पदयात्रा और सामूहिक भूख हड़ताल

रुद्रपुर/ माननीय राष्ट्रीय लोक अदालत के आदेश को लागू कराने की मांग को लेकर पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत 26 नवंबर 2023 को इंटरार्क कंपनी सिडकुल पंतनगर व किच्छा (उत्तराखंड) के पीड़ित मजदूरों के परिवारों की महिलाओं के नेतृत्व में इंटरार्क मजदूर संगठन के बैनर तले अंबेडकर पार्क रुद्रपुर से डीएम आवास तक पदयात्रा निकली और डीएम आवास के निकट सामूहिक रूप से एकदिवसीय भूख हड़ताल हुई।
    
इस दौरान यूनियन ने चेतावनी दी कि यदि प्रशासन नहीं चेता तो जन प्रतिनिधियों के आवास पर धरना-प्रदर्शन और सामूहिक भूख हड़ताल होगी।
    
इस दौरान हुई सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि माननीय राष्ट्रीय लोक अदालत, पीठ संख्या-09 द्वारा वाद संख्या- 25/2022 पर पारित आदेश के बिंदु संख्या-3 में स्पष्ट रूप से दर्ज है कि आंदोलन के दौरान निलंबित 64 मजदूरों में से जिन 34 मजदूरों की घरेलू जांच कराई जाएगी उन्हें जांच के दौरान एवं पश्चात नौकरी से बर्खास्त नहीं किया जायेगा। किंतु कंपनी प्रबंधन द्वारा उक्त 34 मजदूरों में से 11 मजदूरों की एकतरफा घरेलू जांच कार्यवाही करके नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया है। शेष मजदूरों की अब तक भी मूल नियोजक कंपनी में कार्यबहाली नहीं की गई है।
    
और बिंदु संख्या 7 और 8 के अनुसार उनकी वेतन वृद्धि भी नहीं की गई है। उक्त 34 मजदूरों को इस बार बोनस भी नहीं दिया गया है। यह पूरा कृत्य माननीय राष्ट्रीय लोक अदालत के उक्त आदेश की घोर अवमानना है। 
    
वक्ताओं ने कहा कि 9 माह से भी अधिक समय बीत जाने के पश्चात भी इंटरार्क कंपनी प्रबंधन द्वारा उक्त आदेशों को लागू नहीं किया जा रहा है और जिला प्रशासन द्वारा उन्हें लागू नहीं कराया जा रहा है।
    
वक्ताओं ने कहा कि भारतीय संसद द्वारा पारित कानून विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 एवं भारतीय सविधान में और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित कई आदेशों में स्पष्ट रूप से दर्ज है कि लोक अदालतों द्वारा पारित आदेशों को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है और ऐसे आदेश दोनों पक्षों पर बाध्यकारी होंगे।
    
इसके बाद भी इंटरार्क कंपनी मालिक द्वारा राष्ट्रीय लोक अदालत द्वारा पारित उक्त 13 आदेशों का पालन कर त्रिपक्षीय समझौता दिनांक 15 दिसम्बर 2022 को लागू नहीं किया जा रहा है, जो कि राष्ट्रीय लोक अदालत द्वारा पारित आदेशों और इस संदर्भ में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों, विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम-1987 एवं भारतीय संविधान का घोर उल्लंघन है।
    
वक्ताओं ने कहा कि उक्त गैरकानूनी   कृत्यों पर रोक लगाकर अपने संवैधानिक एवं नैतिक कर्तव्यों का निर्वाह करने के स्थान पर जिला प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है और इंटरार्क कंपनी प्रबंधन के साथ उक्त अविधिक कृत्यों में स्वयं भी लिप्त हो गया है और गैरकानूनी और अनैतिक कृत्यों में लिप्त इंटरार्क कंपनी प्रबंधन को पूरी तरह से संरक्षण दे रहा है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जिला प्रशासन की नजरों में लोक अदालत, सर्वोच्च न्यायालय एवं भारतीय संविधान और भारतीय कानूनों की कोई भी अहमियत नहीं है बल्कि इंटरार्क कंपनी मालिक के उक्त अविधिक कृत्य ही सर्वोपरि हैं।
    
वक्ताओं ने रोष प्रकट करते हुए कहा कि इससे स्पष्ट है कि जिला प्रशासन द्वारा पूंजीपतियों के हित में विधि द्वारा स्थापित कानून व्यवस्था को ताक पर रख दिया गया है। जबकि यह वही प्रशासन है जो किसी छोटी कोर्ट का आदेश जारी होते ही मजदूरों को कंपनी गेट से तत्काल ही बिजली की गति से खदेड़ देता है, उन पर अनगिनत फर्जी मुकदमे लगा देता है, उन्हें जेल भेजने में भी कोई देरी नहीं करता है और मजदूरों को सिडकुल में धरना प्रदर्शन करने से रोकने को आदेश पारित कर देता है।
    
उच्च न्यायालय की शरण लेने के पश्चात ही मजदूरों को राहत मिलती है। किंतु कंपनी मालिकों के खिलाफ न्यायालय द्वारा आदेश पारित करने पर प्रशासन मूकदर्शक बन जाता है। ऐसे में मजदूरों व आम जनता के पास सामूहिक संघर्ष करने के अलावा अन्य कोई दूसरा विकल्प शेष नहीं बचता है।

वक्ताओं ने कहा कि कंपनियों में श्रम कानूनों के घोर उल्लंघन पर पहले से ही मूकदर्शक बन चुके प्रशासन व श्रम विभाग द्वारा अब मजदूरों के पक्ष में अदालतों द्वारा पारित आदेशों को भी लागू नहीं कराए जाने की इस प्रवृत्ति के गंभीर परिणाम सामने आने तय हैं। इस गलत प्रवृत्ति के खिलाफ बिना देर किए हुए एकजुट संघर्ष करना ही आज की जरूरत है।
    
सभा को इंटरार्क मजदूर संगठन, इंकलाबी मजदूर केंद्र, ठेका मजदूर कल्याण समिति पंतनगर, श्रमिक संयुक्त मोर्चा, मजदूर सहयोग केन्द्र, टीवीएस लुकास, सीएनजी टेम्पो यूनियन, समता सैनिक दल, परिवर्तनकामी छात्र संगठन के प्रतिनिधियों ने संबोधित किया। कार्यक्रम में सैंकड़ों की संख्या में मजदूर एवं महिलाओं ने भागेदारी की। -रुद्रपुर संवाददाता
 

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।