पश्चिम एशिया में चीन और अमरीका की बढ़ती प्रतिद्वन्द्विता

पश्चिम एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव से अमरीकी साम्राज्यवादी परेशान हैं। वे अभी तक पश्चिमी एशिया को अपने प्रभाव क्षेत्र के बतौर मानते रहे हैं। पश्चिमी एशिया के अधिकांश शासक अमरीकी छत्रछाया के नीचे रहे हैं। लेकिन इधर कुछ वर्षों से ये शासक अमरीकी और पश्चिमी यूरोप की छत्रछाया से निकल कर अपने विकल्पों को तलाश रहे हैं। ईरान के शासक पहले से ही अमरीका विरोधी हो चुके थे। अमरीकी साम्राज्यवादी ईरान के विरुद्ध अधिकांश पश्चिमी एशिया के शासकों को लामबंद कर चुके थे। ये सभी सीरिया की बशर-अल-असद की हुकूमत के भी विरुद्ध थे। ये सीरिया की हुकूमत का तख्तापलट कराने की कोशिशों में अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ खड़े थे।
    

लेकिन अब परिवर्तन हो रहा है। साऊदी अरब और ईरान के बीच समझौता होने के बाद इस समूचे इलाके में अमरीकी साम्राज्यवादियों के प्रभाव को झटका लगा है। यह समझौता चीन की मध्यस्थता में हुआ है। इसे अमरीकी साम्राज्यवादी चीन के इस क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव के रूप में सही ही समझते हैं। वे विश्वव्यापी पैमाने पर चीन को अपना रणनीतिक प्रतिद्वन्द्वी समझते हैं। वे पश्चिमी एशिया में ईरान को अपने हितों के विरुद्ध प्रमुख खतरा मानते हैं। वे ईरान में हुकूमत परिवर्तन की साजिश रचते रहे हैं और उसमें अभी तक नाकामयाब रहे हैं। वे ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर उसकी अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करने में लगे रहे हैं। इसी दौरान ईरान और चीन के बीच आर्थिक सम्बन्ध गहराते गये। चीन की बेल्ट और रोड इनीशियेटिव में ईरान की भागीदारी ने उसके अलगाव को तोड़ने में मदद की। पिछले कुछ वर्षों से चीन ने पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के कई सारे देशों को अपनी बेल्ट और रोड इनीशियेटिव के साथ जोड़ कर अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार किया है। बेल्ट और रोड इनीशियेटिव में शामिल होने वाले देश निम्नलिखित हैं। बेल्ट और रोड इनीशिएटिव मेंtable शामिल पश्चिम एशिया और अफ्रीकी देश  - 
    

पश्चिम एशिया में चीन की बेल्ट और रोड इनीशिएटिव का मुकाबला करने के लिए अमरीकी साम्राज्यवादियों ने I 2 U 2 का गठन करके इजरायल, भारत, अमरीका और संयुक्त अरब अमीरात (India, Isarail, United State, United Arab Amirat) के जरिए पश्चिमी एशिया में देशों को रेल से जोड़ने की योजना पेश की। इस रेल परियोजना में ईरान को शामिल नहीं किया गया। इस परियोजना में भारत को शामिल करने का मकसद चीन के विरोध में उसे जोड़ना था। चीन के मुकाबले में भारत के शासकों को अपनी परियोजना में जोड़कर अमरीकी साम्राज्यवादी चीन से अपनी प्रतिद्वन्द्विता में भारतीय शासकों को साथ लाना चाहते हैं। लेकिन इसमें भी एक बाधा है। भारत पहले से ही अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारे का हिस्सा है। अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारा रूस, ईरान, भारत को लेकर बना है। यह रूस, मध्य एशिया और ईरान से होकर भारत को जोड़ने के लिए बना है। यह गलियारा चीन की बेल्ट और रोड इनीशियेटिव से जुड़कर यूरोप तक को रेलमार्ग से जोड़ देता है। अमरीकी साम्राज्यवादी रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत को रूस के विरुद्ध खड़ा करने का पूरा दबाव डालकर भी उसमें सफल नहीं हुए। भारतीय शासक रूस से सस्ते तेल और गैस का फायदा ले रहे हैं। वे रूसी हथियारों के प्रमुख खरीददार हैं। इसलिए वे अपने स्वार्थों के चलते रूस के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए तैयार नहीं हुए। भारतीय शासक चीन के विरुद्ध होते हुए भी अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण गलियारे से अलग नहीं हुए। इसलिए I 2 U 2 चीन की खरबों डालर की बेल्ट और रोड इनीशिएटिव के मुकाबले कहीं नहीं ठहरती। दूसरी बात भारत की रेल का प्रबंधन खुद अपने देश में सुरक्षा और संरक्षा सम्बन्धी समस्याओं से जूझ रहा है। यहां रेल दुर्घटनायें भारतीय शासकों के कुप्रबंधन का नमूना बनी हुई हैं। यह भी एक वजह है जो इसे बेल्ट और रोड इनीशिएटिव के मुकाबले के लायक नहीं बनाती। यहां भी अमरीकी साम्राज्यवादी चीन का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं हैं। 
    

