अर्जेण्टीना में राष्ट्रपति पद के लिए दूसरे राउण्ड के चुनाव 19 नवम्बर को सम्पन्न हो गये। चुनाव में एक ऐसे शख्स जेवियर मिलेई राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत गये जिसकी बातों और कारनामों से ट्रम्प-मोदी-बोलसेनारो आदि सभी पीछे छूट जाते हैं। इस घोर दक्षिणपंथी व्यक्ति को अगर अर्जेण्टीना की जनता ने मतदान के जरिये चुना तो इसका केवल यही कारण नजर आता है कि अर्जेण्टीना की जनता मौजूदा कर्ज संकट और 140 प्रतिशत मुद्रास्फीति से पैदा हुई जीवन की बदहाली के चलते मौजूदा शासकों की जगह किसी को भी चुन लेने को तत्पर थी।
जेवियर मिलेई महज चन्द माह के भीतर ही अर्जेण्टीना की राजनीति के शीर्ष पर पहुंच गये। उसकी इस उड़ान में उसकी काबिलियत से अधिक सत्तासीन दल से लोगों की नाउम्मीदी अधिक थी। मिलेई की दक्षिणपंथी पार्टी उसी के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द केन्द्रित है। एक तांत्रिक सेक्स गुरू से लेकर अर्थशास्त्र के शिक्षक, टी वी शो के कमेंटेटर, अमेरिकी कारपोरेशन के कर्मचारी तक मिलेई कई तरीके के काम कर चुका है। उसे लोकप्रियता टी वी शो से मिली जहां उसने अर्जेण्टीना की आर्थिक समस्याओं को चुटकी में हल करने की बातें कीं। उसने सेण्ट्रल बैंक बंद कर अर्थव्यवस्था को डालर आधारित बनाने की बातें कीं। ढेरों लोग उसे ‘अराजकतावादी-पूंजीवादी’ का दर्जा देने लगे।
मिलेई खुलेआम घोषणा करते रहे हैं कि वे अबार्शन के विरोधी हैं, वे नारीवादी नीतियों के विरोधी हैं। हथियारों व मानव अंगों की खुली खरीद-बेच के समर्थक हैं। वे खुद को वैश्विक सांस्कृतिक युद्ध का योद्धा मानते हैं। उनके अनुसार सेक्स शिक्षा परिवार खत्म करने का मार्क्सवादी षड्यंत्र है। वे खुद को उदारवादी-स्वातंत्रयवादी बताते हैं। खुद वे माग्रेट थैचर, डोनाल्ड ट्रम्प और बोलसेनारो से प्रभावित हैं।
अर्जेण्टीना की अर्थव्यवस्था के मामले में उनके सुझाव उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों को तेजी से लागू करने वाले हैं। वे अर्जेण्टीना की मुद्रा पेसो की जगह अमेरिकी डालर चलाने की वकालत करते हैं। साथ ही देश के सेण्ट्रल बैंक को समाप्त करने की बात करते हैं। इसके साथ ही वे अर्थव्यवस्था, न्याय, गृह, सुरक्षा, रक्षा व विदेश सम्बन्ध के अलावा सारे मंत्रालय बंद करने की बात करते हैं। वे सभी तरह की सब्सिडी खासकर ऊर्जा सम्बन्धी के खात्मे की बात करते हैं। वे ऐसे आर्थिक सुधारों की वकालत करते हैं जिसमें सरकारी खर्च और सामाजिक मदों पर खर्च दोनों कम हो जायें, टैक्स कम हो जायें और आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह सरकारी नियंत्रण से मुक्त हो जायें।
इसके साथ ही मिलेई स्वास्थ्य, शिक्षा सरीखी सेवाओं के साथ सभी सरकारी कम्पनियों (खासकर मीडिया, तेल व गैस कंपनियों) के निजीकरण की बात करते हैं। वे अर्जेण्टीना एयरलाइंस को कर्मचारियों को सौंपने, सामाजिक सुरक्षा व कर के राष्ट्रीय विभागों के पुनर्गठन की बातें करते रहे हैं। विदेशी मामलों में वे खुलेआम ब्राजील-चीन से रिश्ते तोड़ने, ब्रिक्स में जाने का विरोध करने की बात करते रहे हैं। ऐसा वह कम्युनिस्टों से समझौते न करने की बात करते हुए कहते हैं। इसके उलट वे इजरायल व अमेरिका से रिश्ते बनाने की बात करते हैं। ब्रिक्स में जाने का वह इसलिए भी विरोध करते रहे हैं कि ब्रिक्स डालर के इतर मुद्राओं में व्यापार प्रोत्साहित कर रहा है। जबकि उनके अनुसार खुद अर्जेण्टीना को अपनी मुद्रा डालर को बना देना चाहिए।
