रुद्रपुर/ लुकास टीवीएस मजदूर संघ के 32 मजदूरों को 5 फरवरी से प्रबंधन व श्रम विभाग के अधिकारियों के उत्पीड़न के खिलाफ हड़ताल पर जाने को मजबूर होना पड़ा था। इसके बाद 7 फरवरी को उप श्रमायुक्त (डीएलसी) रुद्रपुर द्वारा एक वार्ता की गई जिसमें प्रबंधन आया था। डीएलसी महोदय द्वारा बिना लेबर कोर्ट की अनुमति के बर्खास्त करने को गलत माना था और आईडी एक्ट के पालन और यथास्थिति बनाए रखने की बात की थी।
8 फरवरी को मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) के कार्यक्रम जोकि श्रम भवन, रूद्रपुर में हुआ था, में लुकास मजदूरों ने भागीदारी की थी।
श्रम विभाग के अधिकारियों द्वारा लगातार मजदूरों को धरना स्थल गांधी पार्क में होने का हवाला देते हुए धरना गांधी पार्क में ले जाने को कहा गया। 19 फरवरी से मजदूर गांधी पार्क में दिन-रात 24 घण्टे धरना दे रहे हैं।
इसी कड़ी में 24 फरवरी को डीएलसी हल्द्वानी में वार्ता हुई जिसमें प्रबंधन को डीएलसी द्वारा फटकार लगाई गई और एएलसी रुद्रपुर के लिए मामला ट्रांसफर कर दिया गया। साथ ही मामला निपटाने को 3 दिन का समय प्रबंधन को दिया गया कि मामले को निपटा लें। 4 मार्च को एएलसी में पुनः तारीख लगी थी। उस वार्ता में भी प्रबंधन द्वारा कोई आश्वासन नहीं मिला। एएलसी द्वारा प्रबंधन को 12 घंटे का समय दिया गया। साथ ही एएलसी द्वारा 14। के अंतर्गत केस दर्ज करने का हवाला दिया गया। 5 मार्च की वार्ता में प्रबंधन का केवल एक प्रतिनिधि ही आया। और उसने कोई कागज दिया कि कोर्ट में मामला चल रहा है इसलिए हम कोई कार्रवाई नहीं कर सकते हैं।
कई महीनों के बाद लुकास, करोलिया व इंटरार्क के मजदूरों की कार्यबहाली, श्रम विभाग रुद्रपुर में सक्षम ए एल सी की नियुक्ति जो मज़दूरों के वेतन आदि मामले सुनने का अधिकार रखता हो, के साथ ही उपश्रमायुक्त की स्थायी नियुक्ति हेतु श्रमिक संयुक्त मोर्चे द्वारा बैठकों का सिलसिला पुनः शुरू किया गया। 21 फरवरी को शुरुआती बैठक हुई उसमें कुछ कार्यक्रम किये जाने पर सहमति बनी। दुबारा 28 फरवरी को धरना स्थल पर गांधी पार्क में बैठक हुई। उसमें 4 मार्च को श्रम विभाग में अनिश्चितकालीन कार्यक्रम करने की रणनीति को बनाया गया। उस बैठक से पहले ही मोर्चा अध्यक्ष के पास प्रशासन का संदेश आता है कि एस डी एम साहब आप लोगों की समस्याओं को लेकर काफी चिंतित हैं जल्द ही वार्ताओं के माध्यम से मामलों को निपटाया जाएगा। जिला प्रशासन द्वारा यह कार्यवाही 6 मार्च को मुख्यमंत्री का कार्यक्रम रुद्रपुर गांधी पार्क में होना था, के दबाव में की गयी। प्रशासन ने आनन-फानन में मोर्चे के पदाधिकारी को 29 तारीख को बुलाया। जिसमें यह कहा गया कि जिला प्रशासन 10 तारीख तक सभी मामले निपटाने की कोशिश करेगा। उपश्रमायुक्त के लिए शासन स्तर पर ही कुछ हो सकता है यह हमारे हाथ में नहीं है। मामलों को सुनने के लिए ए एल सी के बाद जिला स्तरीय कमेटी में सुना जाएगा। तब तक आप लोग किसी प्रकार की गतिविधि न करो।(क्योंकि जिला प्रशासन को यह भली भांति पता है कि कुछ ही समय में चुनाव आचार संहिता लागू हो जाएगी तब मजदूरों को प्रदर्शन करने से रोका जा सकता है)। इसी कड़ी में 1 मार्च को मोर्चे द्वारा प्रेस कान्फ्रेंस की गई और प्रशासन के इस आश्वासन से अवगत कराया गया कि वार्ता कर 10 मार्च तक मामला निपटा दिया जाएगा। परंतु 10 तारीख तक केवल और केवल लुकास के मामले में ही श्रम विभाग द्वारा कम्पनी प्रबन्धन पर केस दर्ज करने का पता लगा है। उसके अलावा कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है।
लुकास यूनियन बी एम एस से संघबद्ध होने के कारण बी एम एस द्वारा 2 मार्च को सिडकुल क्षेत्र में बाइक रैली निकालकर जिलाधिकारी महोदय को मजदूरों की समस्याओं से सम्बंधित एक मांग पत्र सौंपा गया। इसके अलावा वार्ताओं में बीएमएस के जिला स्तर के पदाधिकारी बैठते हैं। साथ ही हाल ही में गठित न्यूनतम मजदूरी बोर्ड की बैठक में इस मामले को उठाया गया इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
इस सबके बावजूद मजदूर 24 घंटे लगातार धरने पर डटे हुए हैं। वे अपने संघर्ष को आगे बढ़ा रहे हैं। सवाल इस बात का है कि उनकी मांग स्थाई नियुक्ति पत्र, अवैध तरीके से निलंबन-निष्कासन पर रोक लगाई जाए, समुचित वेतन बढ़ोत्तरी की जाए, यूनियन को मान्यता दी जाए आदि की है जो कि न्याय संगत मांगें हैं। परंतु केंद्र की मोदी सरकार द्वारा जब श्रम कानूनों में पूंजीपतियों के पक्ष में बदलाव कर दिए गए हैं। ऐसे में मजदूरों को अपने हक अधिकारों को बचाना काफी मुश्किल हो गया है। चाहे वह सत्ताधारी पार्टी की ही ट्रेड यूनियन क्यों न हो। ऐसे में हर मेहनतकश को अपनी वर्गीय एकता के आधार पर एकजुट होकर एक बड़े आंदोलन की जरूरत है।
-रुद्रपुर संवाददाता
लुकास टी वी एस के मजदूरों का संघर्ष जारी
राष्ट्रीय
आलेख
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।