बीते दिनों 8 मार्च को दिल्ली के इंद्रलोक इलाके में एक तस्वीर रातों रात चर्चा का विषय बन गयी। यहां नमाज के लिए सड़क पर सजदे में झुके युवकों को एक पुलिसकर्मी लात मारकर खदेड़ता नजर आया। मनोज कुमार नामक यह पुलिस अधिकारी जिस बेशर्मी व असंवेदनशीलता के साथ नमाज पढ़ने को इकट्ठा हुए लोगों के साथ सलूक कर रहा था उसे देखकर हर संवेदनशील इंसान अपने को आहत महसूस करे बगैर नहीं रह सकता।
खैर मामला जब चारों ओर फैला तो मनोज तोमर का निलंबन हो गया। पर कुछ हिन्दुत्ववादी लोगों को मनोज तोमर बहादुरी का पुतला नजर आने लगा। वे ट्विटर पर मनोज तोमर के समर्थन में अभियान चलाने लगे। इन लोगों को मनोज कुमार इसलिए बहादुर नजर आ रहा था क्योंकि वह मुस्लिमों पर लात चला रहा था। कुछ लोग तो बाकायदा सड़क पर नमाज से होने वाले जाम इत्यादि का हवाला देकर मनोज तोमर को जायज ठहरा रहे थे। कुछ तो इतने अधिक मुस्लिम विरोध से भरे थे कि उन्हें मुस्लिमों के खिलाफ कुछ भी करने-कहने वाले भगवान सरीखे नजर आने लगते थे।
सड़क पर नमाज के वक्त पुलिस अफसर की लात और सोशल मीडिया पर मुस्लिम विरोधी जहर उगलते लोग दोनों ही आज देश में मुसलमान लोगों की दोयम दर्जे की बन चुकी स्थिति को दर्शा रहे हैं। लात लगाते पुलिस अफसर और सोशल मीडिया पर भद्दी गालियां लिखते लोग दोनों ही जिस हिन्दूवादी फासीवादी राजनीति के शिकार हैं वह राजनीति मोदी के ‘नये भारत’ की असलियत है।
स्पष्ट ही है कि लात लगाते अफसर को लात चलाने का कोई ऊपरी आदेश नहीं था। वह खुद की अक्ल से यह काम कर रहा था। जैसे कि उस अफसर की रक्षा में सोशल मीडिया में उतरे लोग अपनी अक्ल से मुसलमानों को गरियाने में जुटे थे। पर उनकी यह नफरती अक्ल कहां से पैदा हुई? यह अक्ल संघ-भाजपा ने अपने दुष्प्रचार से अपने मनगढ़न्त किस्सों से देश में स्थापित की है। यह नफरती अक्ल ही संघ-भाजपा की इतने सालों की कुल कमाई है जिसके दम पर वह जब चाहे दंगे भड़का सकते हैं जब चाहे वोट की फसल लहलहा सकते हैं।
इस नफरती अक्ल के शिकार लोग इस सामान्य सी वास्तविकता को देखने से इनकार कर देते हैं कि सड़क जाम की घटनायें 15-20 मिनट की जुम्मे की नमाज से कई गुना ज्यादा कांवड़ यात्रा, गणेश पूजा से लेकर हिन्दू धर्म के तमाम आयोजनों में आये दिन होती रहती है। क्या बराबरी के तर्क के आधार पर कोई पुलिस वाला कांवडिए पर लात चला सकता है? क्या ये लोग तब भी उस पुलिसवाले का समर्थन करेंगे? उत्तर स्पष्ट है कि तब ऐसा नहीं होगा।
एक तरफ कांवड़ यात्रा पर उ.प्र. के मुख्यमंत्री फूल बरसाते हैं दूसरी तरफ नमाज पढ़ने वालों पर पुलिस लात बरसाती है। यही मोदी का ‘नया भारत’ है।
नफरती अक्ल के शिकार लोग इस गुरूर में खुश हैं कि लात मुस्लिमों पर बरस रही है। पर वे यह नहीं देख पा रहे हैं कि संघ-भाजपा का ‘नया भारत’ उनके सिर और पीठ पर भी छुप कर लातें बरसा रहा है। ये लात बेकारी की लात है यह महंगाई की लात है यह महंगी शिक्षा-महंगे इलाज-महंगे राशन की लात है। यह घटती कमाई की लात है। इन सारी लातों को मुस्लिम ही नहीं हिन्दू भी झेल रहे हैं। अभी यह लात नफरती अक्ल वालों को समझ नहीं आ रही है पर आने वाले वक्त में ‘नये भारत’ की सीधी लातें जब उन पर पड़ने लगेंगी तब जरूर समझ में आयेंगी। तब यह असलियत सब देख पायेंगे कि ‘नया भारत’ अम्बानी-अडाणी का, संघ-भाजपा का भारत है इसमें मजदूरों-मेहनतकशों छात्रों-महिलाओं को बस लात ही झेलनी है।
मोदी के ‘नये भारत’ की लातों से बचने के लिए जरूरी है कि नमाज पढ़ते मुसलमान से लेकर, हक मांगते किसानों तक जिस पर भी लात पड़ रही हो, उनके साथ खड़े हो दमनकारी सत्ता का मुकाबला किया जाए। संघ-भाजपा द्वारा पोषित नफरती अक्ल से मुक्त हुआ जाये।
यह ‘नये भारत’ की असली तस्वीर है
राष्ट्रीय
आलेख
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।