
मजदूर वर्ग के शोषण-उत्पीड़न के मामले में कांग्रेस व भाजपा सरकारें एक सी हैं। इस बात को हाल में ही कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने अपने एक कदम से साबित कर दिया। फरवरी 2023 में जब मजदूर विरोधी कारखाना (कर्नाटक संशोधन) बिल 2023 विधानसभा में पारित हुआ तो भाजपा सरकार सत्तासीन थी तब कांग्रेस द्वारा इस बिल का विरोध करते हुए वाकआउट किया गया था। पारित होने के बाद यह बिल राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिया गया था क्योंकि यह केन्द्रीय कारखाना अधिनियम में संशोधन करता था। 10 जुलाई 2023 को राष्ट्रपति ने इस बिल पर सहमति प्रदान कर दी। अब 7 अगस्त 2023 को राज्य में नयी बनी कांग्रेस सरकार ने इस बिल की अधिसूचना जारी कर इसे लागू कर दिया है।
इस बिल में चोर दरवाजे से काम के घण्टे 8 से 12 घण्टे प्रतिदिन करने का प्रावधान किया गया है। बिल में हालांकि कहा गया है कि किसी कामगार से सप्ताह में 48 घण्टे से अधिक काम नहीं लिया जा सकता। पर साथ ही एक दिन में अधिकतम 12 घण्टे तक कार्य कराने की छूट दे दी गयी है। इसकी व्याख्या इस रूप में की जा रही है कि व्यक्ति से सप्ताह में 4 दिन 12-12 घण्टे काम करा 3 दिन का अवकाश दे दिया जायेगा। इसके साथ एक तिमाही में ओवरटाइम के घण्टे 75 से बढ़ा कर 145 कर दिये गये हैं। हालांकि ओवरटाइम कराने के लिए शर्त यह रखी गयी है कि व्यक्ति से प्रतिदिन 12 घण्टे काम व हफ्ते में 60 घण्टे से ऊपर काम नहीं कराया जा सकता। साथ ही ओवरटाइम व्यक्ति की सहमति से ही कराने की बात कही गयी है। सरकार की मंशा सुस्पष्ट है कि सरकार फैक्टरियों को इन दोनों प्रावधानों के जरिये प्रतिदिन मजदूरों से 12 घण्टे काम कराने की छूट देना चाहती है। सहमति व हफ्ते में 48 से 60 घण्टे की सीमा तो महज दिखावे के बतौर व कानूनी मजबूरी के चलते कानून में शामिल किये गये हैं।
इसी के साथ इस नये कानून के तहत मजदूरों के काम के दौरान आराम हेतु अंतराल के संदर्भ में कहा गया है कि आम तौर पर मजदूर हर पांच घण्टे काम के बाद आधे घण्टे के ब्रेक का हकदार है पर सरकार कारखानों की किसी श्रेणी के लिए यह समय सीमा बढ़ाकर 6 घण्टे कर सकती है।
साथ ही नया कानून महिलाओं से रात की पाली में काम की छूट इन शर्तों के साथ देता है कि काम के वक्त कम से कम हर बैच में 10 महिलायें हों, कारखाने के भीतर व बाहर उचित प्रकाश व सीसीटीवी की व्यवस्था हो, एक तिहाई सुपरवाईजर महिलायें हों, महिलाओं को परिवहन सुविधा मुहैय्या हो व महिला काम हेतु लिखित सहमति देती हो।
स्पष्ट है कि महिलाओं से रात की पाली में काम के संदर्भ में लगाई गयी शर्तें सजावटी व दिखावटी ही अधिक साबित होंगी जिनका व्यवहार में कोई अनुपालन नहीं होगा और प्रबंधन व मालिकों को महिला मजदूरों का शोषण-उत्पीड़न बढ़ाने का नया कानूनी औजार हासिल हो जायेगा। महिलायें जब दिन के समय ही सुरक्षित नहीं हैं, तब रात में उनकी असुरक्षा की स्थिति सहज ही समझ में आने वाली है।
भाजपा सरकार के समय यह बिल जब लाया गया तो कांग्रेस ने इसका विरोध किया था। चुनाव के वक्त कांग्रेस ने 9 घण्टे का कार्यदिवस का वायदा भी किया था पर अब खुद कांग्रेस सरकार इस बिल को कानून में बदलने की अधिसूचना जारी कर रही है। स्पष्ट है कि भाजपा-कांग्रेस दोनों ही पूंजीपतियों की चाकर पार्टियां हैं और दोनों ही मजदूरों-मेहनतकशों के शोषण-उत्पीड़न को बढ़ाने के मामले में एक हैं। कांग्रेस सरकार ने इस बात को उपरोक्त कानून बना व्यवहार में साबित कर दिया है।