
एक दिन हमारे देश के <br />
राजनीति से परहेज करने वाले<br />
तमाम बुद्धिजीवियों से सवाल करेंगे<br />
हमारे देश के<br />
मामूली से मामूली लोग<br />
उनसे पूछा जायेगा<br />
क्या कर रहे थे वे<br />
जब मर रहा था उनका देश<br />
तिल तिल कर<br />
शातिर खामोशी से<br />
सब कुछ खाक करती जाती<br />
छोटी और मामूली आग से?<br />
कोई नहीं पूछेगा उनके कपड़े लत्तों के बारे में<br />
या दोपहर के खाने के बाद<br />
कितनी देर तक लेते रहते हैं वे खर्राटे<br />
किसी की दिलचस्पी नहीं<br />
कि क्या है उनकी शून्यता की बांझ अवधारणा<br />
किसी को फर्क नहीं पड़ता<br />
कितना ऊंचा है उनका अर्थशास्त्र का ज्ञान<br />
उनसे कोई नहीं पूछेगा<br />
ग्रीक मिथकों के बारे में ताबड़तोड़ सवाल<br />
और न ही उनकी आत्मग्लानि के बारे में किसी <br />
को पड़ी है<br />
कि कैसे मरा उनका ही कोई बिरादर<br />
किसी भगोड़े कायर की मौत<br />
किसी को नहीं फिकर<br />
कि जीवन भर घने पेड़ की छाया तलाश कर<br />
इत्मीनान की सांस लेने वाले सुकुमार<br />
किस शैली में प्रस्तुत करते हैं<br />
अपने जीने के ढब के अजीबोगरीब तर्क<br />
उस दिन पलक झपकते<br />
आस पास से आ जुटेंगे<br />
तमाम मामूली लोग<br />
जिनके बारे में न तो लिखी किताब<br />
और न ही कोई कविता<br />
राजनीति से परहेज करने वाले<br />
इन बुद्धिजीवियों ने लम्बे भरपूर जीवन में कभी<br />
इनके लिए तो यही मामूली लोग<br />
बाजार से लाते रहे रोज रोज ब्रेड और दूध<br />
दिन भर का राशन पानी<br />
सड़कों गलियों में दौड़ते रहे उनकी गाड़ियां<br />
पालते रहे उनके कुत्ते और बाग बगीचे<br />
जो इन्हीं के लिए खटते रहे जीवन भर<br />
अब वही पलट कर करेंगे सवाल<br />
जब गरीबों का जीवन होता जा रहा था दूभर<br />
जब उनके अंदर से कोमलता<br />
और जीवन रस सूखता जा रहा था?<br />
मेरे प्यारे देश के<br />
राजनीति से परहेज करने वाले बुद्धिजीवी<br />
आप इन सब सवालों का जवाब दे पायेंगे?<br />
कितनी भी हिम्मत दिखला दें<br />
नोंच नोंच कर खा जायेगा<br />
आपको चुप्पी का खूंखार गिद्ध <br />
आपकी बेचारगी बार बार<br />
धिक्कारती रहेगी आपकी आत्मा को <br />
आपको नहीं सूझेगा तब कोई रास्ता<br />
नहीं बचेगा कोई चारा<br />
और चुपचाप सिर झुकाकर <br />
टुकुर टुकुर ताकते खड़े रहेंगे आप <br />
<em>(अनुवाद: यागवेन्द्र साभारः अनुनाद ब्लाॅग)</em>