शिक्षा के भगवाकरण के लिये कुख्यात दीनानाथ बत्रा ने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्र्रशिक्षण परिषद (एन सी ई आर टी) को सुझाव भेजा है। इन सुझावों में उन्होंने एक बार फिर संघी मूर्खतापूर्ण बातों की सलाह दी है। अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू के आम बोलचाल के शब्दों को हटाने की मांग की है। गालिब, टैगोर अवतार सिंह ‘पाश’ आदि की रचनाओं को हटाने की मांग की है। गुजरात दंगों, 1984 में कांगे्रस की बहुमत से जीत सहित तमाम सामाजिक-राजनीतिक मामलों में भी सलाह दी है। ज्ञात हो कि दिल्ली विश्वविद्यालय में स्नातक (ग्रेजुएशन) के पाठयक्रम में से ए.के.रामानुुजन के ‘थ्री हंड्रेड रामायनाज-फाइव एकजाम्पल्स एंड थ्री थाॅट्स आॅन ट्राॅसलेशन’ को शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास (संघ से सम्बद्ध) द्वारा छेड़ी गयी मुहिम के बाद हटा दिया गया था इसी तरह वेंडी डोनिजर की किताब ‘द हिंदूज’ को न्यास ने न्यायालय से हटवाने की राह चुनी अंततः प्रकाशन गृह ने ही उस किताब को रोक दिया।<br />
कुछ समय पहले दीनानाथ बत्रा गुजरात में पाठ्यक्रम में शामिल अपनी पुस्तक ‘तेजोमय भारत’ के कारण हंसी का पात्र बने थे, इस पुस्तक में उन्होंने स्टेम सेल तकनीक, टेस्ट ट्यूब बेबी, प्लास्टिक सर्जरी तकनीक आदि को प्राचीन भारत में मौजूद होने की बातें लिखी थीं।<br />
एन.सी.ई.आर.टी. को दिये गये सुझावों में उन्होंने हिन्दी की पुस्तक में अंग्रेजी के वाइस चासंलर, वर्कर, बिजनेस, मार्जिन, बेकबोन, स्टैंजा, रायल अकादमी शब्दों, उर्दू-अरबी के बेतरतीब, पोशाक, ताकत, इलाका, अक्सर, ईमान, जोखिम, मेहमान नवाजी, सरेआम शब्दों को हटाने की मांग की है। आज ये तमाम शब्द हमारी बोलचाल और लेखनी का हिस्सा हैं। संघी मानसिकता के ये कूपमंडूक फासीवादी संस्कृतनिष्ठ कठिन हिन्दी को शिक्षा में थोपना चाहते हैं। भारतीय संस्कृति में शामिल मुस्लिम प्रतिमानों को हटाने की कोशिश <span style="font-size: 13px; line-height: 20.8px;">में</span> हैं। यदि इन संघियों की सनक यहीं नहीं रुकी तो ये हलवा, जलेबी, जैसे पकवान और सिले हुये कपड़ों को पहनना ही प्रतिबंधित करवा देेंगें जो हिन्दुस्तान में इस्लामी संस्कृति के साथ आये, देशवासियों को धोती, अंगोछा, साड़ी ही पहनने की इजाजत होगी।<br />
इसके अलावा राजनीतिक शास्त्र की किताब में कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये गये हैं। इनका सम्बन्ध, 1984 के दंगों, राम मंदिर निर्माण, 2002 के गुजरात दंगों से है। कक्षा-12 की पुस्तक में लिखा है ‘‘2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में दिये गये अपने भाषण में देश में 1984 के सिख विरोधी हिंसा और खून खराबे के लिये माफी मांगी।’’ सिखों के खिलाफ हुये इन दंगों के लिये माफी मांगने से भला दीनानाथ बत्रा को क्या दिक्कत है? जबकि देश को आज भी उसके दोषियों को सजा का इंतजार है। राम मंदिर आंदोलन के बारे में किताब में लिखा गया है ‘‘बीजेपी के बढ़ने और हिन्दुत्व की राजनीति से सम्बद्ध था।’’ बीजेपी के बारे में ’’ हिन्दुत्ववादी पार्टी’’ लिखे होने से दीनानाथ बत्रा को आपत्ति है। बाबरी मस्जिद के बारे में ‘‘बाबरी मस्जिद का निर्माण मीर बकी ने करवाया था..... कुछ हिन्दुओं को विश्वास है कि यह राम का जन्म स्थान था और मस्जिद राम मंदिर को ध्वस कर बनायी गयी थी,’’ को हटाने की मांग की गयी है। इसी तरह 2002 के गोधरा काण्ड के विवरण में लिखा है ‘‘ट्रेन ने आग पकड़ ली....यह संदेह है कि आग मुस्लिमों द्वारा लगायी गयी।’’ में बत्रा की मांग है ‘आग पकड़ ली’ की जगह ‘आग लगायी गयी’ शब्द हों और ‘संदेह’ शब्द हटाया जाय। इसी तरह 2002 के ‘गुजरात दंगों में 2000 लोग मारे गये’ को भी हटाये जाने की मांग है।<br />
बाबरी मस्जिद विध्वंस और 2002 के गुजरात दंगे भारतीय इतिहास और राजनीति के वे हिस्से हैं जिनमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा की काली करतूतें और खून सने हाथ हैं। खासतौर पर गुजरात दंगों में बहे खून के लिये नरेन्द्र मोदी बदनाम हैं। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास और दीनानाथ बत्रा को 1984 के दंगों पर मनमोहन सिंह की माफी इसीलिये अखरती है कि आगे पढ़कर आने वाली पीढ़ियां संघ-भाजपा को गुजरात दंगों के लिये गुनहगार के बतौर जान जायेंगी। उन्हें डर हैं कि उन्हें इन सारे जुल्मों का हिसाब न देना पड़े।<br />
संघ और भाजपा को यकीन मानना चाहिये कि आने वाली पीढ़ियां उनका हिसाब जरूर करेंगी और मौजूदा पीढ़ी इनकी काली करतूतों से जरूर टकरायेगी।<br />
टैंक वाला मामला देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जे.एन.यू. से जुड़ा है। 26 जुलाई को जे.एन.यू. में कारगिल विजय दिवस पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में दो केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और जनरल वी.के. सिंह, पूर्व सैनिकों का संगठन वेटेरंस इंडिया, शहीदों के परिजन आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम के दौरान कुलपति ने दोनों मंत्रियों से आग्र्रह किया कि वे कैम्पस के किसी महत्वपूर्ण स्थान पर सेना का एक टैंक रखने में मदद करें। कुलपति के अनुसार कैम्पस में सेना का टैंक रखे जाने से छात्र-छात्राओं में देशभक्ति की भावना जगेगी और वह उन्हें सेना के बलिदान की याद दिलाता रहेगा।<br />
देश के प्रतिष्ठित संस्थान के कुलपति की बुद्धि का क्या कहना। टैंक रखवाकर शायद कुलपति छात्रों के दिलों में भय पैदा करना चाहते हैं। वे खुद टैंक के कमांडर बन बाकी को डराना चाहते हैं। इस भय से ही वे अंधराष्ट्रवादी संघी उन्माद छात्रों में भरना चाहते है। आज हर दिन, महीने सीमा पर सैनिक मरता है और जनता से देशभक्ति दिखाने की मांग की जाती है। क्षेत्रीय प्रभुत्व हासिल करने की हमारे शासकों की मंशा उन्हें यह प्रेरणा देती है कि हथियारों-टैंकों को महिमा मंडित करें। वे इसका जवाब नहीं देते कि देशभक्ति टैंक से ही कैसे पैदा होगी? किसान की दरांती-ट्रैक्टर से क्यों नहीं, मजदूर के हथौड़े-मशीन से क्यों नहीं, कर्मचारी या लेखक के पेन से क्यों नहीं या इसी तरह अन्य देशों के प्रतीकों से क्यों नहीं पैदा होगी देशभक्ति।<br />
