नाटो का शिखर सम्मेलन : युद्ध और आक्रामकता बढ़ाने का औजार

अमरीकी साम्राज्यवादियों के नेतृत्व में नाटो देशों का शिखर सम्मेलन अमरीका में 9 जुलाई से लेकर 11 जुलाई तक हुआ। इस शिखर सम्मेलन में नाटो के सदस्य देशों के अलावा, अमरीकी साम्राज्यवादियों ने आस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैण्ड के प्रतिनिधियों को भी भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। यह शिखर सम्मेलन नाटो की स्थापना की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित किया गया। अमरीकी साम्राज्यवादियों ने शिखर सम्मेलन के शुरू होने के पहले इस संगठन के ‘‘शानदार इतिहास’’ और इसके सदस्य देशों के बीच ‘‘एकता’’ का बखान किया है। 
    
नाटो में अमरीकी राजदूत ने अपने एक लेख में कहा :
    
‘‘जब नाटो की स्थापना हुई थी, तो राष्ट्रपति ट्रूमैन ने इसे आक्रामकता के विरुद्ध एक ढाल के रूप में देखा था, और यह बिल्कुल वैसा ही साबित हुआ है। यह ऐतिहासिक गठबंधन स्वतंत्रता, सुरक्षा और समृद्धि के लिए हमारी सामूहिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है।’’
    
इसके आगे वे कहते हैंः 
    
‘‘नाटो वैश्विक शांति और सुरक्षा की आधारशिला भी बन गया है। दुनिया भर में 35 से ज्यादा सक्रिय साझेदारियों के साथ, नाटो मानता है कि वैश्विक चुनौतियों के लिए वैश्विक समाधान की जरूरत है। इनमें से कुछ साझेदारियां लम्बे समय से चली आ रही हैं। इस साल, शांति के लिए हमारी साझेदारी और भूमध्यसागरीय संवाद साझेदार नाटो साझेदारों के रूप में अपनी 30वीं वर्षगांठ मनायेंगे और इस्तांबुल सहयोग पहल साझेदार भी इसी तरह अपनी 20वीं वर्षगांठ मनायेंगे।’’
    
अमरीकी साम्राज्यवादियों के इस प्रतिनिधि के लेख में उसके पाखण्ड का पूरा खुलासा हो जाता है। नाटो कभी भी ‘‘आक्रामकता के विरुद्ध एक ढाल’’ नहीं रहा है बल्कि अमरीकी साम्राज्यवादियों के नेतृत्व में नाटो ने हमेशा देशों और विरोधी साम्राज्यवादियों (जिसमें पहले सोवियत सामाजिक साम्राज्यवादी और इस समय रूसी और चीनी साम्राज्यवादी हैं) के विरुद्ध आक्रामक रुख अपनाया है। यह गठबंधन कभी भी ‘‘स्वतंत्रता’’,‘‘सुरक्षा’’ और ‘‘समृद्धि’’ के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक नहीं रहा है। बल्कि इसके विपरीत यह देशों की ‘‘स्वतंत्रता’’ को कुचलने, उनकी ‘‘सुरक्षा’’ को खतरे में डालने और ‘‘समृद्धि’’ को भयावह गरीबी में धकेलने के लिए जिम्मेदार रहा है। इसके उदाहरण इराक, अफगानिस्तान, लीबिया, सीरिया, यूगोस्लाविया और अन्यत्र भरे पड़े हैं।
    
अभी हाल में ही रूस-यूक्रेन युद्ध इसका उदाहरण हैं। वस्तुतः रूस को आक्रमण करने के लिए उकसाने में अमरीकी साम्राज्यवादियों और नाटो की भूमिका अब दुनिया के सामने स्पष्ट हो चुकी है। इसकी शुरूवात उसने 2014 में ही कर दी थी। 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने के 8 वर्ष पहले ही यह प्रक्रिया तेज हो चुकी थी। 2014 और 2015 में दोनेत्स्क और लुहांस्क के इलाकों के बारे में हुए समझौतों को यूक्रेन ने कभी लागू नहीं किया और वह उन इलाकों में रूसी भाषी लोगों पर गोलीबारी और अत्याचार जारी रखे हुए था। नाटो के सदस्य देश जर्मनी के चांसलर ने यह साफ-साफ स्वीकार किया कि 2014 और 2015 में मिंस्क समझौता यूक्रेन को सैनिक तैयारी करने के लिए समय देने के लिए किया गया था। इसका पालन कराना कतई उद्देश्य नहीं था। जहां कहीं भी अमरीकी सेनायें और नाटो की सेनायें जाती हैं वे तबाही लाती हैं और आजादी की चाहत को कुचलती हैं। आज वे नाटो का विस्तार एशिया प्रशांत क्षेत्र में कर रही हैं। 
    
