बांग्लादेश : गारमेंट मजदूरों का जुझारू संघर्ष

बांग्लादेश में रेडीमेड गारमेंट बनाने वाले मजदूरों ने बीते एक माह से अधिक लम्बे संघर्ष से सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। बांग्लादेश में रेडीमेड गारमेंट क्षेत्र में लगभग 44 लाख मजदूर काम करते हैं। इनमें बड़ी संख्या महिला मजदूरों की है। इतनी बड़ी संख्या में होने के बावजूद ये मजदूर भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बुरी जीवन परिस्थितियों और सबसे कम वेतन पर काम करने को मजबूर हैं। बांग्लादेश में इन मजदूरों को न्यूनतम वेतन मात्र 8000 टका (लगभग 6080 भारतीय रुपये) मिलता है। बांग्लादेश में हर 5 वर्ष में न्यूनतम मजदूरी में सरकार वृद्धि करती रही है। पिछली वृद्धि 2018 में हुई थी पर इस वर्ष सरकार इस वृद्धि की कोई पहल नहीं कर रही थी। ऐसे में 13 अक्टूबर से लगभग 150 फैक्टरियों के गारमेंट मजदूर हड़ताल पर चले गये। ये मजदूर न्यूनतम वेतन वृद्धि के साथ-साथ बेहतर कार्य परिस्थितियों की मांग कर रहे थे। मजदूरों की मांग न्यूनतम वेतन बढ़ाकर 23,000 टका करने की थी। 
    
गारमेंट मजदूरों की कुछ फैक्टरियों से शुरू हुई इस हड़ताल ने शीघ्र ही फैलना शुरू कर दिया। हर दिन बीतने के साथ कुछ नये मजदूर हड़ताल में आने लगे। कई जगहों पर मजदूरों के बड़े-बड़े प्रदर्शन होने लगे। कुछ जगहों पर जब फैक्टरी मालिकों ने मजदूरों को हड़ताल पर जाने से रोका तो मजदूरों के प्रदर्शन हिंसक हो उठे। मजदूरों ने कई फैक्टरियों में तोड़-फोड़ की। 23 अक्टूबर को हजारों मजदूरों के प्रदर्शन पर पुलिस ने गोलियां चलायीं। इस गोलीकांड में 4 मजदूर मारे गये। अब तक पुलिस द्वारा कुल 5 मजदूरों को मारा जा चुका है। घायलों की संख्या सैकड़ों में है। 50 से अधिक एफआईआर में सैकड़ों नामजद व हजारों अज्ञात मजदूर नामित हो चुके हैं। ढेरों मजदूरों को गिरफ्तार किया गया है। 
    
पुलिस द्वारा प्रदर्शनों का निर्मम दमन किया गया। गोली चलाने, लाठी चार्ज, आंसू गैस छोड़ने की घटनाओं के बीच मजदूरों का गुस्सा बढ़ता गया। शेख हसीना की सरकार लगातार सड़कों पर उतरते मजदूरों के आक्रोश को किसी भी कीमत पर कुचलना चाहती थी वहीं विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी इस मजदूर आक्रोश को अपने पक्ष में भुनाने की चाल चलने लगी। 7 जनवरी को बांग्लादेश में नये चुनाव होने हैं। बीते कुछ चुनावों में शेख हसीना की तानाशाहीपूर्ण सरकार जोर-जबर्दस्ती से चुनाव अपने पक्ष में कराते हुए सत्ता पर कब्जा बनाये हुए है। ऐसे में विपक्षी दल ने नवम्बर माह में मजदूर आक्रोश पर सवार होकर एक के बाद एक जाम और हड़ताल के आह्वान किये। जाम व हड़तालों के आह्वान का क्रम अभी भी जारी है। उनकी मांग शेख हसीना के इस्तीफे, अस्थाई सरकार की स्थापना व उसकी देख-रेख में निष्पक्ष चुनाव की रही है। 
    
निरंतर प्रदर्शनों के बावजूद शेख हसीना झुकने को तैयार नहीं है पर निष्पक्ष चुनाव कराने का उस पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ता जा रहा है। 
    
मजदूरों की मांग के आगे झुकते हुए सरकार ने एक वेज बोर्ड का गठन किया। जिसने 12 नवम्बर को न्यूनतम मजदूरी 8000 टका से बढ़ा कर 12,500 टका करने की घोषणा की। मजदूरों ने इस प्रस्तावित न्यूनतम मजदूरी को नकार दिया और एक बार फिर सड़कों पर उतर आये। अंत में सरकार के इस पर पुनर्विचार करने के वायदे पर मजदूर काम पर लौटे। हालांकि बीच-बीच में जगह-जगह उनके प्रदर्शन होते रहे। वेज बोर्ड ने अगले 14 दिन नये न्यूनतम वेतन पर सुझाव मांगे। मजदूर यूनियनों ने जहां 23,000 से 25,000 टका न्यूनतम वेतन करने के सुझाव दिये वहीं मालिकों की यूनियनों ने मात्र 10,500 टका न्यूनतम वेतन की मांग की। 
    