जे.एन.यू. के कुलपति एम.जगदीश कुमार देशभक्ति नहीं पैदा करना चाहते हैं वे सेनाभक्ति पैदा करना चाहते हैं, टैंक पूजन करवाना चाहते हैं। दरअसल अंधराष्ट्रवाद और सेनाभक्ति के जरिये ही हिटलरी ‘राष्ट्र गौरव’ हासिल किया जा सकता है। हमारे देश की सेना ‘कारगिल विजय’, ‘1971 में बांग्लादेश की विजय’, ‘1962 की चीन से हार’ आदि पर विजय-शोक कुछ भी मना सकती है और मनाती है, सेना के अलावा अन्य जगहों पर इसे थोपा जाना सरकारों की अंधभक्ति के सिवाय कुछ नहीं है।<br />
मौजूदा चुनौतीपूर्ण समय में दीनानाथ बत्रा और एम.जगदीश कुमार से सावधान होने की जरूरत है। देश की करोड़ों-करोड़ जनता के वास्तविक नायकों को स्थापित करने और क्रांतिकारी राजनीति की राह पकड़ने की जरूरत है।
शिक्षा में झूठ, संस्थानों में टैंक से पैदा होगी ‘देशभक्ति’
राष्ट्रीय
आलेख
ट्रम्प ने घोषणा की है कि कनाडा को अमरीका का 51वां राज्य बन जाना चाहिए। अपने निवास मार-ए-लागो में मजाकिया अंदाज में उन्होंने कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को गवर्नर कह कर संबोधित किया। ट्रम्प के अनुसार, कनाडा अमरीका के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसे अमरीका के साथ मिल जाना चाहिए। इससे कनाडा की जनता को फायदा होगा और यह अमरीका के राष्ट्रीय हित में है। इसका पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और विरोधी राजनीतिक पार्टियों ने विरोध किया। इसे उन्होंने अपनी राष्ट्रीय संप्रभुता के खिलाफ कदम घोषित किया है। इस पर ट्रम्प ने अपना तटकर बढ़ाने का हथियार इस्तेमाल करने की धमकी दी है।
आज भारत एक जनतांत्रिक गणतंत्र है। पर यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को पांच किलो मुफ्त राशन, हजार-दो हजार रुपये की माहवार सहायता इत्यादि से लुभाया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिकों को एक-दूसरे से डरा कर वोट हासिल किया जा रहा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें जातियों, उप-जातियों की गोलबंदी जनतांत्रिक राज-काज का अहं हिस्सा है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें गुण्डों और प्रशासन में या संघी-लम्पटों और राज्य-सत्ता में फर्क करना मुश्किल हो गया है? यह कैसा गणतंत्र है जिसमें नागरिक प्रजा में रूपान्तरित हो रहे हैं?
सीरिया में अभी तक विभिन्न धार्मिक समुदायों, विभिन्न नस्लों और संस्कृतियों के लोग मिलजुल कर रहते रहे हैं। बशर अल असद के शासन काल में उसकी तानाशाही के विरोध में तथा बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लोगों का गुस्सा था और वे इसके विरुद्ध संघर्षरत थे। लेकिन इन विभिन्न समुदायों और संस्कृतियों के मानने वालों के बीच कोई कटुता या टकराहट नहीं थी। लेकिन जब से बशर अल असद की हुकूमत के विरुद्ध ये आतंकवादी संगठन साम्राज्यवादियों द्वारा खड़े किये गये तब से विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के विरुद्ध वैमनस्य की दीवार खड़ी हो गयी है।
समाज के क्रांतिकारी बदलाव की मुहिम ही समाज को और बदतर होने से रोक सकती है। क्रांतिकारी संघर्षों के उप-उत्पाद के तौर पर सुधार हासिल किये जा सकते हैं। और यह क्रांतिकारी संघर्ष संविधान बचाने के झंडे तले नहीं बल्कि ‘मजदूरों-किसानों के राज का नया संविधान’ बनाने के झंडे तले ही लड़ा जा सकता है जिसकी मूल भावना निजी सम्पत्ति का उन्मूलन और सामूहिक समाज की स्थापना होगी।
फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।