनों को समाप्त करने और इजरायली बंधकों की रिहाई की उसकी कोशिशें अभी तक पूरी नहीं हो पा रही हैं। इससे बौखलाकर वह नागरिकों, महिलाओं और मासूम बच्चों की हत्या कर रहा है। वह नागरिकों के रिहायशी मकानों को जमींदोज कर रहा है। अस्पतालों को मटियामेट कर रहा है। शिक्षण संस्थाओं को खण्डहरों में तब्दील कर रहा है। धार्मिक स्थानों को तबाह बर्बाद कर रहा है। अभी तक वह 30 हजार से अधिक नागरिकों की हत्या कर चुका है और 70 हजार से अधिक लोगों को जख्मी कर चुका है। इस समय वह लोगों को भूखा रखकर मार रहा है। राहत सामग्री को राफा सीमा से भीतर आने से रोक रहा है। सैकड़ों वाहन राफा सीमा पर खड़े हैं। 
    
इतना सब करने के बावजूद वह प्रतिरोध को कुचलना तो दूर की बात है, वह इसे और ज्यादा हमलावर बना रहा है। उसे मजबूत करने में अपने अत्याचारों के जरिए मदद पहुंचा रहा है। हमास और गाजापट्टी में अन्य फिलिस्तीनी प्रतिरोध संगठनों की मदद में उत्तरी इजरायल में लेबनान के हिजबुल्ला लड़ाकू लगातार हमले कर रहे हैं। इधर यमन के हौथी के लड़ाके अदन की खाड़ी और लाल सागर में न सिर्फ इजरायली मालवाहक जहाजों पर हमला कर रहे हैं, इजरायल जाने वाले या वहां से आने वाले जहाजों पर हमला कर रहे हैं बल्कि इजरायल की मदद करने वाले अमरीकी और ब्रिटिश जहाजों पर भी हमला कर रहे हैं। 
    
दुनिया के पैमाने पर इजरायल द्वारा फिलिस्तीनियों पर किये जा रहे नरसंहार के विरोध में प्रदर्शन तेज होते जा रहे हैं। खुद इजरायल के अंदर यहूदी नस्लवादी नेतन्याहू की सत्ता का विरोध हो रहा है। यहूदी नस्लवादी नेतन्याहू से इस्तीफे की मांग बढ़ती जा रही है। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इजरायल द्वारा किये जा रहे नरसंहार के विरुद्ध लाये जाने वाले हर प्रस्ताव पर वीटो का इस्तेमाल करके उसे पारित होने से रोक दे रहे हैं। लेकिन इस समय अमरीकी साम्राज्यवादी आगामी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर चिंतित हैं। इजरायल को अरबों डालर के हथियारों व गोला बारूद की आपूर्ति करके उसे फिलिस्तीनियों के नरसंहार में मदद करने के चलते अमरीकी हुक्मरानों को खुद अमरीकी अवाम द्वारा विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इजरायल के पक्ष में अमरीकी साम्राज्यवादियों के खड़े होने से दुनिया भर में अमरीकी साम्राज्यवादी अलगाव में खुद भी पड़ते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में वह हत्यारे की भूमिका में रहते हुए भी सांताक्लाज के रूप में अपने को पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। 
    
वह गाजापट्टी में भूख, बीमारी और दवाओं के अभाव से मरते बच्चों और बुजुर्गों पर घड़ियाली आंसू बहाते हुए इजरायल से युद्ध पर विराम लगाने और राफा पर जमीनी हमला न करने की बात कर रहे हैं और इसके साथ ही उसे करोड़ों-अरबों डालर के हथियारों से मदद भी पहुंचा रहे हैं। राफा सीमा पर ट्रकों को जाने से इजरायली सत्ता रोक रही है। वह न तो इजरायल पर यह दबाव डाल रहे हैं कि राफा से भोजन, दवायें इत्यादि जरूरी सामान गाजापट्टी के उत्तरी हिस्से तक पहुंचने दिया जाए और न ही इजरायल को गाजापट्टी से सेना को हटाने के लिए वह दबाव डाल रहे हैं। 
    
अपना परोपकारी चेहरा दिखाने की कोशिश करते हुए उसने कुछ राहत सामग्री को पैराशूटों के जरिये हवाई रास्ते से भेजने की कोशिश की। इनमें से कुछ पैराशूट समुद्र में ही गिर गये और एक पैराशूट में लदे सामान में पैराशूट न खुलने की वजह से 5 फिलिस्तीनियों की दबकर मौत हो गयी। एक तो यह हवाई रास्ते से दी जाने वाली मदद जरूरत के हिसाब से ऊंट के मुंह में जीरा थी, दूसरे जिन इलाकों में सबसे अधिक जरूरत है, यानी गाजापट्टी के उत्तरी हिस्से में, वहां तक पहुंचाने की कोई व्यवस्था नहीं की गयी। इजरायली सैनिक हर चीज पर अपना नियंत्रण चाहते हैं और इस वितरण की प्रणाली पर भी अपने नियंत्रण करने के चलते इसके यथोचित वितरण की कोई व्यवस्था नहीं हो रही है। इसलिए जो भी मदद दुनिया भर से आ रही है, वह भी समय से न बंटने के कारण बर्बाद हो जा रही है। 
    
