(यह कविता मोमिता आलम ने हिन्दू फासीवादी तत्वों द्वारा बनाये गये बुल्ली बाई व सुल्ली डील्स एप के खिलाफ लिखी थी। इन एपों पर मुस्लिम महिलाओं की तस्वीरें डाल उनकी नीलामी की बातें की गयी थीं)
मैं एक मुस्लिम औरत हूं
और मैं बिक्री के लिए नहीं हूं
मैंने आजादी की लड़ाई के लिए अपना जीवन
उत्सर्ग किया
मैं ब्रिटिश शासन के खिलाफ खड़ी रही
मैं शाहीन बाग हूं
मैं वह आवाज हूं जिससे तुम आतंकित हो
कश्मीर में, मणिपुर में
मैं दमन के खिलाफ हूं
मैं तुम्हारा नाम लेती हूं
जामिया में, अलीगढ़ में
मैं इतिहास हूं
जिसे तुम धो-पोंछ देना चाहते हो
मैं भूगोल हूं
जिसे तुम निगल जाना चाहते हो
मैं बहन हूं
जो सभी सताए भाइयों के लिए खड़ी होती है
मैं मां हूं
जिसके बेटे गायब हो जाते हैं
मैं बीबी हूं
जो तुम्हारी बीमारी में तुम्हें आराम देती है
मैं देखभाल करने वाली हूं
मैं प्रेमिका हूं
मैं भूमि में हूं
मैं अग्नि में हूं
मैं आकाश में हूं
मैं आवाज हूं
क्रूर शासन के खिलाफ!
मैं नर्स, डाक्टर, फाइटर, रिपोर्टर हूं
और भी बहुत कुछ
मैं बुर्के में हूं, बिना बुर्के भी
मैं बेजुबानों के लिए आवाज हूं
मैं अयूब हूं, मैं खानम हूं
मैं सिदरा हूं, मैं आजिम हूं,
मैं इस्मत हूं, मैं राना हूं
मैं असंख्य रोशनी हूं
सिंघु में जुगनू की तरह चमकती हूं
मैं एक मुस्लिम औरत हूं
मैं अपनी आंखों में रोशनी लिए हूं
तुम्हारे लिए
ओ कायर, ओह स्वेच्छाचारी अंधों !
हां
मैं एक मुस्लिम औरत हूं
और मैं नीलामी के लिए नहीं हूं
(साभार : नवजीवन संडे)
मैं एक मुस्लिम औरत हूं -मोमीता आलम
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को