यह भी ताज्जुब की बात है कि अमरीकी साम्राज्यवादियों ने भारत को एशिया के सबसे महत्वपूर्ण व्यापार समझौते प्रशांत-पारीय साझेदारी (TPP) में शामिल नहीं किया था। हालांकि बाद में ट्रम्प काल में अमेरिका खुद ही इस साझेदारी से पीछे हट गया। शेष बचे देशों ने व्यापक व क्रमिक प्रशांत पारीय साझेदारी के लिए समझौता (CPTPP) किया। अमेरिका चीन के नेतृत्व में बने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक हिस्सेदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership) के विरुद्ध एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ आर्थिक साझेदारी का गुट बनाने की कोशिश में है। लेकिन वहां भी वह आर्थिक क्षेत्र में मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है। 
    

पश्चिमी एशिया में अमरीकी साम्राज्यवादियों को चीन की बेल्ट और रोड परियोजना से ही मुकाबला नहीं करना पड़ रहा है, उसे ईरान के लम्बे समय से बन रहे अवरचना प्रयासों का भी मुकाबला करना है। ईरान काफी समय से ईरान के खुजेस्तान प्रांत में स्थित फारस की खाड़ी के इमाम खोमेनी बंदरगाह से ईराक में सीरिया सीमा के अबू कमाल से होते हुए सीरिया में भू-मध्य सागर स्थित लकटिया तक रेल से जोड़ने की योजना में काम कर रहा है। यदि ईरान की यह परियोजना सफल हो जाती है तो फारस की खाड़ी का भूमध्य सागर से सीधा जुड़ाव हो जायेगा। इस योजना के सफल होने से साऊदी अरब और अन्य खाड़ी के देशों का लाभ होना तय है। इस योजना के जवाब में भी अमरीकी साम्राज्यवादी I 2 U 2 की योजना बना रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी किसी भी तरह से ईरान की यह योजना सफल होते देखना नहीं चाहते। लेकिन साऊदी अरब और ईरान के बीच समझौता होने से इजरायल का इस क्षेत्र में अलगाव बढ़ गया है। अब इजरायल के साथ खुले तौर पर पश्चिम एशिया के शासक नहीं आना चाहते। इजरायल जिस तरह से फिलिस्तीनियों को उजाड़कर पश्चिमी किनारे और गाजापट्टी में यहूदी बस्तियां लगातार बसा रहा है और इसके खिलाफ फिलिस्तीनी प्रतिरोध युद्ध बढ़ रहा है। इसने पश्चिमी एशिया के शासकों को फिलिस्तीन के पक्ष में और इजरायल के विरोध में आवाज उठाने को मजबूर कर दिया है। अभी हाल ही में खाड़ी सहयोग परिषद के देशों ने इजरायल द्वारा पश्चिमी किनारे और पूर्वी येरूशलम से फिलिस्तीनियों को उजाड़कर जबरन यहूदी बस्तियां बसाने का विरोध किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव और यूरोपीय संघ के देशों ने इजरायल द्वारा पश्चिमी किनारे में जबरन यहूदी बस्तियां बसाने की निंदा की है। लेकिन इजरायल को अमरीकी साम्राज्यवादियों का समर्थन प्राप्त है। वो इजरायल के पक्ष में हमेशा की तरह उसकी कब्जेकारी नीति का समर्थन कर रहे हैं। इस वजह से भी अमरीकी साम्राज्यवादी अब पश्चिमी एशिया में अपनी स्थिति पहले से कमजोर पा रहे हैं। 
    

फिलिस्तीनी मुक्ति के लिए संघर्ष करने वाले योद्धा अब तमाम दमन के बावजूद इजरायल के विरुद्ध संघर्ष तेज कर रहे हैं। वे इजरायल के साथ समझौते पर अब अमरीकी साम्राज्यवादियों की मध्यस्थता में यकीन नहीं कर रहे हैं। वे अब चीन और रूस के साथ मध्यस्थता करने को तरजीह दे रहे हैं। पश्चिमी एशिया के शासक भी अपने देशों में फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष के प्रति जनता के व्यापक समर्थन के कारण इजरायल के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए मजबूर हो रहे हैं। 
    