जब दुनिया भर में इजरायल और अमरीका की थू-थू हो रही है और अमेरिकी साम्राज्यवादी इस मसले में अलगाव में पड़ते जा रहे हैं, तब वे इजरायल और फिलिस्तीनी प्रतिरोध आंदोलन के बीच सुलह-समझौते की कोशिशें तेज कर रहे हैं। इसमें भी अमरीकी साम्राज्यवादी इजरायल के हितों को केन्द्र में रखकर समझौता कराने की कोशिश कर रहे हैं। इजरायल की नेतन्याहू सत्ता चाहती है कि गाजापट्टी में लड़ने वाले फिलिस्तीनी संगठनों की सत्ता में कोई भूमिका न हो। हमास को सत्ता से बाहर रखा जाए। फिलिस्तीनियों के हाथ में कोई सेना न हो, उसे असैन्यीकृत किया जाए। गाजापट्टी की सुरक्षा की जिम्मेदारी इजरायली हुकूमत के हाथ में हो। यह सब होने से पहले इजरायली बंधकों को हमास रिहा करे। इसके बदले में वह कुछ फिलिस्तीनी बंदियों को रिहा कर देगा। वह बंदियों और बंधकों की रिहाई तक ही इजरायली सत्ताधारी समझौते को सीमित रखना चाहते हैं। इसलिए इजरायली शासकों की मांग है कि महज 45 दिनों तक युद्ध का विराम रहे। जैसे ही उनके बंधकों को हमास छोड़ देगा वैसे ही इजरायल बड़े पैमाने पर गाजापट्टी में हमला कर देगा। हमास और प्रतिरोध आंदोलन के लोग इसे समझते हैं। इसलिए उनकी मांग है कि इजरायली सेना गाजापट्टी को छोड़कर जाये। स्वतंत्र फिलिस्तीन राज्य बनने की गारण्टी समझौताकार दें। इतना होने के बाद ही सभी बंधक रिहा किये जायेंगे। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादी इजरायली प्रस्ताव के समर्थन में हमास को तैयार करने के लिए मिश्र, कतर और साउदी अरब के शासकों पर दबाव बना रहे हैं। इसी तरह के प्रस्ताव को अमरीकी साम्राज्यवादी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लाने की घोषणा कर चुके हैं। ये वही अमरीकी साम्राज्यवादी हैं जो इसके पहले के सुरक्षा परिषद में इस विषय पर प्रस्तावों पर वीटो का इस्तेमाल कर चुके हैं। अब वही सुरक्षा परिषद में इजरायल के हितों में केन्द्रित प्रस्ताव को ला रहा है। 
    
हमास के समझौताकारों ने ठीक ही कहा है कि जो काम इजरायल व अमरीका युद्ध के मैदान में नहीं कर सके हैं वह वे कूटनीति के जरिए हासिल करना चाहते हैं। फिलहाल समझौता वार्ता किसी नतीजे तक नहीं पहुंच पायी है। इसका सबसे बड़ा कारण अमरीकी साम्राज्यवादियों का पाखण्डपूर्ण व्यवहार है। वह हर संभव तरीके से इस इलाके में अपने प्रभुत्व को बनाये रखने में इजरायल के पक्ष में खड़ा रहना चाहते हैं। पश्चिम एशिया में अमरीकी प्रभुत्व की इजरायल एक अति महत्वपूर्ण कड़ी है। पश्चिम एशिया की अन्य ताकतें इस अति महत्वपूर्ण कड़ी की सहयोगियों के बतौर हैं। अमरीकी साम्राज्यवादियों की पश्चिम एशिया की नीति की यह एक धुरी है। उनकी पश्चिम एशिया की विदेश नीति की दूसरी धुरी ईरान का विरोध है। बाकी हिजबुल्ला, हौथी और सीरिया व इराक के लड़ाकों को वह ईरान द्वारा खड़े किये गये और समर्थित ‘आतंकवादी’ समूह समझता है। इन दोनों मुद्दों के इर्द गिर्द अमरीकी साम्राज्यवादियों की पश्चिम एशिया नीति टिकी हुई है।
    
लेकिन समूची दुनिया सहित पश्चिम एशिया के शक्ति संतुलन में काफी परिवर्तन हो गये हैं और अमरीकी साम्राज्यवादियों के वर्चस्व को अलग-अलग जगहों पर चुनौती मिल रही है। हालांकि अभी भी यह एक सच्चाई है कि वह सबसे बड़ी आर्थिक और सैनिक ताकत है। लेकिन उसकी ताकत का प्रभाव पहले के दो-तीन दशकों की तुलना में कमजोर हुआ है। यूरोप में उसे रूस से टक्कर मिल रही है। यूक्रेन में तो वह लगभग अपने नाटो सहयोगियों के साथ मिलकर भी हार की तरफ बढ़ रहा है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में उसे चीन का मुकाबला करना पड़ रहा है। पश्चिम एशिया में उसे रूस, चीन और ईरान के साथ प्रतिद्वन्द्विता और टकराहट में आना पड़ रहा है। स्थानीय ‘प्रतिरोध की धुरी’ उसके लिए अलग से सिरदर्द बनी हुई है। 
    
ऐसी हालत में वह और ज्यादा बौखलाकर माईलाइ जैसे नरसंहारों को अंजाम देने में इन इलाकों में अपने साथ खड़ी प्रतिगामी ताकतों की मदद करेगा। 
    
यह अमरीकी साम्राज्यवादी और उसके सहयोगी इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों की मौत के पहले की तड़फड़ाहट है जो उन्हें क्रूर नरसंहारों और विनाश करने की ओर ले जा रही है। 
    
यह इनके चरित्र में है कि ये माईलाइ जैसे नरसंहारों से यही सबक सीख सकते हैं कि किस तरह इसे छिपा लिया जाए। ये इनको करने से अपनी मौत तक बाज नहीं आयेंगे। 

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