मिलेई 1976 की सैन्य तानाशाही जिसने 30,000 लोगों का कत्लेआम किया, का खुला समर्थन करते हैं। वे श्रम कानूनों में पूंजीपरस्त बदलाव के समर्थक हैं। वे अर्थव्यवस्था में राज्य के हस्तक्षेप के विरोधी हैं। भारी सरकारी मशीनरी, ट्रेड यूनियन नौकरशाह, मजदूर वर्ग और 40 प्रतिशत जनता जो सामाजिक लाभों पर निर्भर है, को वे खुलेआम ‘परजीवी और चोर’ कहते रहे हैं। अपराध रोकने के लिए वे लोगों को हथियारबंद करने का सुझाव देते हैं।
मिलेई के उपरोक्त जनविरोधी विचारों के बावजूद अर्जेण्टीना की जनता ने उन्हें दूसरे राउण्ड में 55 प्रतिशत मत दिये। यह दिखलाता है कि अपनी बदहाली से निकलने के उनके पूंजीपरस्त सुझावों की आम जनता शिकार हो गई।
ट्रम्प की तरह मिलेई भी अर्जेण्टीना को फिर से महान बनाने की बात करते हैं। इनके अंतर्राष्ट्रीय संबंध स्पेन की घोर दक्षिणपंथी पार्टी वौक्स, ब्राजील के बोलसेनारो, चिली के दक्षिणपंथी एन्टोनियो कास्ट से रहे हैं।
अर्जेण्टीना की मौजूदा आर्थिक बदहाली को स्पष्टतया देखा जा सकता है। 2019 से 2022 के बीच देश पर कुल कर्ज 320 अरब डालर से बढ़कर 420 अरब डालर हो गया। अकेले आई एम एफ से इस दौरान 100 अरब डालर का कर्ज लिया गया। राष्ट्रपति फर्नाण्डीज के कार्यकाल में अर्जेण्टीना की अर्थव्यवस्था लगातार एक के बाद दूसरे संकट का शिकार रही। फर्नाण्डीज ने संकट संभालने के लिए आई एफ एफ से कर्ज लिया और कटौती कार्यक्रम लागू किया। कोरोना में तीखे लॉकडाउन ने भी जनता के बीच उनकी लोकप्रियता को काफी कमजोर किया। पर जो चीज अर्जेण्टीना की जनता के लिए भारी तकलीफ पैदा करने वाली थी वो थी आसमान छूती महंगाई।
आर्थिक गिरावट थामने के लिए अर्जेण्टीना सरकार को मुद्रा का अवमूल्यन करना पड़ा जिसने महंगाई दर 100 प्रतिशत से ऊपर पहुंचा दी। 40 प्रतिशत से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे पहुंच गये। बाजार में हर दिन बढ़ते भावों ने मौजूदा सरकार के प्रति लोगों में तीखा असंतोष पैदा किया। अर्जेण्टीना की सरकार अगर इतने कुछ के बावजूद दिवालिया नहीं हुई तो इसमें बड़ी भूमिका चीन से मिलने वाले स्वैप ऋणों की रही है।
अर्जेण्टीना की बदहाली में इस वर्ष खेती की उपज में गिरावट ने भी अपनी तरह से भूमिका निभाई। अर्जेण्टीना की अर्थव्यवस्था के संकट के कारण लम्बे समय से चले आ रहे हैं। कृषि की निर्यात में मुख्य भागीदारी, मैन्युफैक्चरिंग-ऊर्जा क्षेत्र का कम विकास, सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में बेहद कम निवेश और आर्थिक नीतियों में लगातार बदलाव आदि इनमें से कुछ प्रमुख कारण रहे हैं। उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों ने भी इस दुर्दशा तक पहुंचने में भूमिका निभाई है।
अब नये राष्ट्रपति के तहत अर्जेण्टीना की जनता ने मिलेई के रूप में ऐसे व्यक्ति को चुन लिया है जो अर्थव्यवस्था संवारने के नाम पर जनता को मिल रही नाम मात्र की राहतों को भी छीनेगा, लोगों के जनवादी अधिकारों पर हमले बोलेगा; मजदूरी में कटौती करेगा।
लैटिन अमेरिका के एक देश के नेता ने चुनाव में मिलेई को जिताने की तुलना फुटबाल के मैच में जनता द्वारा ‘सेल्फ गोल’ (यानी अपने गोलपोस्ट में खुद ही गेंद डाल अपने विरोधी को जिताने) से की है तो यह तुलना कहीं से गलत नहीं है।
अर्जेण्टीना राष्ट्रपति चुनाव : घोर दक्षिणपंथी की जीत
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
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7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को