इस शिखर सम्मेलन में यह भी कहा गया है कि रूस-यूक्रेन युद्ध में चीन रूस का समर्थन ही नहीं करता बल्कि उसे सैनिक साजो सामान में इस्तेमाल होने वाले सेमी कंडक्टर और चिप्स की भी आपूर्ति करता है। अतः इस मामले में चीन को भी सबक सिखाये जाने की आवश्यकता है।
    शिखर सम्मेलन में उद्घाटन समारोह में, अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दावा किया कि नाटो आज ‘‘पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली है।’’ नाटो महासचिव जेन्स स्टोलेनबर्ग ने भी नाटो को ‘‘न केवल पहले से सफल और सबसे मजबूत, बल्कि इतिहास का सबसे लम्बे समय तक चलने वाला गठबंधन’’ बताया। जबकि वास्तविकता यह है कि अमरीका सहित यूरोप के नाटो सदस्य देशों की मजदूर-मेहनतकश और न्याय प्रिय जनता नाटो की आक्रामक गतिविधियों का विरोध कर रही है और यह विरोध दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। अमरीकी अखबार न्यूयार्क टाइम्स ने जिक्र किया है कि अमरीकी राष्ट्रपति ‘‘विश्वास को मजबूत करने’’ का दावा कर रहे हैं, लेकिन जैसे ही भाग लेने वाले नेता वाशिंगटन पहुंचे, यह विश्वास खतरे में लग रहा था।’’ जिस रफ्तार से अमरीकी और यूरोपीय राजनीति में भारी फेरबदल हो रहे हैं, उसमें ‘‘यह आश्चर्य व्यक्त करना मुश्किल नहीं है कि गठबंधन अब से एक साल बाद क्या 76वें वर्ष तक जीवित और स्वस्थ रहेगा- कैसा दिखेगा। 
    
यहां इस बात पर गौर करना चाहिए कि नाटो समूह टकराव और इस समूह की आक्रामक राजनीति की पैदाइश है। नाटो दुनिया की मजदूर-मेहनतकश आबादी की ही नहीं बल्कि आजादी और न्यायपसंद लोगों की आबादी की आशाओं व आकांक्षाओं के विपरीत काम कर रहा है। नाटो हालांकि अपने को ‘‘शांति संगठन’’ के रूप में पेश करता है लेकिन हकीकत में यह एक ‘‘युद्धमशीन’’ है। नाटो की तथाकथित सुरक्षा दुनिया के पीड़ित देशों की सुरक्षा की बलि चढ़ाकर आती है। नाटो द्वारा फेरी लगाये जाने वाली कई ‘‘सुरक्षा चिंताएं’’ इस संगठन द्वारा ही बनाई गई हैं। नाटो अपने 76वें वर्ष तक जीवित रहेगा या नहीं यह महज एक अटकलबाजी है। लेकिन यह तय है कि नाटो भविष्य में भी शांतिपूर्वक नहीं बढ़ेगा। अपने अस्तित्व के औचित्य को बनाये रखने के लिए उसे लगातार और अधिक दुश्मन और बड़े संकट पैदा करने की जरूरत है। यूरोप को विभाजित करने से वह संतुष्ट नहीं है। वह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में संघर्ष और टकराव को भड़काने की भी कोशिश कर रहा है।
         
 नाटो के 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित शिखर सम्मेलन में घोषणा की गयी है
    
‘‘3. यूक्रेन पर रूस के पूर्ण पैमाने पर आक्रमण ने यूरो-अटलांटिक क्षेत्र में शांति और स्थिरता को नष्ट कर दिया है और वैश्विक सुरक्षा को गम्भीर रूप से कमजोर कर दिया है। रूस मित्र राष्ट्रों की सुरक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण और प्रत्यक्ष खतरा बना हुआ है।...
    