अभी 3 जून को मिश्र के सीमा पुलिस के एक नौजवान ने सिनाई के भीतर घुसकर तीन इजरायली सैनिकों को खत्म कर दिया और एक को घायल कर दिया। बाद में वह भी इजरायली सैनिकों द्वारा मारा गया। इस नौजवान की मिश्र के अंदर भारी सराहना की जा रही है। यह ज्ञात हो कि 1967 के युद्ध में इजरायल ने मिश्र के सिनाई इलाके पर कब्जा कर लिया था। वहां इजरायली यहूदियों की बस्तियां बसा दी थीं। तब से इजरायल का सिनाई के अधिकांश क्षेत्र पर कब्जा है। इस नौजवान के साहस को न सिर्फ मिश्र की जनता में बल्कि समूचे अरब देशों में समर्थन मिल रहा है। अभी तक इजरायल को मिश्र की तरफ से कोई खतरा नहीं लग रहा था। लेकिन इससे इजरायली शासकों के बीच इस इलाके की सुरक्षा को लेकर चिंता सताने लगी है। यह नौजवान फिलिस्तीनियों पर आये दिन कहर बरपा किये जाने से प्रतिशोध से भरा हुआ था। इस एक घटना ने समूचे अरब जगत में फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष के समर्थन में काफी इजाफा किया है। 
    

इस मसले पर भी चीन और अमरीका संयुक्त राष्ट्र के मंच पर एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा होने की ओर पहुंच गये हैं। जहां चीन फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष का समर्थन करते हुए फिलिस्तीनी संप्रभु राष्ट्र की हिमायत करता है वहीं अमरीका येन-केन प्रकारेण इजरायल की कब्जाकारी नीति का समर्थन करता है। इस वजह से चीन द्वारा मध्यस्थता करने के लिए फिलिस्तीनी भरोसा करते हैं। 
    

अमरीकी साम्राज्यवादी अपने घटते प्रभाव को रोकने के लिए तरह-तरह के उपाय अपना रहे हैं। वे इस इलाके में हथियारों की बिक्री का लालच देकर, रेल परियोजना और अन्य आर्थिक मदद देने की बात करके इन देशों के साथ सुरक्षा सम्बन्धी बंधन थोपने वाले समझौते करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन इन देशों के शासक अपने विकल्पों को खुला रखना चाहते हैं। 
    

अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा पश्चिमी एशिया क्षेत्र में अपने रणनीतिक प्रसार के लिए व्यापक योजना पर काम किया जा रहा है। वे अपने विश्वव्यापी प्रभुत्व के लिए इस क्षेत्र पर जोर दे रहे हैं। इसकी चर्चा अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान ने मई में हुए एक सेमिनार में की है। उसके अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अमरीका चीन को अपना प्रमुख रणनीतिक प्रतिद्वन्द्वी मानता है। पश्चिमी एशिया के संदर्भ में वह इस क्षेत्र में अपने हितों के लिए ईरान को सबसे प्रमुख खतरा मानता है। 
    

अमरीकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने अमरीकी रणनीतिक दृष्टिकोण की पश्चिमी एशिया में संदर्भ में व्याख्या करते हुए बताया कि वह इस क्षेत्र के राज्यां के साथ अमरीकी गठबंधन को मजबूत करने के लिए साझेदारी बढ़ाये और घनिष्ठ सम्पर्कों को मजबूत करे। इसके अतिरिक्त वह खतरे से निपटने के महत्व को समझे, वह अमरीकी हितों की हिफाजत के लिए खतरे को टालने की आवश्यकता पर ध्यान दे तथा चीन का प्रतिकार करने पर मुख्य जोर के साथ कूटनीतिक विकल्पों और तनाव कम करने को प्राथमिकता दे। इसके साथ ही क्षेत्रीय एकीकरण पर जोर दे। 
    

सुलिवन के अनुसार,
    

‘‘ज्यादा एकीकृत, अंतर सम्बन्धित पश्चिम एशिया हमारे सहयोगियों और साझीदारों को शक्तिशाली बनाता है, क्षेत्रीय शांति और समृद्धि को बढ़ाता है, और अपने बुनियादी हितों को या क्षेत्र में हमारी मौजूदगी को लम्बे समय तक बिना त्यागे हुए इस क्षेत्र में अमरीका पर संसाधन की मांगों को कम करता है।’’
    

इसके अतिरिक्त वह जनतांत्रिक मूल्यों और मानव अधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता को आवश्यक बताता है। लेकिन वह भी चुनिंदा मामलों में ऐसा करता है। 
    

लेकिन सुलिवन की इन बातों को धता बताकर पश्चिमी एशिया के देश लगातार चीन और रूस के साथ सहकार बढ़ाने की ओर बढ़ रहे हैं। चीन और अमरीका- दोनों साम्राज्यवादी देशों के बीच प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने की लड़ाई इस क्षेत्र में तेज हो रही है। इसमें चीन बढ़ता जा रहा है और अमरीका पीछे हट रहा है। लेकिन सैनिक तौर पर अभी भी इस क्षेत्र में अमरीकी साम्राज्यवादियों का वर्चस्व मौजूद है। 
    

क्या चीन इस क्षेत्र में भी आगे बढ़ेगा, यह आगे आने वाला समय बतायेगा।  

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