बेशर्म अमीरी का प्रदर्शन

बीते दिनों टी वी चैनलों पर देश के सबसे अमीर आदमी मुकेश अम्बानी के लड़के अनंत अम्बानी की प्री वैडिंग (शादी पूर्व) समारोह छाया रहा। बालीवुड सितारे-क्रिकेट खिलाड़ी-बिल गेट्स-जुकरबर्ग-इंवाका ट्रम्प सरीखे अमीरजादे इस समारोह में शामिल हुए। 1 से 3 मार्च तक जामनगर में हुए इस समारोह में एक अनुमान के मुताबिक 1259 करोड़ रु. खर्च किये गये। 
    
अनंत अम्बानी-राधिका मर्चेण्ट की शादी जून-जुलाई माह में होनी है। शादी से पूर्व हुए इस समारोह में प्रस्तुति देने आयी रिहाना को ही करीब 70 करोड़़ रु. का भुगतान किया गया। बाकी खर्च सजावट से लेकर 1200 मेहमानों को जेट विमान से लाने, 2500 तरीके के व्यंजन, आलीशान रुकने के स्थान, फैशन डिजाइनरों द्वारा निर्मित कपड़ों, हर मेहमान के लिए मेकअप करने वालों आदि में किया गया। 
    
चाटुकार पत्रकारों ने बताया कि 9.7 लाख करोड़ रु. (117.7 बिलियन डालर) सम्पत्ति के मालिक मुकेश अम्बानी ने इस समारोह में अपनी सम्पत्ति का चुटकी भर हिस्सा खर्च किया है। बात सही भी है कि मुकेश अम्बानी ने अपनी दौलत का महज 1000वां हिस्सा ही इस समारोह पर खर्च किया। चाटुकार पत्रकारों में बहुत से अम्बानी द्वारा नियंत्रित चैनलों में ही कार्य करते थे। इन्होंने अनंत अम्बानी के जानवर प्रेम का भी पूरी भक्तिभाव से वर्णन किया। 
    
अमीरी का प्रदर्शन करने में सरकार भी अम्बानी के आगे नतमस्तक रही। जामनगर के इस आयोजन के लिए जामनगर के हवाई अड्डे को रातां-रात अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा घोषित कर दिया गया। और भी सुरक्षा संबंधी इंतजाम सरकार द्वारा किये गये। 
    
भारत सरीखे गरीब देश में जहां करोड़ों युवा बेरोजगार हों, एक बड़ी आबादी दो वक्त का भरपेट भोजन भी न जुटा पा रही हो वहां अमीरी का-अय्याशी का यह प्रदर्शन कहीं से भी जायज नहीं ठहरता। यह प्रदर्शन शर्मनाक है। 
    
आखिर अम्बानी के पास यह अरबों की दौलत कहां से इकट्ठा हुई? चाटुकार लोग-भक्त लोग इसके पीछे मुकेश अम्बानी की मेहनत देख सकते हैं। पर असलियत यही है कि यह दौलत देश के करोड़ों-करोड़ मजदूरों-किसानों की मेहनत की लूट खसोट कर कमाई गयी है। इस लूट में सारी सरकारें खासकर मोदी सरकार अम्बानी के पक्ष में और मजदूरों-मेहनतकशों के खिलाफ खड़ी रही हैं। इसलिए अम्बानी अगर भारत का सबसे रईस आदमी बनकर बेशर्म अय्याशी का प्रदर्शन कर पा रहा है तो यह करोड़ों मेहनतकशों के खून-पसीने को निचोड़ने के जरिये ही संभव हुआ है। पूंजीवादी व्यवस्था की यही सच्चाई है कि यहां करोड़ों लोगों को भुखमरी-गरीबी-कंगाली में धकेल चंद लोग अमीरजादे बन जाते हैं। 
    
मोदी सरकार ने इन अमीर जोंको को मजदूरों-मेहनतकशों के खून को चूसने के नये-नये मौके मुहैय्या कराये हैं। मोदी सरकार अम्बानी-अडाणी की सरकार अगर कही जाती है तो यह कहीं से भी गलत नहीं है। 
    
खैर अम्बानी महोदय की इस बेशर्म अय्याशी में सारे नामी-गिरामी सेलीब्रेटीज-खिलाड़ी व धन्ना सेठ मौजूद थे। अक्षय कुमार-सलमान-शाहरुख से लेकर रिहाना तक सब मनोरंजन करने के लिए मौजूद थे। पर अम्बानी के सबसे चहेते कारिन्दे की कमी सबको नजर आयी। इस कारिन्दे के शासन की बदौलत ही अम्बानी की दौलत को पंख लगे हुए हैं। 
    
शायद यह कारिन्दा समारोह में आमंत्रित रहा हो पर खुद के अम्बानी-अडाणी के चाकर टैग से शर्माकर चुनावी मौसम में वह समारोह में आने से हिचक गया हो। या फिर यह भी हो सकता है कि अनंत अम्बानी को यह भय रहा हो कि इसके आने से सारे कैमरे की लाइट वही न लूट ले जाये, बेचारे दूल्हे को कोई पूछे भी नहीं। खैर वजह कुछ भी हो, अनंत अम्बानी की शादी आने तक चुनावी मौसम बीत चुका होगा और हो सकता है कि शादी में रिहाना की भूमिका इस कारिन्दे को ही मिल जाये। कारिन्दे ने आस नहीं छोड़ी है। 

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।