‘‘4. ....ईरान की अस्थिर करने वाली कार्रवाइयां यूरो-अटलांटिक सुरक्षा को प्रभावित कर रही हैं। जन लोकतांत्रिक चीन (पीआरसी) की घोषित महत्वाकांक्षायें और बलपूर्वक नीतियां हमारे हितों, सुरक्षा और मूल्यों को चुनौती देती रहती हैं। रूस और जनलोकतांत्रिक चीन के बीच गहरी होती रणनीतिक साझेदारी और नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को कमजोर करने और उसे नया रूप देने के उनके पारस्परिक रूप से मजबूत प्रयास, गहरी चिंता का कारण हैं। हम राज्य और गैर-राज्य अभिनेताओं से हाइब्रिड, साइबर, अंतरिक्ष और अन्य खतरों और दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों का सामना कर रहे हैं 
    
‘‘5. इस 75वीं वर्षगांठ शिखर सम्मेलन में, हम अपनी प्रतिरोधात्मक क्षमता और रक्षा को मजबूत करने, यूक्रेन को अपने दीर्घकालिक समर्थन को मजबूत करने के लिए और कदम उठा रहे हैं ताकि वह अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई में जीत सके और नाटो की साझेदारी को और गहरा कर सके। हम यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेन्स्की और आस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैण्ड, कोरिया गणराज्य (दक्षिण कोरिया) और यूरोपीय संघ के नेताओं का गर्मजोशी से स्वागत करते हैं। 
    
‘‘6. हम इस बात का स्वागत करते हैं कि दो तिहाई से ज्यादा सहयोगियों ने जीडीपी के कम से कम 2 प्रतिशत वार्षिक रक्षा बजट की अपनी प्रतिबद्धता पूरी की है और उन सहयोगियों की सराहना करते हैं जिन्होंने इसे पार किया है।....’’
    
जो बाइडेन ने घोषणा की कि अमरीका यूक्रेन को अपने सहयोगियों के साथ ‘‘ऐतिहासिक सहायता’’ प्रदान करेगा, जिसमें यूक्रेन की वायु रक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए 1 अरब डालर आवंटित करना भी शामिल है। इसके अलावा, अमरीकी विदेश विभाग के एक अधिकारी ने शिखर सम्मेलन से पहले कहा कि ‘‘चीन से कुछ खतरे’’ विज्ञप्ति में परिलक्षित होंगे, जो कि केवल एक संकेत है। अब, यूक्रेन को सहायता प्रदान करना, सैन्य खर्च बढ़ाना और ‘‘चीन के खतरे’’ को पेश करना नाटो की ये तीन बड़ी बातें हैं। अमरीका नाटो के साथ ऊंचे स्तर के रणनीतिक गठबंधन को बनाये रखने के लिए इन तीन बड़ी बातों का सहारा ले रहा है। यह अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा अन्य देशों को नियंत्रित करने और दबाने के लिए एक औजार के रूप में कार्य करता है। नाटो की तथाकथित ‘‘सफलता’’ और ‘‘ताकत’’ जिसका अमरीकी साम्राज्यवादी और नाटो ब्लाक आज दावा करते हैं, दुनिया के लिए बहुत बड़ा खतरा पेश कर रहे हैं। यूरोप में नाटो का विस्तार और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में इसकी पहुंच का उद्देश्य क्षेत्रीय एकीकरण के रास्ते में टकराव और विघटन को पैदा करना है। यह पूंजीवादी वैश्वीकरण के रास्ते में अवरोध भी पैदा करता है। यह भी अजीब बात है कि चीनी साम्राज्यवादी शासक पूंजीवादी वैश्वीकरण और आर्थिक एकीकरण के समर्थक बने हुए हैं और अमरीकी साम्राज्यवादी भारी तटकर लगाकर, प्रतिबंधों को लगाकर व दायरा बढ़ाकर तात्कालिक तौर पर चीन के सम्बन्धों में उसके विरोधी हो गये हैं।
    
