गुड़गांव/ अपनी मांगों को लेकर बेलसोनिका मजदूरों का प्रतिरोध धरना 12 अक्टूबर से जारी है और अभी भी मजदूरों के हौंसले बुलंद हैं। बेलसोनिका मजदूर लगातार अपनी मांगों को लेकर शासन-प्रशासन को ज्ञापन व शिकायत पत्र दे रहे हैं। इसी कड़ी में 8 अक्टूबर को धरने पर बैठे और । शिफ्ट करने के बाद आए मजदूरों ने एक जुलूस के माध्यम से एडीसी महोदय से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन दिया। एडीसी महोदय ने विस्तार से बातें सुनीं और एक सप्ताह में इस संबंध में कोई बातचीत करने के लिए कहा।
इसी बीच दिवाली के मौके पर धरना स्थल में ही ‘अबकी दिवाली संघर्षों वाली’ के तहत एक सांस्कृतिक कार्यक्रम किया गया जिसमें इंकलाबी मजदूर केंद्र के दिल्ली और फरीदाबाद के साथियों ने क्रांतिकारी व संघर्ष के गीत गाए। जो मजदूर अपने घर नहीं गए थे, उनके परिवार वाले इसमें शामिल रहे और धरना स्थल में ही दिवाली बनाई।
बेलसोनिका मजदूरों ने बाहर निकाले गए मजदूरों के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए दिवाली के मौके पर मजदूरों के लिए पैसा इकट्ठा कर उन्हें दीपावली का उपहार व मिठाई भी दी और अपनी एकता को और मजबूत किया।
गौरतलब है कि बेलसोनिका मजदूर प्रबंधन द्वारा निकाले गए मजदूरों के लिए यूनियन द्वारा तय राशि हर महीने देते हैं और वह राशि इकट्ठा कर निकाले गए 22 मजदूर साथियों को दी जाती है ताकि अपनी एकजुटता को और मजबूत करें तथा संघर्ष को लगातार जारी रखें।
बेलसोनिका मजदूरों ने अपने संघर्ष को और ज्यादा व्यापक बनाने के लिए 23 नवंबर को राजीव चौक से गुड़गांव बस अड्डा तक लगभग 4 किलोमीटर का एक जुलूस निकाला। जुलूस जोशीले नारों के साथ निकाला गया। जुलूस उत्साही और प्रभावशाली रहा। जुलूस के अंत में यूनियन पदाधिकारियों ने बात रखी कि हम अपने आंदोलन को जारी रखेंगे और गुड़गांव समेत अन्य मजदूरों-मेहनतकशों समेत देश के अन्य क्षेत्रों में ले जाकर अपने आंदोलन के लिए समर्थन और सहयोग हासिल करेंगे।
बेलसोनिका मजदूरों ने अन्य संघर्षों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करते हुए प्रगतिशील महिला एकता केंद्र द्वारा जंतर मंतर, दिल्ली में 26 नवंबर को आयोजित आक्रोश रैली में भी भागीदारी की। इससे पहले अपने धरना स्थल के आस-पास और गुड़गांव के अन्य इलाकों में कार्यक्रम के पर्चे वितरित किए और पोस्टर लगाए गए।
-गुड़गांव संवाददाता
जारी है बेलसोनिका मजदूरों का संघर्ष
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आलेख
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।