राजनीति से परहेज करने वाले बुद्धिजीवी -आतो रीनो कास्तिलो

एक दिन हमारे देश के <br />
राजनीति से परहेज करने वाले<br />
तमाम बुद्धिजीवियों से सवाल करेंगे<br />
हमारे देश के<br />
मामूली से मामूली लोग<br />
उनसे पूछा जायेगा<br />
क्या कर रहे थे वे<br />
जब मर रहा था उनका देश<br />
तिल तिल कर<br />
शातिर खामोशी से<br />
सब कुछ खाक करती जाती<br />
छोटी और मामूली आग से?<br />
कोई नहीं पूछेगा उनके कपड़े लत्तों के बारे में<br />
या दोपहर के खाने के बाद<br />
कितनी देर तक लेते रहते हैं वे खर्राटे<br />
किसी की दिलचस्पी नहीं<br />
कि क्या है उनकी शून्यता की बांझ अवधारणा<br />
किसी को फर्क नहीं पड़ता<br />
कितना ऊंचा है उनका अर्थशास्त्र का ज्ञान<br />
उनसे कोई नहीं पूछेगा<br />
ग्रीक मिथकों के बारे में ताबड़तोड़ सवाल<br />
और न ही उनकी आत्मग्लानि के बारे में किसी <br />
को पड़ी है<br />
कि कैसे मरा उनका ही कोई बिरादर<br />
किसी भगोड़े कायर की मौत<br />
किसी को नहीं फिकर<br />
कि जीवन भर घने पेड़ की छाया तलाश कर<br />
इत्मीनान की सांस लेने वाले सुकुमार<br />
किस शैली में प्रस्तुत करते हैं<br />
अपने जीने के ढब के अजीबोगरीब तर्क<br />
उस दिन पलक झपकते<br />
आस पास से आ जुटेंगे<br />
तमाम मामूली लोग<br />
जिनके बारे में न तो लिखी किताब<br />
और न ही कोई कविता<br />
राजनीति से परहेज करने वाले<br />
इन बुद्धिजीवियों ने लम्बे भरपूर जीवन में कभी<br />
इनके लिए तो यही मामूली लोग<br />
बाजार से लाते रहे रोज रोज ब्रेड और दूध<br />
दिन भर का राशन पानी<br />
सड़कों गलियों में दौड़ते रहे उनकी गाड़ियां<br />
पालते रहे उनके कुत्ते और बाग बगीचे<br />
जो इन्हीं के लिए खटते रहे जीवन भर<br />
अब वही पलट कर करेंगे सवाल<br />
जब गरीबों का जीवन होता जा रहा था दूभर<br />
जब उनके अंदर से कोमलता<br />
और जीवन रस सूखता जा रहा था?<br />
मेरे प्यारे देश के<br />
राजनीति से परहेज करने वाले बुद्धिजीवी<br />
आप इन सब सवालों का जवाब दे पायेंगे?<br />
कितनी भी हिम्मत दिखला दें<br />
नोंच नोंच कर खा जायेगा<br />
आपको चुप्पी का खूंखार गिद्ध <br />
आपकी बेचारगी बार बार<br />
धिक्कारती रहेगी आपकी आत्मा को <br />
आपको नहीं सूझेगा तब कोई रास्ता<br />
नहीं बचेगा कोई चारा<br />
और चुपचाप सिर झुकाकर <br />
टुकुर टुकुर ताकते खड़े रहेंगे आप <br />
<em>(अनुवाद: यागवेन्द्र साभारः अनुनाद ब्लाॅग)</em>

आलेख

/izrail-lebanaan-yudha-viraam-samjhauta-sthaayi-samadhan-nahin-hai

इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं। 

/ek-baar-phir-sabhyata-aur-barbarataa

कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है। 

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।