
पुरानी पेंशन को लेकर भारत के अलग-अलग राज्यों में आंदोलन तेज होता जा रहा है। कुछ राज्यों ने पुरानी पेंशन योजना को लागू भी कर दिया है। इससे बाकी राज्यों में भी मजदूर-कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना को लागू करने के लिए राज्य और केंद्र सरकार पर दबाव बना रहे हैं। चुनावी मौसम में यह लड़ाई और तेज हो रही है। विभिन्न राज्यों से मजदूर-कर्मचारी दिल्ली आकर अपनी मांगों को तेज कर रहे हैं।
मजदूरों-कर्मचारियों के इस बढ़ते आंदोलन के दबाव में अब भाजपा से जुड़े मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ ने भी मजदूरों को पुरानी पेंशन योजना के लिए गोलबंद करना शुरू कर दिया है। जहां 1 अक्टूबर को लाखों मजदूरों-कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन योजना के लिए रामलीला मैदान में इकट्ठे होकर रैली निकाली थी वहीं 22 नवंबर को भारतीय मजदूर संघ ने दिल्ली के जंतर मंतर पर कर्मचारियों को इकट्ठा कर ओ पी एस की मांग की।
ज्ञात हो कि 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए पुरानी पेंशन योजना को ख़त्म करते हुए नई पेंशन योजना लागू की थी। इस योजना के जरिये कर्मचारी की आय का 10 प्रतिशत हिस्सा और इतना ही योगदान सरकार का मिलाकर पेंशन फंड में डाला जायेगा और इस पैसे से ही कर्मचारी को पेंशन मिलेगी। यह पेंशन कितनी होगी इस बारे में कर्मचारी को कभी स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया। लेकिन इतना तय है कि यह पुरानी पेंशन से काफी कम होगी। पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारी को अपनी अंतिम तनख्वाह का आधा हिस्सा मिलना तय था। इसके अलावा साल में दो बार महंगाई भत्ता और पे कमिशन बैठने पर पेंशन में भी वृद्धि होनी थी। ताकि कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद अपना जीवन सम्मान के साथ गुजार सके।
लेकिन पूंजीवादी सरकारों को इससे कोई मतलब नहीं था। उसे तो बस पूंजीपति वर्ग के लिए सरकारी और निजी संस्थानों में ऐसे मजदूर चाहिए जो बस उनके लिए काम करें और जिनकी जिम्मेदारी उनके ऊपर न रहे। वे मजदूरों-कर्मचारियों को बस न्यूनतम वेतन देकर छुटकारा पा जाएं। और पूंजीवादी सरकारों ने पूंजीपतियों के मनमुताबिक मजदूरों-कर्मचारियों के अधिकार छीनने शुरू कर दिये। और यह सब नई आर्थिक नीतियों को लागू करके शुरू किया गया।
लेकिन देर से ही सही ओ पी एस के लिए मजदूरों-कर्मचारियों के तेज होते आंदोलन ने पूंजीवादी सरकारों को इस बात के लिए मजबूर करना शुरू कर दिया है कि वे पुरानी पेंशन योजना (ओ पी एस) लागू करें। -एक पाठक, काशीपुर