
मोदी ने केन्द्र की सत्ता में बैठते ही लफ्फाजियों की झड़ियां लगानी शुरू कर दी थीं। मोदी ने अपने आप को 18-18 घंटे काम करने वाले के रूप में प्रचारित कराया। इस बात को इस रूप में प्रचारित कराया कि देखो मोदी देश की कितनी चिंता करते हैं। वह खुद अपने बारे में न सोचकर देश के लिए सोचते हैं। ऐसी लफ्फाजियां शासक किसी खास मानसिक सोच से और खास स्थितियों में करता है। इसका मतलब यह है कि जब जनता अपनी मूलभूत सुविधाओं के संकट से जूझ रही हो और शासक वर्ग को कुर्सी से और पूंजीपति वर्ग से बेइंतहा प्यार हो। दूसरा ऐसा शासक जो खुद कट्टर धार्मिक सोच से ग्रस्त हो, ऐसी स्थिति में शासक वर्ग जनता की जन भावनाओं के बाजार को तैयार कर साम्प्रदायिकता के जहर को बेचने का काम करते हैं।
और तब जनता को दो तरह की चीजों का सामना करना पड़ता है। एक तरफ बेरोजगारी, महंगाई का तोहफा दिया जाता है तो दूसरी तरफ साम्प्रदायिकता का जहर दिमागों में भरा जाता है। मोदी के मेहनती होने की बात की जाए तो मोदी जी ने मेहनतकश जनता से जन सुविधाओं को छीन कर जनता को अभावग्रस्त जीवन जीने के लिए धकेला है। दूसरी तरफ देशी-विदेशी पूंजीपति वर्ग को देश की सारी धन सम्पदा सौंपने का काम किया है। देश की मेहनतकश जनता को एक-दूसरे के धर्म के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है। देश में धार्मिक नफरती भीड़ को तैयार किया जा रहा है।
यह नफरती भीड़ न कुछ सोचती है न कुछ सुनती है। इसे जो लक्ष्य और निर्देश दिया जाता है यह उसे पूरा करने में लग जाती है। मोदी की मेहनत का केंद्र बिंदु और 18-18 घंटे काम का मकसद ये ही था और आगे भी ऐसा ही रहेगा। मोदी जी के विकास माडल, अच्छे दिनों का वादा और सबका साथ सबका विकास आदि लफ्फाजियों का परिणाम हमारे सामने है। इससे अलग अगर आम मेहनतकश जनता इस शासन से कुछ अपने लिए बेहतरी की उम्मीद करती हैं तो यह जनता का भोलापन और उसकी अज्ञानता होगी। -एक पाठक