राष्ट्रपति ट्रम्प के शासन काल में यूरोप के नाटो देशों को ट्रम्प ने कहा कि यूरोपीय देश नाटो के बजट में पर्याप्त योगदान नहीं दे रहे हैं और कि ट्रम्प ने धमकी दी थी कि यूरोपीय देश अपनी जीडीपी का कम से कम 2 प्रतिशत योगदान करें। उसी धमकी ने अब अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है जिसकी शेखी स्टोलेनबर्ग बघार रहे हैं। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए चीनी साम्राज्यवादी सबसे बड़े प्रतिद्वन्द्वी और उसके प्रभुत्व के लिए बड़े दुश्मन के बतौर दिखाई दे रहे हैं। इसलिए अब वे दुनिया के अधिकांश संघर्षों का रुख चीन विरोधी करने जा रहे हैं। नाटो भी चीन के विरुद्ध अपने होड़कारी रुख को मजबूत करते हुए अमरीका का अनुसरण कर रहा है। इससे न केवल एशिया-प्रशांत क्षेत्र में विरोध पैदा हो रहा है बल्कि यूरोपीय राज्यों में भी विरोध की आवाजें उठ रही हैं। हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने अभी हाल ही में अपनी रूसी यात्रा के दौरान कहा कि नाटो युद्ध को आगे बढ़ा रहा है और यह एक बड़ा खतरा है। उन्होंने अभी न्यूजवीक नामक अमरीकी पत्रिका में चेतावनी देते हुए बताया कि यदि नाटो सहयोग के बजाय संघर्ष और शांति के बजाय युद्ध का विकल्प चुनता है, तो यह आत्महत्या होगी। इस समय ओरबान यूरोपीय संघ परिषद के अध्यक्ष हैं। उनके अनुसार, यदि नाटो अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए अपने अभी तक के चले आ रहे दृष्टिकोण पर निर्भर रहना जारी रखता है, विशेष तौर पर अपने ब्लाक का वैश्वीकरण करने की अपनी मुहिम में, तो इसकी तेजगति से विफलता अपरिहार्य है।
    
अभी हाल ही में, शिखर सम्मेलन के दौरान जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने अपनी टिप्पणी में यह संकेत दिया था कि रूस को चीन का समर्थन मिला हुआ है। इससे यह जाहिर होता है कि अमरीका की ‘‘एशियाई नाटो’’ बनाने की रणनीति में जापान की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। 
    
जापान ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में नाटो की भागीदारी को आगे बढ़ाने और इस क्षेत्र को नाटो के रणनीतिक ढांचे में एकीकृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इसने विभिन्न माध्यमों से एशिया-प्रशांत में नाटो के प्रवेश को सुगम बनाया है और पड़ोसी देशों के साथ सहयोगात्मक सम्बन्ध स्थापित करने में अमरीका की मदद की है।
    
नाटो के साथ जापान का बढ़ा हुआ सहयोग अपने दो बुनियादी उद्देश्यों को पूरा करता हैः चीन का मुकाबला करने में नाटो की क्षमताओं का फायदा उठाना, विशेष रूप से पूर्वी चीन सागर और दक्षिणी चीन सागर जैसे समुद्री विवादों में, और अभूतपूर्व सैन्य-विस्तार को आगे बढ़ाकर इसकी संवैधानिक बाधाओं को दरकिनार करना है। यह ज्ञात हो कि द्वितीय विश्व युद्ध में पराजय के बाद जापान पर मित्र शक्तियों ने विदेशों में फौजों को तैनात करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। अतः उस समय उसकी फौजी ताकत नहीं रह गयी थी। अब वह नाटो और अपने यहां तैनात भारी अमरीकी फौजों की मदद से पराजित राष्ट्र के रूप में जापान की स्थिति को खत्म करना चाहता है और एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति के रूप में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहता है। 
    
इस प्रकार, हम देख सकते हैं कि नाटो के इस शिखर सम्मेलन में रूसी और चीनी साम्राज्यवादियों के साथ प्रतिद्वन्द्विता में अमरीकी साम्राज्यवादियों ने नाटो की मदद से नाटो को न सिर्फ अपने को यूरोप तक सीमित रखने तक बल्कि उसका विस्तार वैश्विक पैमाने पर, विशेष तौर पर एशिया-प्रशांत क्षेत्र तक करने का संकल्प दोहराया है। 
    
इससे विश्व एक तरह से नये शीत युद्ध में प्रवेश करता जा रहा है और यह विश्व युद्ध के खतरे को और नजदीक ला रहा है।  

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