मजदूरों को शांत करने के लिए शेख हसीना ने महिला मजदूरों के मातृत्व अवकाश को बढ़ाकर 16 सप्ताह करने का कानून पारित किया। पर मजदूरों को पता था कि यह कानून उनके गारमेण्ट उद्योग में लागू करवाना ही टेढ़ी खीर साबित होगा। मजदूर सरकार के झांसे में नहीं आये और बेहतर न्यूनतम मजदूरी की मांग करते रहे। 
    
23 अक्टूबर के दमन में मजदूरों की मौतों की खबर के चलते अब जहां एक ओर फैशन उद्योग के बड़े ब्राण्ड जो बांग्लादेश में बने कपड़ों को अपना टैग लगाकर बेचते थे, दबाव में आये। कुछेक नामी कम्पनियों ने मजदूरों के वेतन बढ़ाने का दिखावटी समर्थन किया। इन ब्राण्डों को इस मजदूर आंदोलन से अपनी बिक्री घटने का डर सताने लगा। वहीं दूसरी ओर दुनिया भर के मजदूरों की एकजुटता भी बांग्लादेश के मजदूरों को हासिल होने लगी। सरकार के दमन की हर ओर से निंदा होने लगी। 
    
दरअसल जारा, लेवी, एच एण्ड एम, पूमा सरीखे विश्वविख्यात फैशन ब्राण्ड सीधे अपने कारखाने बांग्लादेश में खोलने के बजाय वहां की वस्त्र निर्माता कम्पनियों को अपने उत्पाद का आर्डर देकर माल बनवाते हैं। इस तरह ये फैशन ब्राण्ड नियोक्ता की जिम्मेदारी से बच जाते हैं। बांग्लादेश की वस्त्र निर्माता कम्पनियों के मालिक भी पूंजीपति ही हैं। वे मुख्य कंपनी के आर्डर पर अपने यहां वस्त्र उत्पादन करते हैं। जब मजदूरों ने वेतन बढ़ाने की मांग की तो बांग्लादेश की वस्त्र निर्माता कम्पनियों के मालिक अपना यह रोना रोने लगे कि मुख्य ब्राण्ड उन्हें इतना देते ही नहीं कि वे मजदूरी बढ़ा सकें। वे सरकार पर मजदूरी कम से कम बढ़ाने का दबाव बनाने लगे। 
    
वेज बोर्ड ने 26 नवम्बर को सरकार द्वारा पुनर्विचार के वायदे को खारिज करते हुए न्यूनतम मजदूरी 12,500 टका ही घोषित की। हां मजदूरों में विभाजन बढ़ाने के लिए वेज बोर्ड ने पहले प्रस्तावित 5 ग्रेड को घटा कर 4 कर दिया और ग्रेड-1, 2 व 3 की मजदूरी कुछ बढ़ा दी। मजदूर संगठनों ने सरकार की इस दगाबाजी पर नाखुशी जाहिर की है। पर अभी वे दोबारा संघर्ष शुरू करने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि मजदूर विभिन्न यूनियन संघों में एकजुट हैं और देशव्यापी पैमाने पर उनकी एकजुटता मजबूत नहीं है। 
    
बांग्लादेश में गारमेंट क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जो विदेशी आय का प्रमुख स्रोत है। बांग्लादेश के मजदूरों की बेहद कम मजदूरी ही वह आकर्षण पैदा करती रही है जिसके चलते यह दुनिया का चीन के बाद दूसरे नम्बर का रेडीमेड गारमेंट का निर्यातक बना है। हर वर्ष यहां से 55 अरब डालर का वस्त्र निर्यात होता है। वैश्विक वस्त्र बाजार में इसकी हिस्सेदारी 8 प्रतिशत है। ये वस्त्र मुख्यतया अमेरिका व यूरोप के बाजारों में जाते हैं। बांग्लादेश में 4000 से ऊपर वस्त्र निर्माता इकाईयां हैं। ग्रामीण महिला मजदूरों की बड़ी तादाद होने के चलते वस्त्र निर्माता मजदूरों का निर्मम शोषण करते हैं। ज्यादातर मजदूर ओवरटाइम कर किसी तरह अपना गुजारा चला पाते हैं। बीते 5 वर्षों में कोरोना व बाद में वैश्विक महंगाई का असर बांग्लादेश पर भी पड़ा और मजदूरों की मजदूरी में वास्तव में गिरावट होने लगी। ऐसे में भारी बदहाली ही वो कारण था जिससे मजदूरों का आक्रोश एक माह तक सड़कों पर फूटता रहा। 
    
