हल्द्वानी/ कुमाऊं टेंट हाउस कालाढूंगी रोड हल्द्वानी के गोदाम में 12 नवंबर को दीपावली की रात में आग लगने से गोदाम में सोये तीन मजदूरों की जलकर मौके पर ही मौत हो गई। कुछ मजदूर घायल हो गये। ये मजदूर टेंट हाउस में काम करते थे। आग इतनी भयंकर थी कि 7 घंटे की मशक्कत के बाद बुझाई जा सकी। शहर के रिहायशी इलाकों में इस तरह के गोदाम को बनाने की अनुमति कौन देता है? इस तरह के गोदाम बनाने के कोई मानक हैं कि नहीं?
इसी टेंट हाउस के गोदाम में 2014 में आग लगने से सामान जलकर राख हो गया था। उसके बाद टेंट हाउस स्वामी ने सामान को बचाने के लिए मोटी दीवारें बनाकर गोदाम को अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया था। मजदूरों के सोने के लिए अलग से कमरों का इंतजाम नहीं किया गया। ना ही इंसानों को आग से बचाने के कोई इंतजाम किये। तड़प-तड़प कर जिंदा जले तीनों स्थाई मजदूर रोहित पुरी धारी, नैनीताल, कृष्ण कुमार व रविन्द्र कुमार मालधन, रामनगर तीनों हल्द्वानी के आस-पास के इलाके के रहने वाले थे। जो बच गये वह 400 रुपये की दिहाड़ी पर काम करने वाले ठेके के मजदूर थे जो टेंट हाउस के गोदाम से बाहर टेंट हाउस के सामान की ढुलाई करने वाली गाड़ियों में सोये हुए थे। यह दिखाता है कि हमारे देश में मजदूरों-मेहनतकशों के साथ में किस तरह का व्यवहार किया जाता है।
तीन मजदूरों की जलकर मौत होने के बावजूद भी किसी की जवाबदेही तय नहीं की गई है। टेंट हाउस स्वामी का कहना है कि पड़ोसी के दीवार से आग टेंट हाउस में लगी और फैलती चली गई। प्रशासन का कहना है आग किसी जलते रॉकेट के आकर गिरने से लगी हो सकती है। जिला विकास प्राधिकरण, नगर निगम हल्द्वानी, अग्निशमन अधिकारी एक-दूसरे के ऊपर बात टालकर जवाबदेही से बचना चाह रहे हैं। टेंट हाउस स्वामी को मजदूरों के आग से बचने के पुख्ता इंतजाम करने चाहिए थे जो कि नहीं किए गये। अब वह कुछ मुआवजा देकर जवाबदेही से बचना चाह रहा है। सवाल इस बार की आग का ही नहीं है बल्कि इससे पहले भी इसी टेंट हाउस के गोदाम में आग लग चुकी है और शहर में इस तरह की घटनाएं घटती रहती हैं तब भी बिना कार्यवाही और कोई नियम बनाये बिना मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता रहा है। आखिर शासन-प्रशासन कब जागेगा? इस तरह के मामलों के लिए कोई कायदे-कानून बनाए जाएंगे कि नहीं।
इस घटना में मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। देश भर में मजदूरों-मेहनतकशों के जीवन में काम की बुरी परिस्थितियों से मौत की घटनाएं समय-समय पर होती रहती हैं। कभी सीवर लाइन के अंदर दम घुटने से मजदूरों की मौत की खबरें आती रहती हैं। आए दिन फैक्टरी-कारखाने में मजदूरों के साथ में शारीरिक नुकसान की दुर्घटना और मौत की खबरें आती रहती हैं। भवन निर्माण से लेकर तमाम जगहों में यह घटनाएं घटती रहती हैं। संगठित-असंगठित क्षेत्रों में यह घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। काम के दौरान चोट लगने से बचने के लिए सुरक्षा उपकरण से लेकर जीवन बचाने के लिए उनको सुरक्षा साम्रगी मुहैया नहीं कराई जाती है। इस तरीके से देश भर में मजदूरों-मेहनतकशों के साथ पशुवत व्यवहार किया जाता है। पूंजीपतियों के लिए मजदूर-मेहनतकश कीड़े के समान हैं। मजदूरों-मेहनतकशों के साथ मानवीय व्यवहार किया जाए, उनके अधिकार उनको दिए जाएं, इसके लिए आज व्यापक तौर पर संघर्ष करने की जरूरत है। -हल्द्वानी संवाददाता
टेंट हाउस गोदाम में आग लगने से तीन मजदूरों की जलकर मौत
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