बेहद कम मजदूरी के साथ मजदूर बुरी कार्य परिस्थितियों में काम करने को मजबूर रहे हैं। राणा प्लाजा अग्निकांड के बाद परिस्थितियों में सुधार के वायदे हुए थे पर इन्हें वक्त के साथ भुला दिया गया। 
    
बांग्लादेश के गारमेंट मजदूरों का संघर्ष आज की वैश्विक मूल्य श्रंखला में पूंजी द्वारा मजदूरों के निर्मम शोषण को चुनौती देता है। अभी मजदूरों के निशाने पर उनकी लूट से अथाह मुनाफा कमाते नामी ब्रांड नहीं आये हैं पर आने वाले वक्त में ये ब्राण्ड भी निशाने पर आयेंगे। तब इन ब्राण्डों के कपड़ों पर बांग्लादेशी मजदूरों के निचोड़े गये खून के धब्बे सारी दुनिया को साफ नजर आने लगेंगे। 

मारे गये मजदूर

उचित न्यूनतम वेतन के लिए हाल ही में कपड़ा श्रमिकों के विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई, 26 वर्षीय अंजुआरा खातून और 25 वर्षीय रसेल हाउलाडर के परिवार अपने खोए हुए प्रियजनों के लिए न्याय नहीं मांग रहे हैं।
    
‘‘मैं किसके खिलाफ मामला दायर करूंगा? मैं किससे न्याय मांगूंगा?’’ रसेल के पिता ने पूछा। 23 अक्टूबर से उचित वेतन की मांग कर रहे हजारों कपड़ा श्रमिकों को तितर-बितर करने के लिए जब पुलिस ने गोलियां चलाईं और लाठियों और आंसू गैस का इस्तेमाल किया, तो रसेल उन चार श्रमिकों में से एक थे, जिनकी मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए। रसेल की 30 अक्टूबर को मौत हो गई थी।
    
अधिकारियों ने विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए सैकड़ों पुलिस और अर्ध-सैन्य सीमा गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) कर्मियों को तैनात किया, जिससे जारा, लेवी और एचएंडएम सहित पश्चिमी ब्रांडों के लिए कपड़े सिलने वाली सैकड़ों फैक्टरियां बंद हो गईं। मृत श्रमिकों के परिवारों को न्याय में कम दिलचस्पी है क्योंकि वे निराश हैं और उन्हें पुलिस के खिलाफ मामला दर्ज करने का कोई मतलब नहीं दिखता है। पुलिस ने मामलों को ‘‘अप्राकृतिक मौत’’ के रूप में दर्ज किया क्योंकि किसी ने भी हत्या का मामला दर्ज नहीं किया।
    
अंजुआरा को उस समय गोली मार दी गई जब वह अशांति के कारण अपनी फैक्टरी इस्लाम गारमेंट्स बंद होने के बाद गाजीपुर जिले में अपने आवास पर लौट रही थी और 9 नवंबर को श्रमिकों और पुलिस के बीच झड़प में फंस गई थी। अस्पताल ले जाने पर दो बच्चों की मां को मृत घोषित कर दिया गया। उसके माथे, कान और शरीर के अन्य हिस्सों में बन्दूक के छर्रे पाए गए।
    
उनके पति, मोहम्मद जमाल, जो एक कपड़ा श्रमिक भी हैं, ने कहा कि आपराधिक मामला दर्ज करना अनावश्यक था। वह आठ और सात साल की उम्र के दो बच्चों के साथ उत्तरी सिराजगंज जिले में अपने गांव लौटने पर विचार कर रहे हैं।
    
जमाल ने कहा, ‘‘मैं अपना सामान पैक कर रहा हूं।’’ जमाल को अपनी पत्नी की मौत के मुआवजे के तौर पर फैक्टरी और मुख्य व्यापार निकाय बांग्लादेश गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (बीजीएमईए) से 6,30,000 टका मिले। इस बीच, हन्नान को अपने बेटे, जो परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य था, की मृत्यु के लिए बीजीएमईए से 5,00,000 टका का मुआवजा दिया गया था। उनके कारखाने ने कुछ भी भुगतान नहीं किया।

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